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________________ मेरुसुन्दरगणि-विरचित किंतु ए शंख नारायण टाली कोई हाथि लेई न सकइ ।' तिसिइं श्री नेमिकुमारिइं पंचयश शंख लेई, राखतां विचालई मुखि करी वायउ । तेहनइ नादिइं रखवाला अचेत हुई भुइं पडिया । द्वारवतीमउ गढ पणि कांपिवा लागउ । नारायण संखनउ नाद सांभली ससंभ्रांत चउ-पखेर जोइवा लागउ । 'ए' किसिउं आश्चर्य १ वली मन-माहि चिंतविवा लागउ, 'बीजा खंड-हंतउ बीजउ नारायण आविउ कि स्यूं ?' तेतलई पाहरीए जई कहिउं, 'स्वामी ! श्री नेमिकुमार आव्या हता । तीणे राखतां विचालई शंख लेई वायउ ।' ए वात सांभली नारायण बीहिवा लागउ, 'जिम दांतिइं कष्टिई करी मोदक भांजइ अनइ जीभ हेलाई लाभ लिइ, तिम मई त्रिणि सई साठि संग्राम करी त्रिहइ खंड साध्यां, पणि नेमिकुमार हेलाई राज लेसिई ।' इसिउं चीतवी नारायण आप आयुधशाला-माहि आविउ । मन-माहि बीहतउ नेमि प्रति कहइ, 'बांधव ! ए संख तुम्हे पूरिउ ?' नेमिकुमारिई कहिउं, 'हा, ए संख मई पूरिउ ।' तिसिई नारायण कहइ, 'आवउ, आज आपणपे आपणउं चल जेईइ ।' इम कहिई बेहू मालाखाडइ आव्या । तेतलई नेमिकुमार नारायण प्रतिइं कहइ, 'बांधव ! माहोमाहि आपणपे झूझतां सोभइ नही । पणि एक एकनी बांह 'नमावी जोईइ, अनइ बलिभद्र साखीउ कीजइ ।' इणि ववनि नारायणि बांह लांबी कीधी । तिसिई नेमिनाथिई जिम कमलनाल नमावीड. तिम नारायणनी बांह नमावी । पछइ नेमिकुमारिइं आपणी बांह लांची कीधी, तेतलई नारायण सर्व बलिई करी विलगउ, वानरनी परिइं हीचिवा लागउ, पणि लगारइ नमावी ने सकइ । तिसिई हरि कहिवा लागउ, 'धन्य अम्हारउं कुल, जिहां एहवा महा बलवंत पुरुष वली बलदेव-प्रतिई कहइ हरि जउ, 'एहवउं बल आज चक्रवर्ति-माहि नथी, तु ए कांड छड खंड साधइ नही ?' ए वात सांभली बलिभद्र नारायणना मननी भ्रांति ऊतारिवाभणी कहइ, 'बांधव ! एहनइ जि बलिई आपण राज्य भोगवीइ छइ । तुझनइ किसिउं वीसरिलं. जहीइं जरासिंधु साथिई झूझ करतां जराविद्या ऊतारी ? अनई वली नैमित्तिकि कहिउँ कर ए बावीसमउ तीर्थ कर होसिई । राज तु नरकन कारण छइ, तेह-भणी एहन राजनी मनसा नथी । ए बाल-ब्रह्मचारी ।' ए वात सांभली गोविंद हरखिउ अंतःपुर-माहि आवा कहिवा लागउ जउ, 'नेमिकुमारनइ अंतःपुर-माहिं आवतां आडी लाकडी न देवी ।' वली रुक्मिणी-सत्यभामानइ कहिउ, 'तुम्हे आपणा देवर आवर्जिज्यो ।' पछइ नेमिकुमार एकलउ इ अंतःपुर-माहि जाइ-आवइ । एहवइ शिवादेवी कहइ नारायणप्रतिई जउ, 'तुम्हे नेमिकुमारनइ मनावउ, जिम अम्हे एक वार वीवाहनउ उत्सव देखउं।' पछड नारायग-प्रमुख सर्व यादव मनावई, पणि नेमिकुमार मानइ नही । इसिई एकदा वन-माहि खडोखली' झीलतां, पाणिग्रहण बलात्कारिई मनाव्या श्री नेमिकुमार । तेतलई नारायणि उग्रसेन. राजानइ घरि जई राजीमती मागी, क्रोष्टुकि तेडो लग्न 'जोआविउं । तिसिई कोष्टक कहा 'हरिनाशयनि वोवाह जुगतउ नही ।' तेतलइ नारायण कहइ, 'हूं तु साक्षात्कारि छउं, तु ए दोष नही ।' बली नेमिनाथ तु अधूत छ, पहिडतां वार नही लागइ ।' तु नैमित्तिक कहइ, 'श्रावण सुदि छठिइ लगन छइ ।' ए वात सांभली उग्रसेन-समुद्रविजप वीवाहनी सामग्री करिवा लागा । १. Pu. ए सिउ. २. Pu. कि सउं. ३. K नमाडी ४. Pu. जोवराविउं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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