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जिसमें किसी एक धर्मपरम्पराका अनुयायी अन्य धर्मपरम्परा श्रोंकी बातोंसे सर्वथा अनभिज्ञ न रहे और उनके मन्तव्योंको गलतरूपमें न समझे ।
इसके लिए अनेक विश्वविद्यालय महाविद्यालय जैसे शिक्षाकेन्द्र बनें हैं जहाँ इतिहास और तुलना दृष्टिसे धर्मपरम्परात्रों की शिक्षा दी जाती है । फिर भी अपने देशमें ऐसे सैकड़ों नहीं हजारों छोटे-बड़े विद्याधाम, पाठशालाएँ आदि हैं जहाँ केवल साम्प्रदायिक दृष्टिसे उस परम्पराकी एकांगी शिक्षा दी जाती है । इसका नतीजा अभी यही देखने में श्राता है कि सामान्य जनता और हरेक परम्परा के गुरु या पण्डित भी उसी दुनियामें जी रहे हैं जिसके कारण सब धर्मपरम्पराएँ निस्तेज और मिथ्याभिमानी हो गई हैं ।
विद्याभूमि - विदेह
वैशाली - विदेह - मिथिलाके द्वारा अनेक शास्त्रीय विद्याओ के विषय में बिहार का जो स्थान है वह हमें पुराने ग्रीसकी याद दिलाता है। उपनिषदोंके उपलब्ध भाष्यों के प्रसिद्ध प्रसिद्ध श्राचार्य भले ही दक्षिण में हुए हों पर उपनिषदोंके श्रात्मतत्त्वविषयक और अद्वैतस्वरूपविषयक अनेक गम्भीर चिन्तन-विदेहके जनककी सभा में ही हुए हैं जिन चिन्तनोंने केवल पुराने श्राचायका ही नहीं पर आधुनिक देश - विदेश के अनेक विद्वानोंका भी ध्यान खींचा है । बुद्धने धर्म और विनय बहुत बड़े भागका असली उपदेश बिहार के जुदे जुदे स्थानों में ही किया हैं; इतना ही नहीं बल्कि बौद्ध त्रिपिटककी सारी संकलना बिहारकी तीन संगीतियोंमें ही हुई है । जो त्रिपिटक बिहारके सपूतोंके द्वारा ही एशिया के दूरदूर अगम्य भागों में भी पहुँचे हैं और जो इस समयको अनेक भाषाओं में रूपान्तरित भी हुए हैं। इन्हीं त्रिपिटकोंने सैकड़ों यूरोपीय विद्वानोंको अपनी ओर खींचा और जो कई यूरोपीय भाषाओं में रूपान्तरित भी हुए। जैन परम्पराके मूल श्रागम पीछेसे भले ही पश्चिम और दक्षिण भारतके जुदे जुदे भागों में पहुँचे हों, संकलित व लेखबद्ध भी हुए हों पर उनका उद्गम और प्रारम्भिक संग्रहण तथा संकलन तो बिहार में ही हुआ है । बौद्ध संगीतिकी तरह प्रथम जैन संगीति भी बिहार में ही मिली थी । चाणक्य के अर्थशास्त्रकी और सम्भवतः कामशास्त्रकी जन्मभूमि भी बिहार ही है। हम जब दार्शनिक, सूत्र और व्याख्या ग्रंथोंका विचार करते हैं तब तो हमारे सामने बिहारकी वह प्राचीन प्रतिभा मूर्त्त होकर उपस्थित होती है । कणाद और अक्षपाद ही नहीं पर उन दोनोंके वैशेषिक- न्याय दर्शनके भाष्य, वार्तिक, टीका, उपटीका आदि सारे साहित्य परिवारके प्रणेता बिहारमें ही, खासकर विदेह मिथिला में ही हुए हैं ।
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सांख्य, योग परम्पराके मूल चिन्तक और ग्रन्थकार एवं व्याख्याकार बिहार
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