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शोलोपदेशमाला-बालासबोध
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इसिई पुरणनउ जीव वैजयंत-तउ चिवी श्रावस्तीइ रुक्मी नामा राजा हउ । धारणी नामि प्रिया । अन्यदा अपणी पुत्रीनउं रूप देखी रजा कुंचकी-प्रति कहइ, जेहवउ माहरी पुत्रीन रूरसंपदा, तेहवू अनेथि नथ ।' तेतलई कुचकी कहइ, 'स्वामिन ! ए गर्व म करउ । जिणि कारणि मि थेलानगरीई कुंभराजानी पुत्री मल्लीकुमरी रूइ. सोभाग्ये करी सुंदर छ। एहवी देवलोकि पण न दीसइ । ए वात सांभली वरण,नइ काजि कुंभराजा-समीपि दूत मोकलिउ पूर्व स्नेहलगई ॥३
इसिइं वसुनउ जीव पणि वैजयंत-इतु चिव वाणारसी-नगरीइ शंख नामा राजा हउ । एतलइ मल्लीनां कुंडल काननां भागां । ते सोनारनइ दीधां समारिवा-भणी । पणि सोनार कहइ, 'स्वामिन ! ए देवतादत्त मई समराइ नही ।' निसिई राजाई रोस-लगइ नगरी-हूंतउ कादिउ । ते सोनार रीसाणउ वाणारसीई आवी राजानइ मिलिउ । राजाई देसनां आश्चर्य कउतिग पूछयां । तिणि सोनारइ मल्लीकुमरीनां रूपनी वात जेतलई कही, तेतलइ पूर्वभवना स्नेह-लगइ वाणा भणी दूत मोकलिउ ॥४
एहवड वैश्रमणनउ जीव वैजयंत-त् चिवी हस्तिनागपरि अदीनशत्र राजा हउ । एकदा मल्लीनउ सहोदर मल्लकुमार, तीणइ चित्रमर-पाह' चित्रसाली चीतरावा मांडी । हिव ते चित्रगर-माहि एक चित्रगरनइ देवतानउ वर छइ । एक अंगनउ प्रदेश देखी सर्व अंगनउ रूप लिखा । इसिइ गउ बनइ अंतरालि मल्लीकुमरीना पगनउ अंगूठउ दीठउ । पछइ तिणि चित्रगरि मल्लीकुमरीनउं रूप जेहबउ हूतउ, तेहवउं संपूर्ण रूप लिखिउं। एहवइ मल्ल-कुमार चित्रशालीमाहि आविउ । तिहां मल्ली देखी पाउ वलिउ । तेतलइ धात्रीइ सम्यग जोई नइ कहिउँ, 'वत्स ! ए तउ चित्रगत मल्लीनउं रूा छन् । साक्षात्कारि नथी ।' पछइ मल्ल रीसाणइ ते चित्रगरनउ हाथ छेदी देस-हूंतउ काढिउ। ते चित्रगर फिरतउ फिरतउ हस्तिनागपुरि अदीनशत्र-राजा-आगलि आवी मल्लीनी वात कही। तेतलइ पूर्वभवना स्नेह-लगइ वरणानइ काजि दूत एक मोकलिउ॥५
एतलइ वली अभिचंद्रनउ जीव वैजयंत-तु चवो कांपिल्यपुरि जितशत्रु राजा हूउ । इसिइ मल्लीकुमरी-साथि को एक पाखंडनी धर्मनउ वाद करतां ऊतर नावइ । तेतलइ ते बाहरि कादो। पकड रीसाणी कांपिल्यनगरइ जितशत्रु राजा-आगलि मल्लीन रूप वर्णविउ । तिणि राजाइ अनुरागना वश-लगी दूत मोकलिउ वरण नइ काजि ॥६
इसिइ श्री-मल्ली पणि अवधिइ करी भवांतरना मित्र पूर्वस्नेहनउ कारण जाणी ते प्रतिबोधवा-भगी आपणा घर- पमीषि अशोकवन-माहि रत्नमय पीठ कराविउ । तिहां सुवर्णमयी पूतली एक करावी । ऊपरि वली दांकणउं करावि । पणि पूतली माहि पोली कीधी छइ । हिवइ जे डाहा छई, तेही इम जाणई जु ए जीवती पूतली छइ । वली पाखती जाली सहित घर कराविउं । बारणा छ जुजुआं कर व्यां । पूतली-पाछलि भीतिइं छिद्र राखिउं । सर्व आहारनी पोडी ते पोली पूतली-माहि मूकावोइ । पूतलीनइ तालूइ आहार मूंकी ऊपरि सोनानउं ढांकणउं दीजइ । सर्व आभरण पहिरावीइ । इसिई छइ राजाना दूत, जे जूजूआ आव्या हता, ते भगजाई पाछा वाल्या । पछइ छइ राजा रेसाणा हूंता आपणां आपणां सर्व सैन्य लेई तिहां आया। मिथिलानगरो वीटी। कुंभराजा आकुलउ हूउ । तेतलइ मल्लीकुमरीइ आपणी बुद्धि करी कुंभराजानइ कहिउं. 'तात ! आज रातिइं एकेकउ जुजउ राजा तेडावउ ।' पछ्इ कुंभराजाई
१. L. पाहंति । २. Pu. आहार नीपाई ते पूतली ।
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