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मेरुसुन्दरगणि-विरचित
तेतलिई 'राखि' 'राखि' करतउ कोई एक पुरुष जत उ आवी कुमारनइ सरणइ पइठउ । तेतलई कुमारि कहिउं, 'म बीहि' । एतलइ 'हणि' 'हणि', 'मारि' 'मारि' करतां राजाना पुरुष आवी कहइ, 'ए चोर । ईणई धणा लोक 'मुस्या छइ, अम्हे तु मारिसिउ ।' तिसिइं कुमार हसीनई कहिह्वा लागउ, 'इंद्र जउ आपणपइ आवइ, तु ही एहनइ हूँ नापउं ।' तिसिई ते जण कुमारनई हणवा ऊठया । तेतलई कुमार साहमु थयउ । सर्व नाठा । पछई राजानई जई वात कही । तिसिई सुकोसल-राजाई आपणउं घणउ सैन्य मोकलिउ । ते ही कुमारि भांजिउं । पछई राजा आपणपई आविउ । झूझ करतां सुकोशल राजाई आपणा मित्रनर पुत्र कुमार ओलखी युद्ध निवारिउं । पछई अपराजितनइं आपणइ घरि लेई आविउ । राजाई कुमारनई आपणी बेटी कनकमाला परिणावी । कुमार केतलाएक दिन तिहां रही, देसांतरनां कउतिग जोवा-भणी, राजानइ अणकहिई, रात्रिइ बेहू चाल्या । मार्ग उल्लंघतां नगर दुकडी एक कालिकादेवी छइ, तेहना भुवन-मांहिं जेतलई आव्या, तेतलई कुमारि रुदन सांभलिउं । पछइ खड्ग हाथि लेई शब्द-केडिइ जि नीकलिउ । तिसिई तिहां एक आगिनउ कुड, ते-समीपि स्त्री एक, पुरुष एक खड्ग हस्ति, देखी कुमार कहइ, 'अरे दुरात्मन ! ए स्त्रो मूकि, नही तु झूझ करि ।' तिसिई विद्याधर अनइ कुमार झूझ करतां विद्याधर हारिउ । पछई कुमारि ते रत्नमालानउं पाणिग्रहण कीघउ । केतलउ काल तिहां रही पृथ्वी-मांहिं परिभ्रमण करतां कंडनपुरि आव्या । तिहां केवलज्ञानी देखी, भाव-सहित केवली वांदी, उपदेस सांभली, पूछिवा लागा, 'स्वामिन ! अम्हे भव्य, कि अभव्य ' तिसई केवली कहइ, 'तुम्हें भव्य छउ, कुमार ! सांभाल, जिणि कारणि ए पांचमा भव-हूंतउ नवम भवि तूं श्री नेमि-नामा तीर्थकर थाएसि । अनइ ए मंत्री-पुत्र ताहरइ पहिलउ गणधर थासिइ ।' ए वात सांभली बेहू हर्ष धरता पृथ्वी-मांहिं कउतिग जोई छई ।
इसिई आनंदपुरि, जितसत्रु-राजा, धारणी प्रिया, तेहनी कुखिइ माहेन्द्र-देवलोक-इतु रत्नवतीनउ जीव चवी, प्रीतीमती नामि पुत्री हुई। अनुक्रमिई वाधती, सकल शास्त्र भणी, यौवनावस्थाई आवी । तिसिई पिता-आगलि प्रतिज्ञा कीधी, 'जे मुझनइ विद्याइ करी जीपिसिइ, ते माहरउ' पति भार होसिइ । एहवी प्रतिज्ञा जाणी पिताइ स्वयंवरा-मंडप मंडाविउ । तिहां सकल राजा भूचर खेचर तेडाव्या, अनइ सर्व तिहां आव्या । इसिई मित्र-सहित अपराजित कुमार पणि आविउ । तिणि मनि एहवउ चीतविउ जउ, 'रखे अम्हनइ कोई ओलखई। तेह-भणी मुखि गुटिका द्याती रूपनउ परावर्त कीधउ। तिसिइ प्रीतिमती कन्या हाथि वरमाला धरी, आगलि प्रतिहारिणी सर्व राजाना अवदात प्रगट करती, सभा-मांहिं आवी । तेतलई सर्व राजा तेहनइ रूपि मोहिआ हंता स्तंभनी परि हुआ। तिसिइं प्रीतिमतीइं प्रश्नोत्तर मांडया । पणि वलतउ उत्तर कोई न दिइ । तिवारइं लोके कहिउं, 'विधात्राइं एहनई सरीखउ वर वीसारिउ ।' पछइ राजा सचिंत हउ, 'एतले राजाए मिले जु कन्यानउं मन न मानिउं, तु हिव सिउ कीजिसइं?' इसिइ हरिनंदन (?) अपराजितकुमार चीतवइ, 'स्त्री-साथिई वाद करतां सोभइ नही, पणि तथापि कांई आपणउ पराक्रम देखाडीइ ।' पछइ कुमारि पूतलीनइ माथइ हाथ देई पूतली बोलावी। पुतली कन्याप्रति कहइ, 'कुण गुरु ? कुण देव ?' इत्यादि पृच्छा-उत्तर करतां राजकन्याइ हारिउ । तिसिई
१. L. लुस्या २. Pu.K. मारहइ
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