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शीलोपदेशमाला - बालावबोध
व्याख्या:- महाक्रूर = दुष्ट हिंसक जीव हरि=सिंह, करि= हस्ती - साप प्रमुख सर्व जीव सुखि जीपीइ = वशि कीजइ, पणि एक कंदर्प जि दुर्जे : =जे जीपी न सकीइ । पणि ते कंदर्प केहवउ छइ ? - 'कय - सिवसुह-विरामो' = कीधां मोक्षसुखनइ अंतराय छइ = मोक्षसुख पामिवा न दिइ । हवइ जे एहवा कंदर्पंनइ जीपइ तेहनइ माहरउ प्रणाम ।
ते कहइ
तिहुयण-जगडण - उब्भड - पयांव- पयडो वि विसम-सर- वीरो । जेहिं जिओ लील ए नमो नमो ताण धीराणं ॥ ३५
व्याख्या:- जीणइ महात्माए त्रैलोक्यनइ जगडण= पीडणहार, उब्भट = प्रचंड प्रताप, तिणि करी विख्यात एहवउ विषमसर = कंदर्परूप वीर=सुभट एकांगवीर जीणे भाग्यवंते जीतउ छइ तेहनइ नमस्कार हु । त्रैलोक्य माहि यश शीलवंत जि नउ विस्तरइ |
निय - सील - बहुल - घणसार परिमलेणं असेस - भुवणयलं । सुरहिज्जइ जेहिं इमं नमो नमो ताण पुरिसाणं ||३६
व्याख्या:
निज=आपणउं शील= मन, वचन, काय त्रि-करण-सुद्ध, बहुल, सीलनतरूप उज्ज्वल, घनसार= कपूर जस-रूपीइ, परिमल = वासि करी, असेस = समस्त पृथ्वीमंडल सुगंध कीजइ जीणइ पुरुषे ते सत्पुरुषनइ नमस्कार हुँ ।
वली शील पालतां दोहिलं ते कहइ -
रमणी - कडक्ख- विक्खेव तिक्ख बाणेहि सील - सन्नाहो ।
जेसि गउ न भेय नमो नमो ताण सुहडाणं ॥ ३७
३३
ते पुरुषनउं शीलं सन्नाह = ब्रह्मचर्यरूप कवच, रमणी=त्री, तेहना कटाक्ष-बाण
व्याख्या:तीखा, तेहे करी शील-सन्नाह भेदाणउ नही जेह सुभटनउ, तेहनई नमस्कार करिया योग्य |
वो एह जि दृष्टांति करी दृढइ
निव - धूंआ नियख्वावहत्थियासेस सुंदरी - वग्गा | घण- सोहग्ग-निरुवम-पेम्मा लावन्न रुइ रम्मा ॥३८ जर - जज्जर-थेरी इव परिहरिआ जेण नेमिनाहेणं । बंभवय-धारीणं पढमोदाहरणमेस जए || ३९ ( युग्मं ) व्याख्याः- नृप=राजा श्री उग्रसेन, तेहनी बेटी राजीमती, निज=आपणई रूपिई करी, जीती = निर्जणी, सकल रंभा - तिलोत्तमादि देवसुंदरी = देवांगनाना समूह छइ । वली केहवी १ 'घणसोहग्ग' = घणउं सौभाग्य, तिणि करी सहित छइ । वली केहवी ? निरुत्रमपेम्मा = उपमातीत नव भवनउ प्रेम = स्नेह जे साथइ बांधिउ छइ । अनइ वली लावण्य- सहित सरीरनी रुचि=
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कांति, तिणि करी रम्य = मनोहारिणी । एहवी इ राजीमती जीणइ श्री नेमिकुमारि हेलाई परिहरी =
त्यजी । कहिनी रीति ? 'जर जज्जर० ' = जरा कहीइ वृद्धपणउ तिणि करी जाजरउं, इंद्रियनी निबलाईइ करी वली पलित तिणि करी ढीला हूया छइ अंगना अवयव एहवी जे वृद्धा स्त्री, तेहनइ जिम पंचवीस वरसनु पुरुष परिहरइ, तिम श्री नेमिनाथि राजीमती परिहरी । एहवा ब्रह्मव्रतधारी श्री नेमिनाथ, तेहनूं पहिलउं उदाहरण जाणिवउं । एतलई गाथानउ अर्थ हूउ । हिव विस्तर अर्थ कथा- हूंत जाणिव । ते नेमिचरित्र नवभवगर्भित संक्षेपई करी कहीइ
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