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मेरुसुन्दरगणि-विरचित
इसिइ अचलपुरनइ समीपि नदी एक बिहुं भागे थई । ते-माहि बेट एक' छइ । तिहां तापस वसई । तेह-माहि एक तापस पादलेप-विद्या जाणइ । ते सर्व तापसनइ पगि पादलेप करी लोक देखता जि पगि करी नदी ऊतरइ । लोकनइ महा विस्मय ऊपजइ । पछइ घणा लोक तापसनी महिमा देखी भगत थया । पछइ ते लोक श्रावकनई कहइं, 'तुम्हारइ शासनि कोई एहघउ छइ कि ना ?' तिसिई श्रावक अणबोल्या रहई । इम करतां अन्यदा प्रस्तावि वयरस्वामिना माउला श्री-आर्यसमित आचार्य तिहां आव्या । श्रावक सर्व वांदिवा आव्या । गुरे पूछिउं, 'समाधि छइ १ तिसिइ श्रावक कहई, 'आज-कालि तापसनी महिमा अधिकी छइ । तिणि करी तापसना भक्त जे छई, ते श्रावकनइ हसई छई ।' पछइ गुरे ज्ञानबलिई तापसनउ पादलेप जाणी जे सम्यक्त्वधारी श्रावक हूंता, ते तेड्या । कहिउँ, 'आज तुम्हे पारणउं करवा-भणः तापसनइ घरि तेडउ पछइ श्रावक प्रभाति अई तापस निहंतरिआ। लोके जाणिउं-तापसे श्रावक पालटया। पछइ सर्व लोके परवर्या तापस श्रावकनइ घरि आव्या । तेतलइ श्रावके दूध आणी झांबडा लेई तापसना पग धोवा मांड्या । तिम किमइ जेहवां पुष्करनां पत्र हुई तेहवा कीधा । पछई चंदनई करी लिप्या । इम करतां तापसनां मुख श्याम हुआं । भोजन वीसरी गया। पछई भोजननइ अंति सर्व तापस लोके परिवयाँ नदीनइ कांठइ आव्या । ते तापस पादलेप-पाखइ पाणी-माहि बूडिवा लागा । तेतलइ लोकनां सहश्र हाथि ताली देता कहइं, 'एतला दिन अम्हे लेपनइ बलिई भोलवी वंच्या ।' तिसिइ नगरनउ राजा तिहां आविउ । तेतलई गुरु पणि तिहां आव्या। ते तापसनी अपभ्राजना देखी सर्व लोक देखतां नदीनइ कहिउं, 'अम्हे पेलइ पारि जासिउं । तू माग मूकि ।' इम कहतां नदी बि-खंड हुई । राजा, तापस, गुरु सर्व पेलइ पारि आव्या । तिहाँ तापसे एवडी गुरुनी शक्ति देखी दीक्षा लीधी। तेहनई केडइ नइ ब्रह्मद्वीपी साखा नाम हूउं ।
इसिई वयर-बालक त्रिहु वरसनउ हूउ । तेतलइ धनगिरि-प्रमुख साधु तुंबवण-संनिवेसि आव्या।। तेतलइ सुनंदा आवी कहइ, 'माहरी थापणि आपउ।' तिसिइं धनगिरि वह इ. 'ए वात हिव म कहेसि । तहीइं तां ग्वाही-साख आ कीधा छई। हिवइ तूं मागती लाज नहीं?' सुनंदा कहइ, 'आपणी वस्तु मागतां सी लाज ? हूं माहरु पुत्र लेसु ।' इम विवाद करतां राजभवनि जई सकल श्रीसंघ धनगिरि सह जिमणइ पासइ राजानई बइठा । अनइ सुनंदानउ पक्ष तु राजानइ डाइ पासइ बइठउ । भोजराजा बिहुं पक्षना वचन सांभली कहिउं, 'ए विवाद मइ न भाजइ, पणि जेहनउ तेडिउ बालक आवई' ते लेवा लहइ ।' ए वात चिहुं पासे मानी । तेतलइ सुनंदा कहइ, 'पहिलङ हूँ बालकनइ तेडिसु ।' इम कही सूखडी, खेलणा, चित्रगत पाटी, साकर, टोपरां, खारिक इत्यादि सखडी लेई सुनंदा कहइ, 'वत्सं! एक वार आवि । ए सर्व तूं लिइ। वली घणी सूखडी
ण वचनि वयर चीतवइ, 'यद्यपि माता लोपी न जोईइ. पणि हिवडां जउ मानइ मानिसु, तु संघनी अवहीलना होसिइ।' इम चीतवी माता सामहुन जोयउं। तेतलइ धनगिरि श्रीसंघ देखतां रजोहरण हाथि लेई कहिउ, 'बालक! अम्हारइ तु ए धर्मध्वज ओघउ छई। जउ वांछा हुइ, तु आवि।' तेतलह वयर-बालक ऊलाला करी आघइ विलगउ । सकल श्रीसंघनइमनि उत्साह ऊपनउ । तेतलह सुनंदा क्षण एक विलाप करी कहिवा लागी, 'पहिलउ तां भाईइ दीक्षा लीधी । पछद भरतारि
१. L एक कन्यापूर्ण, Pu. कन्यावर्ण । २. K. तापसनु । ३. K. तेहनु बालक हुई । ४. Pu. लेषणी ।
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