SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३ मेरुसुन्दरगणि-विरचित हंता आर्द्रकमुनिनई प्रणाम करी उपदेस सांभली प्रतिबोधाणा हंता श्री महावीरना समवसरणभणी चाल्या । ए वात सांभली राजा श्रेणिक, अभयकुमार · सर्व ते मुनिनइ वांदो करी कहिवा लागा जउ, 'महात्मन ! ए आश्चर्य गाढउं, जे हाथीनां बंधन छूटां ।' तिवारई ऋषि कहिवा लागउ, 'ए सर्व सोहिलउं, पणि जे बेटइ सूत्रना तांतणा पग-पाखती वीटया ते त्रोंडी न सक्या ।' पछइ आर्द्रकुमारि आपणउ मूल-हूंतउ संबंघ कहिउ । सर्व सभा हर्षित हुई । अभय प्रसं सवा लागउ । तिसिइ मुनि कहइ, 'तई जे अनार्यदेशि प्रतिमा मोकली तेह-लगइ तुहे मुझनइ कउण कउण उपगार न कीधउ ? अपि तु सा कीधर । अनई मई जे धर्म उलिखिउ, मई जे चारित्र लीधउं, ए सर्व अभयकुमार ! ताहरउ प्रसाद ।' पछइ राजा श्रेणिक, अभयकुमार मुनि वांदी आपणइ आपणइ स्थानकि गया | आर्द्रऋषि समवसरणि आवी सम्यग चारित्र पाली मोक्षनु भाजन हूउ । पत्थावि 'ते पयावो खिप्पं गच्छंति अमरभुवणाई' --हिव जे सामान्य जीव चारित्र-हूंता पाडीइं तेहनउ स्युं कहिवउ ? जेहनइ परमेस्वरनइ हाथि दीक्षा हुई तेह इ विषए पाडया ॥ इति श्री खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिनइ आदेसि वा० मेरुदरगणिना विरचित श्री शीलोपदेशमालाबालाविबोधि श्री आर्द्रकऋषि कथा समाप्ता ।। १४ ।। पइ-दिवसं दसदस-बोहगो वि सिरि-वीरनाह-सीसो वि । सेणीय-सुउ वि सत्तो वेसाए नंदिसेण-मुणी ॥३१ व्याख्या :- प्रति-दिवस-दिवस प्रति दस-दस जीवनइ प्रतिबोधनउ देणहार, श्री महावीरनउ शिष्य श्रेणिकनउ पत्र नदिषेण ऋषि एहवउइ वेशानइ घरि बार वरस रहिउ। ते भावार्थ कथाहूंतउ जाणिवउ । हिवइ ते नंदिषेणनी पूर्वभव-सहित कथा कहीइ - [१५. नंदिषेणनी कथा ] कुणिहि एकणि देसि को एक ब्राह्मणइ याग करिवा मांडिउ । पछइ ते यज्ञपाटकनी रक्षा भणी कोई एक दास राखिउ । पणि ते दास जिनधर्म-वासित छ । तीणइ ब्राह्मणनह कहिलं. 'हैं तउ चीतवउं, जउ तुम्हारइ याग करतां अन्नादिक जे कांई ऊगर इ, ते मुझनई जउ दिउ तउ रह।' पछइ तिणि बाम्हणिई पतगरिउं। तिसिइ तिणि ब्राह्मणि जे विद्वांस, जे वेदना भणणहार, जे यागक्रियानइ विषई कुशल छइ, ते तेड्या मधुपर्कादिक योग्य । तेह-पाहि हवनविधि करावीइ, अतिथि जिमाडीह शालि, दालि, मोदके करी। इम जिमाडतां जि कांई प्रासुक आहार ऊगरइ ते दास लहइ । पछइ ते दास जे सुसाधु-चारित्रीया तेहनइ आपणा भाग-माहि दान दिइ। अन्नन-वस्त्रादिक यथा-योगि अवसरिइ दीधा पछी बाँदीनइ वली कहइ, 'वली अनुग्रह करिज्यो ।' पछइ ते दास आयुनइ क्षयि मरी देवलोकि देव ऊपनु । तिहांना सुख भोगवी प्रातुक-दाननां फल-लगी राजा श्री श्रेणिकनइ घरि नंदिषेण एहवइ नामि पुत्र हउ। क्रमिइ यौवनावस्था पामी । तिसिइ राजाइ नंदिषेणनइ पांचसइ कन्या परिणावी । इसिइ प्रस्तावि गजेंद्र एक पांच सई हस्तिनीइ परिवरिउ सल्लकी-वन-माहि क्रीडा करइ । तिसिई हाथोइ मन-माहि चीतविउ, “रखे कोई नवउ हस्ती जन्मीइ जे मुझनइ' हणीनइ यथनउ नायक हइ ।' तेह-भणी जे जे हस्तिनी पुत्र जन्मइ ते ते विणासइ । इसि ते यागनउ १. P. L. मझनइ K मोनइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy