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________________ २१५ आर्यसंग्कृति की जड़ और आर्यजाति का लक्षण ऊपर के कथन से आर्यसंस्कृति का मूल आधार क्या है यह स्पष्ट मालूम हो जाता है। शाश्वत जीवन की उपादेयता ही आर्यसंस्कृति की भित्ति है। इसी पर आर्यसंस्कृति के चित्रों का चित्रण किया गया है। वर्णविभाग जैसा सामाजिक संगठन और आश्रमव्यवस्था जैसा वैयक्तिक जीवनविभाग उस चित्रण का अनुपम उदाहरण है। विद्या, रक्षण, विनिमय और सेवा ये चार जो वर्णविभाग के उद्देश्य हैं, उनके प्रवाह गार्हस्थ्य जीवनरूप मैदान में अलग अलग बह कर भी वानप्रस्थ के मुहाने में मिलकर अंत में संन्यासाश्रम के अपरिमेय समुद्र में एकरूप हो जाते हैं। सारांश यह है कि सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक आदि सभी संस्कृतियों का निर्माण, स्थूलजीवन की परिणामविरसता और आध्यात्मिक जीवन की परिणामसुन्दरता के ऊपर ही किया गया है। श्रतएव जो विदेशी विद्वान् श्रार्यजाति का लक्षण स्थूलशरीर, उसके डीलडौल, व्यापार-व्यवसाय, भाषा, आदि में देखते हैं वे एकदेशीय मात्र हैं। खेतीबारी, जहाजखेना पशुओं को चराना आदि जो-जो अर्थ आर्य शब्द से निकाले गए हैं। वे आर्यजाति के असाधारण लक्षण नहीं है। आर्यजाति का असाधारण लक्षण परलोकमात्र की कल्पना भी नहीं है क्योंकि उसकी दृष्टि में वह लोक भी त्याज्य है । उसका सच्चा और अन्तरंग लक्षण स्थूल जगत् के उस पार वर्तमान परमात्म तत्त्व की एकाग्रबुद्धि से उपासना करना यही है। इस सर्वव्यापक उद्देश्य के कारण आर्यजाति अपने को अन्य सब जातियों से श्रेष्ठ समझती आई है। ज्ञान और योग का संबंध तथा योग का दरजा- . व्यवहार हो या परमार्थ, किसी भी विषयका ज्ञान तभी परिपक समझा जा सकता है जब कि ज्ञानानुसार आचरण किया जाए। असल में यह आचरण pointedness as the Hindus called it, is something to us almost unknown'. इत्यादि देखो पृष्ठ २३-भाग १-सेक्रेड बुक्स ओफ धि ईस्ट, मेक्समूलर-प्रस्तावना। Biographies of Words & the Home of the Aryans by Max Muller page 50. २ ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मृत्युलोकं विशन्ति । एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते ॥ गीता अ० ६ श्लोक २१ । ३ देखो Apte's Sanskrit to English Dictionary. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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