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कालिजके अध्यापक श्री रणधीर उपाध्यायने पण्डितजीके संक्षिप्त परिचयका हिन्दी भाषान्तर कर दिया है--- हम इन सबका आभार मानते हैं।
श्री भँवरमलजी सिंघीका तो हम खास आभार मानते है कि उन्होंने आजसे १५ वर्ष पूर्व प्रेरणा की थी कि यदि पंडितजीके लेखोंका संग्रह किया जाय तो प्रकाशनका प्रबन्ध वे कर देंगे। फलस्वरूप पंडितजीके बिखरे हुए लेखोंका इतना भी संग्रह हो सका । श्री नाथुराम प्रेमीजीने पंडितजीके लेखोंका एक संग्रह-' समाज और धर्म' नामसे और जैन संस्कृति संशोधन मंडलने 'चार तीर्थंकर ' के नामसे प्रकाशित किया है- यह भी उसी प्रेरणाका फल है ।
इस ग्रन्थमें संगृहीत सर्वज्ञत्व और उसका अर्थ ' इस एक लेखको छोडकर बाकी सभी लेख पूर्वप्रकशित हैं । यहाँ हम उन सभी प्रकाशकोंका हार्दिक आभार मानते हैं, जिनके प्रकाशनोंसे यह संग्रह तैयार किया गया है। __ कौन लेख कब और कहाँ प्रकाशित हुआ है, इसकी सूचना विषयानुक्रममें दी गई है। संकेतोंकी संपूर्ति अंतमें दी गई सूचीमें की गई है।
__ अन्तमें सन्मान समितिका भी हम आभार मानते हैं कि उसने पंडितजीके लेखों का संकलित रूपमें पुनर्मुद्रण करके उन्हें ग्रन्थरूपमें जनताके समक्ष उपस्थित करने का अवसर दिया ।
बुद्धजयन्ती वि. सं. २०१३
-सम्पादकमण्डल
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