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________________ मुख्य उद्देश मोर ही माना गया है। रामायण, महाभारत आदि के मुख्य पात्रों की महिमा सिर्फ इसलिए नहीं कि वे एक बड़े राज्यके स्वामी थे पर वह इसलिए है कि अंतमें वे संन्यास या तपस्या के द्वारा मोक्ष के अनुमान में ही लग जाते हैं। रामचन्द्रजी प्रथम ही अवस्थामें वसिष्ठ से योग और मोक्ष की शिक्षा पा लेते हैं। युधिष्ठिर भी युद्ध रस लेकर बाण-शय्यापर सोये हुए भीष्मपितामह से शान्ति का ही पाठ पढ़ते हैं। गीता तो रणांगण में भी मोक्ष के एकतम साधन योग का ही उपदेश देती है। कालिदास जैसे शृंगारप्रिय कहलाने वाले कवि भी अपने मुख्य पात्रोंकी महत्ता मोक्ष की ओर झुकने में ही देखते हैं । जैन श्रागम और बौद्ध पिटक तो निवृत्ति प्रधान होने से मुख्यतया न्यायदर्शन अ० १ सू० १-- प्रमाणप्रमेयसंशयप्रयोजन दृष्टान्तसिद्धान्तावयवतर्कनिर्णयवादजल्पवितण्डाहेत्वाभासच्छलजातिनिग्रहस्थानानां तत्त्वज्ञानान्निःश्रेयसम् ॥ सांख्यदर्शन अ० १ अथ त्रिविधदुःखात्यन्तनिवृत्तिरत्यन्तपुरुषार्थः ।। वेदान्तदर्शन अ० ४ पा० ४ सू० २२ अनावृतिः शब्दादनावृत्तिः शब्दात् ॥ जैनदर्शन-तत्त्वार्थ अ० १ सू० १ सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः।। १ याज्ञवल्क्यस्मृति अ० ३ यतिधर्मनिरूपणम् मनुस्मृति अ० १२ श्लोक ८३ २ देखो योगवासिष्ठ । ३ देखो महाभारत-शान्तिपर्व । ४ कुमारसंभव-सर्ग ३ तथा ५ तपस्या वर्णनम् । शाकुन्तल नाटक अंक ४ कण्वोक्तिभूत्वा चिराय चतुरन्तमहीसपत्नी, दौष्यन्तिमप्रतिरथं तनयं निवेश्य । भर्ना तदर्पितकुटुम्बभरेण साधं, शान्ते करिष्यसि पदं पुनराश्रमेऽस्मिन् ॥ शैशवेऽभ्यस्तविद्यानाम् यौवने विषयैषिणाम् । वार्द्ध के मुनिवृत्तीनां योगेनान्ते तनुत्यजाम् ॥ रघुवंश १.८ अथ स विषयव्यावृत्तात्मा यथाविधि सूनवे, नृपतिककुदं दत्त्वा यूने सितातपवारणम् । मुनिवनतरुच्छायां देव्या तया सह शिश्रिये, गलितवयसामिक्ष्वाणामिदं हि कुलव्रतम् ।। रघुवंश ३. ७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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