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शीलोपदेशमाला-बालावबोध
करणहार ब्राह्मणनउ जीव मरी हाथिणीनी कुखिह अवतरिउ तेणइ हाथिणीइ 'चीतविउं, 'जेतला मई पुत्र जिण्या, तेतला इणि हाथीइ मार्या । तु हिव हूं कीणइ कइ उपाय करी ए गर्भ राखउं ?' पछइ' तिणी हाथणीइ माया मांडी, पगि खोडी हुइ । हाथीइ जाणिंउ-एहनउं पग दुखइ छइ । पछई एक दिन अंतरालि करी हाथीनइ मिलइ, बि दिन, त्रिण्णि दिन करी-इम हाथीनइ वेसास ऊपजाविउ । ईणी स्त्रीए कउण कउण न वंचीइ ? इम प्रसवनइ समइ तृणनउ पूलउ माथइ करी हाथिणी तापसनइ आश्रमि आवी । तापसनद पगे लागी आपणउ भाव जणाविउ । तापसे जाणिउं जउ-ए अम्हारइ शरणइ आवी । पछइ आस्वासना देइ कहिउं, 'वरिस ! सुखिइं निर्भय थकी रहि' । इसिइं हाथिणीइ पुत्र जायउ । ते पुत्र आश्रमि मूकी हाथिणी यूथमाहि गइ । पछइ तापसे ते हाथीउ पालिउ । एक एक दिननइ अंतरालि हाथिणी दूधपान करावी जाइ । इम करतां मउडइ मउडइ हाथीउ वाधिवा लागउ । पछइ जिम तापस वृक्षनइ सीचइ, तिम ते हाथीउ सूडि पाणी भरी झाडनइ सीचइ । पछइ तेहनइ सेचनक ए नाम तापसि दीघ । सात हाथ ऊंचउ, त्रिणि हाथ पहुलउ, लघु-गावडि, पिंगल-नेत्र, सप्तांगसुन्दर, च्यारि सई चऊंआलिसे लक्षणे संयुक्त, भद्रजाती, मदोन्मत्त - एवउहाथीउ हूउ ।
तिणि समइ पिता हस्ती आपणइ जूथि परिवरिउ नदोनइ तटि पाणी पीवा-भणी आविउ । तिसिई सेचनक पणि तिहां आगइ पाणी पीतउ हूंतउ । तिणि आवतु देखी रीस-लगइ सबलपणि यूथनउ अधिपति हाथी हणी आप यूथनउ नायक हउ । पछइ सेचनकि मातानु पूर्विलउ संबंध जाणी मन-माहि चौतविउ, 'जिम हूं ए आश्रम-माहि छानउ राखिउ, तिम मुझ ऊरि कोइ हस्तिनो पुत्र राखिस्यई । जिम मई पिता विमासिउ,तिम मुझनई पणि कोई विणासिसिहे । तेह-भणी ए आश्रम भांजउं ।' एहवउं विमासी सेचनक हस्ती आश्रमि आवो वृक्ष पाडिवा लागउ, तापसनां घर भांजिवा लागउ । पछइ तापसे जई राजा श्रेणिकनई कहिउं, 'वन-माहि सर्व-लक्षण-सम्पूर्ण हाथीउ एक आव्यउ छइ ।' ए वात सांभली चतुरंग-बल-सहित राजा वन-माहि आवी, अनेक पास सज्ज करो, हाथीउ बांधी नगर-माहि महा आलानस्तम्भ छइ तिहां आणी बांधिउ । पछइ हाथीनउ पराक्रम सर्व भागउ । आंखि मीची रहइ । तिसिइ ते तापस हाथी-समीपि आवी कहिवा लागा, 'तई जउ अम्हारा आश्रम भांजां, तु तू जोइ-न ईणइ स्तंभि बांधिउ । अम्हे तूंनइ लालिउ-पालिउ, अम्हनइ ज तूं आपणउ न हूउ, तु ए फल भोगवि ।' तिवारइं हस्तीइ चोंतविडं, 'हूं जे बंधाणउ, ते ए तापसनउ प्रमाण ।' पछइ रीस ऊपनी । स्तम्भ उन्मूली, बन्धन तोडी, वली आश्रमि आवी उटज-वृक्ष सर्व भांजिवा लागउ । तेतलइ राजा श्रेणिक तारसना आश्रम राखिवा-भणी हाथीयानई झालिवा-भणी गजारूढ हूंतउ वन-माहि आविउ । पणि हाथीनइ कोई झाली न सका । तिसिइं श्रेणि कनउ पुत्र नंदिषेण कुमार तिहाँ आविउ । तिसिइ भवांतरनउ संबंध देखी जातीस्मरण ज्ञान ऊपनइ नंदिषेण नइ वसि हाथीउ हुए। पछइ नदिषेणई हाथोउ नगर-माहि आणी आलानस्तंभि बांधिउ । पछइ राजाइ सर्व लक्षण-संपूर्ण जाणी सेचनक पट्टहस्ती कीधउ ।
अन्यदा श्री महावीर राजगृह-नगरि गुणसीलइ चैत्य आवी समवसर्या । तिसिइ राजा श्रेणिक सांतःपुर पुत्र-पौत्र-परिवरिउ स्वामीनइ वांदी आगलि बइठउ । जगन्नाथइ धर्मोपदेश दीधउ ।
१. K मां 'पछई.......ऊपजाविउ ।' एटलो पाठ नथी.
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