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________________ मेरुसुन्दरगणि-विरचित लागउ, 'स्वामी ! ए पाखंड आगइ मइ जाणउं हूत उ, पणि आज मइ तुम्हनइ कहिउँ।' पछई वररुचिनी माम गइ । गांठडी वररुचिनइ दीधी । राजा घरि आविउ । व वररुचि सापनी परिइ शकडालना छिद्र जोइ । इम अन्यदा राजाना घर इकडी नेसाल मांडी। तिहाँ मुहताना घरनी दासो एक पंडितिइं आवर्जी। ते-कन्हलि मुहुतानी सर्व वात पूछतां अनेरइ दिहाडइ मईतानइ घरि सिरोआनउ वीवाह मंडाविउ । आपणइ घरि जिमाडिवा. भणी छत्रीसइ कारखाना करावोइ। छत्र, चामर, जरहि, जीणसाल, वाजिन नवानीपजाइ छई। एहवा वररुचि पंडित अवसर लही, सूखडीइं बालक आवर्जी, एक लोक बालकनइ मुखि ऊचरावइ वेत्ति लोको मुढो यत्छकडालः करिष्यति । हत्वा नंदं नृपं राज्ये श्रीयकं स्थापयिष्यति । ए लोक बालक हीडतां फिरतां मुखि ऊचरइ । तिसिई ए लोक राजाइ गउखि बइठा सांभल्यउ । आपणा जण मोकल्या । शकडाल मुहताना घरनउ वरेत्र जोआवो, म.ने चोतवा, 'जे वात बालक ऊचरइ ते अलीक न हुइ । अनइ जउ मइ घर जोआविउं तु सा वी वात दीठी।' पछइ राजा मन-माहि डंस राखी रहिउ। प्रभाति महुतउ राजानइ जेतलइ प्रणाम करइ तेतलइ राजा ऊपराठउ हूउ । ए वात देखी शकडाल घरि आवी, सिरीउ तेडा, कहिव लागउ, 'वत्स! सांप्रत कुणिहि कि अलीक बोली राजा सकोप कीधउ | तु आज आपगइ कुलि उत्सात दोसइ छ । पणि जु हूँ मरउं तु उत्पात टलई। ते-भणी प्रभाति हु राजा-समीप जई जेतलइ प्रणाम करउं तेतलइ तूं मस्तक-छेद करे ।' ए वात सांभली सिरीउ कहइ, 'तात ! ए वात मइ न चाल ।' तिवारड शकडाल कहइ. 'एक वृद्ध मुझनइ हणी आपणउं कुल ऊधरि । ई तालपट विष खाउ छउं । तूं पवाडउ लेजे ।' इम मोटइ कष्टि समझावी, गजा समापि आवी. जेतलई प्रणाम करइ तेतलई वली राजा ऊपराठउ हूउ । तिसिई शकडालि विष मुखि घातिउं, तेतलइ सिरीई खांडइ करी पिताना मस्तकनउ छेद के धउ। राजा 'हा हा' कतिउ सिरीआनई कड्इ, 'ए तई सिउं कीघउ तेतलइ सिरीउ कहई, 'स्वामी! तोणइ सोनइ सिउ को जइ जीणई कान टइ ए वात सांभलो राजा तूठउ, प्रधाननी मुद्रा देवा लागउ। तेतलइ सिरीइ कहिउं. 'माहरउ वडउ बांधव थूलभद्र वेश्यान्इ घरे छइ, ते उदय नइ अस्त जाणतउ नथी । वेश्यानइ धरि बार कोडी सुवर्ण विलसी। एहवउ थूलभद्र तेडावि मुद्रा दिउ ।' पछइ राजाई ते थूलभद्र तेडाविउ, पितानउ मरण कहिउँ अनइ कहिउं, 'राजमुद्रा लिउ ।' तिमई थूलभद्र कहइ, 'विमासउं।' पछइ राजाई कहिउं, 'अशोकवन-माहि जई विमासि ।' पछइ थूलभद्र चीतवई'तां संसारनउ स्वरूप अति असार जे पिता मूउ मई न जाणिउ। तु हिवह ईणह अधिकारि सरि' इम विमासी 'करेमिभंते' अरिहंत-सिद्ध-साखि जेतलई ऊचरइ, माथइ लोच करइ, तेतलई देवताए वेस दीधउ।ते पहिरी राजा-समीपि आवि धर्मलाभ कही न नीकलिवा लांगत। तेतलह राजाई कहिउँ, 'ए सिउं?' तिवारइ मुनिइ कहिउँ, 'इम जि विमासिउं ।' पछइ थूलभद्र नीकालेउ । राजाइ जण मोकल्या, 'जोउ किहां जाइ? तेतलई जिम अंतिजनउ पाड परिहरोई तिम वेश्यावाडउ परिहरी श्री-संभूतिविजय आचार्य-समीपि दीक्षा लीधी । इसिइ राजाई सिरीआनई प्रधान-मुदा दोधी । सिरीउ घरि आवी विमासइ, 'ए तां सर्व विलसित वररु.चन कोउं । तु पितानउ वयर किम वालीसिइ ?' इम विमासी कोशानइ घरि आव थूलभद्रनो कथा मांडी। जिम टंकणखारि सुवर्ण गलइ तिम सिरीयानइ वचनि कोशानउ मन भेदिउं । तिसिइंसिरीउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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