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शीलोपदेशमाला - बालावबोध
दुक्कर वस्तु जोईइ तु थूलभद्रनी, जीणइ बार कोडि धन मुझ साथि परिहरी, एहवउ शोल पालिउं ।' इत्यादि श्री-थूलभद्रना गुण वर्णवतां पामी दीक्षा लोधी । कोशा वली आपणई अभिग्रहि रही ।
इस बार वरसी दुकाल पडिउ । तिणि साधु-संघ महा-कष्टिई दुकाल ऊतरिउ । पणि महात्मानइ गुणवानइ अभावि सिद्धांत वीसरिया । पछई श्री संघ पाडली पुरि नगरि सर्व एकठउ मिलिउ । जेहनइ जि कांइ मुखि आवत हूंत सर्व एकटउं करतां इग्यार अंग पूरा कां । पणि पूर्वनो विद्या जोईइ, तेह-भणी भद्रबाहु स्वामि-समीप, तेडिवा-भणी बि महात्मा मोकल्या | तिसिइ भद्रबाहु स्वामि कहइ, 'मइ तु महाप्राण ध्यान मांडिउं छइ । तिणि करी मइ नही अत्राइ ।' पछs महातमा पाछा आव्या । वही संधिई पूर्वना उद्धार-भणी बि महात्मा मोकली कहाविडं, 'जि को संघनइ न मानइ तेहनइ सिउ दंड ?' गुरु कहर, 'तेहनई संघ बाहरि कीजइ । ' इम कहिई, महात्मा कहई, 'तु तुम्हे जि संघ बाहरि था सिउ ।' इणि वचनि ससंभ्रांत श्री-भद्रबाहु स्वामि कहिवा लागा, 'संघनउ बोल माथा ऊपरि । पणि जु संघ मुझ ऊपरि कृपा करइ तु महात्मा प्रज्ञावंत जि को हुइ ते मोकलउ । तेहनई हूं सात वाचना देसु । इम संघनइ प्रसादिइं माहरउँ कान सीझइ अनइ महात्मा पणि भण्या जाई ।' इणि वचनि संघिई थूलभद्र - प्रमुख पांच सई महात्मा भणिवा मोकल्या | तिहां भद्रबाहु स्वामि- कन्हइ भणिवा लागा ।
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भोगवी नइ हेलाई हूं ते सार्थवाह प्रतिबोध
That कालि महात्मा भणतां भणतां ऊभगा । सर्व पाछा आव्या । एकलउ थूलभद्र तिहां रहिउ भणइ । इम भणतां भणतां दस पूर्व भण्या । तेतलई श्री थूलभद्रनी बहिन दीक्षा लेईनइ वांदिवा आवी । गुरुनइ पूछ्इ, 'भगवन ! थूलभद्र किहां ?' तिसिद्धं गुरे कहिउं, 'देवकुल-माहि सज्झाय गुणि छइ ।' पछइ महासती भाई वांदिवा तिहां आवी । तेतलइ थूलभद्रहं विद्यानहं बलि सिंहनउ रूप कीधउँ । महासती सीह देखी पाछी नाठी । तिहां जई गुरुनइ कहर, 'भाईनइ 'कुशल नही ।' तिसिहं गुरे उपयोग देई जोईनइ कहिउं, 'जाउ वांदउ । कुसल छइ ।' पछइ महासती हर्षी हुंती भाईनइ वांदी आगलि बइठी । तिमिइ थूलभद्र पूछ३, 'सिरीउ किहां ?" तिवारइ महासती कहई, " अम्ह साथिई दीक्षा लीधी । पणि लगारई भूख्यउ रही न सकइ । एकासणउं पणि न करइ । इम करतां पजूसण आविउँ । पछइ महासतीए सिरीयाभाईनइ पोरिसि करावी, पोरिसि पहुती, साढ पोरिसि करावी । इन करतां सांझ झालवी । पछइ महासतीए कहिउं, 'हिवइ राति पडी, प्रभात पारणउं करे ।' इम अर्धरात्रि वउलिई आकलउ हूउ । तिहां आराधनापूर्वक मरण पामिउ । प्रभाति ऋषि - घातना पाप लगइ महासती पारणउं न करइ । इसिइ संघ मिलिउ । सर्व वात संघआगलि कही । संधिदं वलतउ कहिउं, 'तुम्हनइ पाप न लागइ। कांइ तेहनइ तारवा-भणी तुम्हे उद्यम कीधउ ।' तुहइ महासती न मानइ, इसिउं कहइ, 'जउ वीतराग मुखि करी कहई तु पारण काउं ।' छह सर्व मंत्र काउसग्गि रहिउ । तिहां शासन- देवता आवी कहइ, 'कउण काज १' तिसिद्धं संघ कहइ, 'श्री - सीमंधर- स्वामिनइ पूछी आवड - 'महासतीनइ पाप लागउं कि ना ?' तेतलइ शासन- देवता कहइ संघन, 'तुम्हे काउसग रहउ, जिम हूं पूछी आवउं ।' महासनी कहर, 'अहे आपणइ मुखि पूछिसिउं ।' पछइ शासन देवताड़ करसंपुटि महासतीनइ लेई श्री - सीमंधर स्वामि- कन्हइ आणी । तिहां महासतीड वांदीनइ पूछिउं । तिसिहं स्वामी कहर, 'तू निर्दोषि ।' पछः स्वामीह शासन-देवता देखता चूलिका आपी । शासन-देवता यक्षा महा१. K. श्रीमुखिई । २. Pu. नर्दोषइ ।
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