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________________ देते हैं और कभी स्वयं वाचकके ऊपर छोड़ देते हैं। यह तो निर्विवादरूपसे कहा जा सकता है कि हिन्दी या अंग्रेजीमें एक एक दर्शनके विषयमें बहुत कुछ लिखा गया है, किन्तु दार्शनिक एक एक प्रमेयको लेकर उसका ऐतिहासिक दृष्टिसे ऋमिक तुलनात्मक विवेचन प्रायः नहीं हुआ है। इस दिशामें पंडितजीने दार्शनिक लेखकों का मार्गदर्शन किया है- ऐसा कहा जाय तो अत्युक्ति न होगी। 'दार्शनिक मीमांसा' विभागमें जिन लेखोंका संग्रह प्रस्तुत संग्रहमें है, उनमें से किसी एकका भी पठन वाचकको इस तथ्यकी प्रतीति करा देगा। जैनधर्म और दर्शन' विभागमें उन विविध लेखोंका संग्रह है, जो उन्होंने जैनधर्म और दर्शनको केन्द्रमें रखकर लिखे हैं। ये लेख वस्तुतः जैनधर्मके मर्मको तो प्रकट करते ही हैं, साथ ही जैन मन्तव्योंकी अन्य दार्शनिक मन्तव्योंसे तुलना भी करते हैं-यह इन लेखों की विशेषता है। पूर्वोक्त 'दार्शनिक मीमांसा' विभागकी विशेषताएँ इन लेखोंमें भी प्रकट हैं। जैनधर्म और दर्शनके विषयमें हिन्दीमें अत्यल्प ही लिखा गया है। और जो लिखा भी गया है वह प्रायः सांप्रदायिक दृष्टिकोणसे । ऐसी स्थितिमें प्रस्तुत लेखसंग्रह वाचकको नई दृष्टि देगा, इसमें सन्देह नहीं। __इस ग्रन्थमें पण्डितजीका संक्षिप्त परिचय दिया गया है । इससे ज्ञानसाधना व जीवनसाधनाके लिये उन्होंने जो पुरुषार्थ किया है, उसका कुछ परिचय मिल सकेगा । ऐसी आशा है। प्रस्तुत संपादनको अत्यल्प समयमें पूरा करना था। अनेक मित्रोंकी सहायता न होती तो हमारे लिये यह कार्य कठिन हो जाता । श्री महेन्द्र 'राजा'ने इस लेखसंग्रहके प्रूफ देखने में और श्री भोगीभाई पटेल शास्त्री B.A. ने सूची बनानेमें सहायता की; बनारसके सरला प्रेसके व्यवस्थापक श्रीयुत परेशनाथ घोष व शंकर मुद्रणालयके व्यवस्थापक श्रीयुत राजेन्द्रप्रसाद गुप्तने इस प्रन्थको समय पर मुद्रित कर दिया है। अहमदाबादके एल. डी. आर्ट्स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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