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शीलोपदेशमाला - बालावबोध
अणईछतइ ति पिताई धनगिरि परिणाविउ । पणि थोडा दिन घरे रहिउ । तेतलइ पुण्यवंत जीव एक देवलोक तु चिवी सुनंदानी कूखइ ऊपनउ । तेतलइ धनगिरिहं दीक्षा लीधी श्री-सीहगिरि आचार्य समीप । पछइ पत्नीनउ भाई आर्यसमित महात्मा धनगिरिनइ सहाध्याइ हूउ । थोडे दिहाडे श्रुत सर्वं भणिउ । इसिई सुनंदा गर्भ धरती पूरे दिवसे पुत्र जन्मिउ सर्वलक्षण संपूर्ण । जन्म -कालि स्त्री गीत गाई, उत्सव करई, पणि मुखि कहई', 'आज बालकनउ पिता दीक्षा न लिअत तु जन्म महोत्सव विस्तारि करत । स्त्रीइं भलीई स्यूं चालइ ?' ए वात बालक सांभली चींतवर, 'दीक्षानउ नाम मइ किहाइ सांभलिउ छइ ।' इम ईहापोह करतां जातीस्मरण ऊपनउं, पूर्व भव दीठउ । पछइ बालक चतवइ, 'माहरा गुणरूप जउ ए देखसिइ तु माता दीक्षा लेवा नही दिइ । ' इम विमासी बालक रोवा लागउ । रात्रि नइ दिवस रोतउ जि रहइ । राखिउ इ रहइ नही । पछइ माता ऊभगी कहइ, 'जिम ताहरउ बाप गयउ, तिम तूं पणि जा । इम कहतां छ मास गया ।
तेतलइ घनगिरि श्री. सीहागिरि आचार्य साथि आर्यसमित सहित आव्या । पछइ धनगिरि गुरुनइ वांदीनइ कहइ, 'स्वामिन ! जउ आज्ञा हुइ तु संसारीयां वंदावी आवउं ।' पछइ आर्यसमित सहित धनगिरि जेतलई गुरुनई प्रणाम करी नीकलिउ, तेतलई गुरे कांई सउण विचारीनइ कहिउं, 'आज तुम्हनइ मोटउ लाभ होसिइ । तुम्हे सचित्त अचित्तनउ निषेध म करिज्यो । पछइ 'तह त्ति' करी सुनंदानइ घरि जई धनगिरि 'धर्म - लाभ' कहिउ । तेतलइ सखीइ जि कहिउं, 'हे बहिनि ! धनगिरि आविउ छइ । तूं कहिती बेटउ बापनइ आपिसु तु आपि । ' सुनंदा पणि ऊभगी हूती घनगिरिनह कहइ, 'आपणउ पुत्र लिइ । जिम तूं गयउ तिम पुत्र लेई जा ।' पछइ धनगिरिइं साखीया कीधा, मतउं लिखाविउ । पछइ सुनंदा बिहुं हाथे पुत्रनइ लेई कहिवा लागी, 'एतलड काल मइ पालिउ, हिवs तूं पालि । इम कही पुत्र दीघउ । वली घनगिरिइ कहिउं, 'हिवडां तू रभसपणइ आपइ छइ, उता करे ।' सुनंदा कहइ, 'माहरइ खप नथी ।' इम कही बालक झोली-माहि मूंकिउ, तेतलइ शेतउ रहिउ । पछइ बेहू महातमा पोसालइ आव्या । तेतलइ गुरु साम्हा आवी कहिवा लागा, 'झोली भारे छइ, अम्हनइ आपि । तु वीसामउ लिइ ।' पछइ धनगिरि गुरुन झोली आपी । ते माहि ते बालक- रत्न देखी गुरु कहइ, 'माहि किसिउं वज्र छइ, जे एass भार ?' इम कही वली बालकना मुख सामहुं जोई कहिवा लागा, 'ए बालक मोटउ युगप्रधान होसिइ । ए यत्नइ करी राखिजो ।' तिहां वज्रसार' एहवडं नाम दीघउं । पछइ बालक महासतीनइ समोपिउ, कहिउं, 'रूडी परि राखिज्यो ।' महासतीए सिज्यातर श्राविकानइ भलाविउ । ते स्त्री बालकनइ धवारइ, पालइ, लालइ, नानाविध क्रीडा करावइ । एक स्नान करावइ, एक आंखि आजइ, एक स्तन्यपान करावइ । इम सर्व आपणी आपणी भक्ति करतां ते art- बालक तिम किमइ बोलाइ चालइ, जिम सर्व संघ प्रमोद पामइ । हिव सुनंदा ते वयरबालकनs देखी लोभ-लगी श्राविका प्रतिइ कहइ, 'ए तु माहरु पुत्र, मुझनइ आपउ ।' पछइ श्राविका कहइ, 'ए गुरुनी श्राणि छइ, अम्हे नही आपउं ।' इणि वचनि सुनंदा शाखा - पतित वानरीनी परिहं निरास हुई । तुहर पुत्रना स्नेह - लगइ किवारइ किवारइ आवीनइ धवारइ, किवारइ आपइ उत्संगि धरइ ।
१. Pu. वज्रकुमार ।
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