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मेरुसुन्दरगणि-विरचित नैमित्तिक कहइ, 'राजा ! सांभलि । जहीइ झूझ करतां ताहरा हाथ हूंतू खांडउं जे लेसिई अपहनतीश्वरे जेडई माथी फनी वृष्टि होसिदं, ते ताहरो पुत्रीनउ पति भतार होसिइ ।' ए वार सांनी राजाई नै मेत्तेक दानि करी संतोषिउ ।
इसिई भरतक्षेत्रि चक्रपुरि, राजा सुग्रीव, तेहनउ बि भार्या छइ, एक यशश्विनी, बीजी भद्रा । ते बिहुनई सुमित्र अनइ पद्म एहवइ नामि बि पुत्र हया । भद्रानु पुत्र पद्म यशश्विनीनउ पुत्र सुमित्र । हिव भद्रा चीतवइ, 'सुमित्र-थिकां माहरा पुत्रनइ राज नही हुइ ।' तेह-भणी भद्राई सुमित्रनइ विष दीध। सुमित्र आकुलउ हूउ, तेतलइ राजा तिहां आविउ । अनेक मंत्रतंत्र कीधा, पणि गुण न ऊपजइ । तिसिई लोके वात प्रकट कीधी जउ, ' भद्राई सु मेत्रनइ विष दीधउं ।' ए वात सांभली भद्रा नाठी । राजा सुमित्रनइ धर्मोषध कराविवा लागउ । वली सुभत्रना गुण चीतवी चीतवी रोवा लागउ। तिसिह कउतिगीयाल चित्रगति विमानि बइठउ ते नगर-ऊपरि आविउ । नगरना लोक दुःखी देखी तिहां आवी लोकना मुख-इतु वात जाणी। जेतलइ मंत्र गुणी पाणीइ सुमित्र छांटिउ, तेतलइ सुमित्रनउ विष ऊतरिउ । सुमित्र बइठ 3 हउ । लोकना बंद देखी कहइ, 'एवडा लोक मुझपाखती कांइ मिल्या छइ ?' तिसिई राजाई विष-प्रदान भद्राई जिम दीध अनइ चित्रगृतिई जिम विष वालिङ इत्यादि सर्व वृत्तांत कहिउँ । तिसिई सुमित्र ऊठी विनयपूर्वक चित्रगतिनई' कहइ, 'तई जे उपगार कीधउ, तीणई ताहरउ कुल जाणिउ । परं तथापि आपणउ कुल प्रकासउ ।' इसिइ चित्रगतिनइ सेवकइ सर्व वात कहो । पछइ सुमित्रिइं चित्रगतिनइ भोजनादिक घणउ विनय साचविउ । इसिइ चित्रगति चालिवा लागउ । तिसिइ सुमित्र कहइ, 'हे मित्र ! सुयशा नामिइ केवली इहां आवणहार छई ते वांदी पछइ घरि पहुचिज्यो ।'
तिसिई केवली आविउ । राजादिक सर्व लाक वांदिवा गया । केवली उपदेस देवा लागउ । तिसिइ चित्रगति गुरुनइ वांदी सम्यक्त्त पडि वजइ । तिसिई सुग्रीव गुरुनइ वांदो पूछिवा लागउ जउ, 'भद्रा सुमित्रनइ विष देई किहां गई ?' तु केवली कहइ, 'नासता चोरे झालो । सर्व वस्त्र आभरण लेई पालि-माहि लेइ गया । तिहां वणिजारा आव्या, तेहनइ हाथि भद्रा वेची । वली ते वणिनाराहंती नाठी। वन-माहि दविई दाधी । पछई मरी, पहिलइ नरगि गई । तिहां-हूंती तियच-माहि भमी, चंडालनइ घर भार्या हुई । तिहां संउकिनइ संबधिई मरी, वली त्रीजइ नरगि गई । इ. त्यादि अनंत दुक्ख पामिसिइ ।' इत्यादि उपदेस सांभली वैराग्य-लगइ सुग्रीव-राजाइ दीक्षा लीधी, सुमित्रनइ राज्य दीधउं । चित्रगति आपणइ नगरि आविउ । पछइ सुमित्रइ ते पद्मभाईनइ के. तलाएक गाम दीधां । पणि तु ही रीसाणउ हूंत उ नीकली गयउ ।
एहवई प्रस्तावि अनंगसिंहनउ पुत्र कमल नामिई विद्याधर, सुमित्रनी बहिन कलिंगराजानी भार्या अपहरी । तिसिई सुमित्रनी प्री ते मनि आगी, चित्रगतिई कमल विद्याधर-साथिइं संग्राम मांडिउं । वेटानइ सखाथति अनंगसिंह आविउ । तु ही तिहां चित्रगतिइं रणांगणि सर्व शस्त्र नीठालियां । तिरिई रत्नवतीनउ पिता देवतादत्त खड़ग लेई वइरी चित्रगति-प्रतिइं कहा, 'अरे ! नासि नासि, नहीतरि ईणइ खांडइ ताहर उ मस्तक-छेद थासिइ ।' तिसिई चित्रगति
| L. Pu. गति प्रति, २. L. नीठव्यां P नीठव्या.
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