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शोलोपदेशमाला-बालावबोध वात कही जउ, 'धन अनइ धनवतीनई ए संयोग मेलउ । आगइ तुम्हारइ स्नेह छइ । विशेष तु धनवतीनई संयोगि स्नेह गाढेरउ वाधिसिइ।' पछइ राजाईए वात पडिवजी, लेख लिखी, तेह जि दूत पाछउ चलाविउ । तेतलइ धनकुमार पोलिई बइठउ देखी दूति प्रणाम करी सर्व वृत्तांत कहिउ । पछइ धनकुमारि पणि धनवती-भणी आपणउ मुक्ताफलनउ हार अनइ लेख ते दूत-हाथि छानउ दीधउ । पछइ दुति सिंहराजानई आवी सर्व वात कही संतोष ऊपजाविउ । पछइ दूतिई प्रछन्न धनवतीनइं लेख अनइ मोतीनउ हार दीघउ । धनवतीई लेख वांची हार आपणइ गलइ घातिउ, मननइ कहइ, 'धनकुमारि मुझनइ ए संचकार दीधउ ।' पछइ दूतनई 'अपार-संतोषि दान देई विसर्जिउ ।
पछइ सिंहराजाई आपणउ प्रधान सज्ज करी अनेक हस्ती-तुरंगम-धन-कनक-मणि-माणिक्यमुक्ताफल-सहित धनवती स्वयंवरा चलावी । मार्ग उल्लंधी क्रमिइं अचलपुरि आव्या । पछइ भलइ दिवसि पाणिग्रहनउ उत्सव हूउ । आपणपत्रं कृतार्थपणउं मानता महा रुद्धिनइ विस्तारि घरि आव्या । सुख अनुभवतां एकदा प्रस्तावि राजा विक्रम धन-धनवतीई परिवरिउ गजेंद्रि बइसी जेतलइ वन-माहि गयउ, तेतलइ तिहां चतुर्मानी श्री वसुंधराचार्य वन-माहि देखी राजा विक्रम पणि सपरिवार तिहां वांदिवा आविउ । उपदेस सांभली देसनानई प्रांति राजा विक्रम ज्ञानी-कन्हइ पूछइ, 'स्वामिन ! धन जहीइ गर्मि आविउ, तहीइ मातानइ सउणा माहि आवी एक पुरुष इसिउं कहइ, 'एकवार आंबउ आंगणइ वावउं छउं, वली आठ वार वावीसिइ ' इम जे कहिलं, तेहनउ कउण विशेष ?' ज्ञानी कहइ, 'ए नव भवनउं स्वरूप सूचविउं ।' पछ्इ राजादिक सहू आपणइ आपणइ घरि आविउ । अन्यदा धन-धनवती उद्यानवन-माहि आव्या । तिहां एक महात्मा मूर्खाइ अचेत पडिउ देखी सीतल जल-वायुने योगे सचेत कीधउ । पछइ ते महात्मा. कन्हइ धर्मोपदेस सांभली, घरि तेडी, दूध वहिराविउं । मास-दिवस राखी महात्मा-कन्हलि पूछइ, 'तुम्हे अचेत थई कांइ पडिया हूंता ?' तिसिइ महात्मा कहइ, 'संसार-हूंतउ थाकउ, तेह-भणी प. डिउ परमार्थ इतु । द्रव्य-इतु वात सांभलउ । नामि करी हूं मुनिचंद्र । संघात एक आवतउ हंतउ ते साथि आवतां वाट-हूंतउ भूलउ । तृषाक्रांत इहां आवी पडिउ । ति वार-पछी तुम्हे जे उपचार कीधउ तिणि हूं सचेत हूउ । हिव तुम्हे गृहीधर्म, द्वादशव्रत-मूल सम्यक्त्व पडिवजउ ।' पछइ धन-धनवतीइ ते महात्मा-समीपि सम्यक्त्व लीघउं । पछइ विक्रमराजाइं आपणउं राज ध. नकुमारनइ देई चारित्र लीघउं । पछइ केतलउ काल राज भोगवी धनवतीनउ पुत्र जयंत, तेहनइ राज देइ, धन-धनवतीइ दीक्षा लेई, केतलउ काल आचार्यपद भोगवी, प्रांत-कालि मास-दिवससीम अणसण पाली, धन-धनवती मरी सौधर्मइ देवलोकि इंद्र-सामानिक देव हूया ।
इसिइ वैताव्यपर्वति उत्तर श्रेणिइ सूरतेजपुरि, सूर-नामा विद्याधर, विद्युन्मती भार्या, तेहनी कूखिइ धननउ जीव देवलोकतु च्यवी ऊपनउ । पूरे दिवसे पुत्रनउ जन्म हूउ । नाम चित्रगति दीघ । हिव ते वाधतउ वाधतउ संपूर्ण कला अभ्यसइ । इसिइ ईणइ बैतादिय दक्षण-श्रेणिइं अनंगसिंह राजा, शशिप्रभा भार्या, तेहनी कूखिइं सौधर्म देवलोक-इतु धनवतीनउ जीव चवी, रत्नवती एहवइ नामिइं, घणा पुत्र-ऊपरि पुत्री हुई, संपूर्ण गुण-सहित वाधती वाधती यौवनावस्थाई आवो । तिसिइ राजाइ पुत्रीनइ वर जोतां नैमित्तिक पूछिउं । तिसिइं
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L. P. अपारि संतोषि, K. पारितोषिक दान.
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