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________________ शीलोपदेशमाला-बालावबोध ३९ पूतलीइ कही जउ, 'वरमाला माहरा स्वामीनइ गलइ घाति ।' तिसिई कन्याई पूर्व-भवना स्नेह-लगइ जे कुमार कापडीनइ वेषिइ छइ, तेहनइ कंठि वरमाला घाती । ते देखी सर्व राज. कुमार रीसाणा हंता, हथीआर लेई झूझवा लागा। तिसिईएकलउ कुमार झुझिवा तिम लागउजिम सर्व राजकुमार भागा । तिसिइ सोमप्रभ माउलउ अपराजितनइ ओलखी कहिवा लागउ. जउ. 'घणे दिहाडे आज तू दीठउ। भमरानी रीतिइं तुम्हे काई भमउछउ १ मातापिता तुम्हारी माधि घणी करई छई। सोमप्रभिइ बीजा सर्व राजा समझाव्या । पछइ स्वाभाविक रूप करी, भलइ लग्नि पाणिग्रहण कीघउं । अनइ वली जितशत्रुराजाई आपणा मुंहतानी बेटी विमलबोधनइ देवरावी । केतलउ काल तिहां रहिया । तिसिई कुमारनी सुधि जाणी, हदिनंदनराजाई आपणउ प्रधान कीर्तिराज मोकली, अपराजित तेडाविउ । पछइ कुमा.रई खेचरी-भूचरी सर्व स्त्री परिणी हूंती ते एकठी करी, स्वसुरानई पूछी, तिहां-हूंतउ चालिउ । थोडे दिहाडे सिहपुरि नगरि आवी मातापिता प्रणम्या । पछइ हरिनंदन-राजाई पुत्रनइ राज देइ आपणपे दीक्षा लीधी। चारित्र पाली, मोक्ष पहुतउ । पछइ अपराजित राजा विमलबोध महुता-सहत सुखिइ राज पालतां, अवसर जाणी, अपराजिति आपणा पद्म-पुत्रनइ राज देई, स-कलत्र चारित्र लीघउं । केतलउ काल चारित्र पाली, प्रांत-समइ अणसण लेई, आरण-देवलोकि ईद्र-सामानिक हउ । इसिइ ईणइ द्वीपि हस्तिनागपुरि, श्रीषेण राजा, श्रीमती भार्या, तेहनी कृखिइ अपराजितनउ जीव, इग्यारमा देवलोकतु चवी, शंख-स्वप्न-सूचित हूंतउ अवतरिउ । पूरे दिवसे पुत्र जायउ । एहव नाम सउणानइ अनुसारि दीधउं । इसिई विमलबोधनउ जीव पणि सुबुद्धि महुता नइ घरि मतिप्रभ एहवइ नामिइ पुत्र हर | एहवइ प्रस्तावि देसनो सीमना लोक राजानइ आवी पुकार करई जउ, 'स्वामी ! विशाल-शगि डूगरि समर नामा पल्लीपतिई सर्व धन अम्हारा लूटी लीधां । अम्हे तु वसी न सकउं ।' पछइ राजाई प्रयाण-ढक्का देवरावी । जेतलइ राजा चालिवा लागउ, तेतलइ शंखकुमार राजानइ प्रणमी कहइ, स्वामी ! कीडी-ऊपरि तुम्हारी सो कटको ?' पछइ राजाई कुमारनइ आदेश दीधउ । तिसिई शखकुमार सर्व कटक एकठडं करी पालिनइ सीमा-सेढइ गयउ । तेतलइ पल्ली-पतिइं शंख आवतउ जाणी झूझ करिवउं मांडिउं । तिसिइं शंखकुमारि तिम किमइ युद्ध कीधउं, जिम पल्लीपतिइं गलइ कुहाडउ करी शंखकुमारनइ शरणि आविउ । पछइ जे जेहनी वस्तु हूंतो, ते तेहनी देवरावी । दुर्ग आपणइ वसि करी, शंखकुमार पाछउ वलिउ । तिसिइं अंतरालि आवतां, रात्रि सुखनिद्राइं सूतां, एक स्त्रीनउं रुदन सांभली, कुमार स्त्री-समीपि आवी पूछइ, 'हे स्त्री ! तुझनइ कउण दुक्ख ?' तिसई स्त्री कहइ, 'अगदेशि चपानगरी, जित' रि राजा, कीर्तिमती प्रिया, तेहनी पुत्री यशोमती जेतलइ यौवनावस्थाई आवी, तेतलइ श्रीषेणर जानु पुत्र शंखकुमार, तेहना गुण सांभली यशोमती अनुराग धरवा लागी । ते वात राजाई पणि सांभली । पछइ श्रीषेणराजा-भणो हस्तिनागपुरि संबंध करिवा-भणी जण मोकल्या । तेतलई मणिशेखर-विद्याधरि, जे आगइ कन्या मांगी हूंती, तोणइ ए वात जाणी यशोमतो आहरी । तेहनी बांहिइ वलगी हूं इहां-ताई' आवी । तिसिई तिणि पापीई बलात्कारि हाथ १. K इहांलगइ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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