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'मोक्ष के सिवाय अन्य विषयों का वर्णन करने में बहुत ही सकुचाते हैं। शब्द
शास्त्र में भी शब्द शुद्धि को तत्त्वज्ञान का द्वार मान कर उसका अन्तिम ध्येय परम श्रेय ही माना है। विशेष क्या ? कामशास्त्र तक का भी आखिरी उद्देश्य मोक्ष है । इस प्रकार भारतवर्षीय साहित्यका कोई भी स्रोत देखिए, उसकी गति समुद्र जैसे अपरिमेय एक चतुर्थ पुरुषार्थ की ओर ही होगी।
३. आध्यात्मिक विषय की चर्चावाला और खासकर योगविषयक कोई मी अन्य किसी ने भी लिखा कि लोगों ने उसे अपनाया। कंगाल और दीन हीन अवस्था में भी भारतवर्षीय लोगों की उक्त अभिर चि यह सूचित करती है कि योग का संबन्ध उनके देश व उनकी जाति में पहले से ही चला आता है। इसी कारण से भारतवर्ष की सभ्यता अरण्य में उत्पन्न हुई कही जाती है । इस पैतृक स्वभाव के कारण जब कभी भारतीय लोग तीर्थयात्रा या सफर के लिए पहाड़ों, जंगलों और अन्य तीर्थस्थानों में जाते हैं तब वे डेरा-तंबू डालने से पहले ही योगियों को, उनके मठों को और उनके चिह्नतक को भी ढूँढा करते हैं। योग की श्रद्धा का उद्रेक यहाँ तक देखा जाता है कि किसी नंगे बावेको गांजे की चिलम फूंकते या जटा बढ़ाते देखा कि उसके मुंह के धुंए में या उसकी जटा व भस्मलेप में योग का गन्ध आने लगता है। भारतवर्ष के पहाड़ जंगल और तीर्थस्थान भी बिलकुल योगिशून्य मिलना दुःसंभव है। ऐसी स्थिति अन्य देश और अन्य जाति में दुर्लभ है। इससे यह अनुमान करना सहज है कि योग को श्राविष्कृत करने का तथा पराकाष्ठा तक पहुँचाने का श्रेय बहुधा भारतवर्ष को और आर्यजाति को ही है। इस बात की पुष्टि मेक्समूलर जैसे विदेशी और भिन्न संस्कारी विद्वान् के कथन से भी अच्छी तरह होती है ।
१ वे ब्रह्मणी वेदितव्ये शब्दब्रह्म परं च यत् ।
शब्दब्रह्मणि निष्णातः परं ब्रह्माधिगच्छति ॥ व्याकरणात्पदसिद्धिः पदसिद्धरर्थनिर्णयो भवति । अर्थात्तत्त्वज्ञानं तत्त्वज्ञानात्परं श्रेयः ।।
श्रीहेमशब्दानुशासनम् अ० १ पा० १ सू० २ लधुन्यास । २ स्थाविरे धर्म मोदं च' कामसूत्र अ० २ पृ० ११ बम्बई संस्करण ।
३ देखो कविवर टैगोर कृत 'साधना' पृष्ठ ४"Thus in India it was in the forests that our civilisation had its birth .....etc.'
४ 'This concentration of thought ( एकाग्रता ) or one
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