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शोलोपदेशमाला - बालावबोध
२७ तिवारई पनि पद्म दीठउं हूंतु ते अहिनाण छ ।' पछह श्रेष्ठि कहिउ, 'जे के मुनि आवश् तेहनइ तूं दान दिई अनइ पग जोती रहे । '
पछइ श्रीमतीनइ दान देतां बारमा वरसनि प्रांति ते आर्द्रकुमार तिहां आविउ । तिसिई श्रीमती ओलखिउ । पछइ धाई महातमानइ पगि वलगी', 'स्वामिन ! तहीइ मुझनइ तूं भोलवी गयउ, पणि हिव किमइ जाए से ?' पछ३ आर्द्रकुमारइ ते देखी देवतानउ वचन मन-माहि आणी, भोगफल जाणी, आर्द्रकुमारि श्रीमतीनउं पाणिग्रहण कीधउं । इम घरि रहितां त्रीजइ • वरसि बेटउ जाय । जेतलइ नव वरसनउ बेटउ उ तेतलइ आर्द्रकुमार श्रीमतीनइ कहिवा लागउ, 'विताहरइ बेटउ तुझनइ सखाईंउ हूउ । हिव हूं दीक्षा लिउं ।' पछ्इ श्रीमतीइ बुद्धिलगी कांतिवउ मांडिउँ । तिसिहं बालक आवी कहिवा लागउ, 'हे मात ! आपणइ ए स्यूं कांतणउ १ तिवारइ माता कहित्रा लागी, वत्स ! तूं तु लघु । ताहरु पिता तउ जाइ छइ ।' इसिह पुत्र कहिवा लागउ, 'मात ! आपि सूत्र, जिम बाप बांधी राखउ ।' ए वात आर्द्रकुमार कपटनिद्रामाहि सर्व सांभल छइ । पछइ आपणइ मनि निश्वर की उ, 'जेतला वड पग पाखती वींटिसिहं तेतां वरस हूँ घरि रहिसु ।' तिसिईं बालक तांतणा लेई बापना पग- पाखती तांतणा वीत मानइ कहइ जउ, 'मई बाप बांधिउ छइ । किम जासिइ ?' पछइ आर्द्रकुमार जउ पग जोइ, तु बार वड बालकि पग पाखती वीटया छइ । तेह-भणी बार वरस घरि रहिउ । इम चउवीस वरिस घरि रही, रात्रि चींतविवा लागउ, 'आगिइ तां मनि करी चारित्र विराधिउं, तेहलगइ अनार्यदेशि ऊपनउ । हिवइ तु मई कायाइ करी चारित्र विराधिउं, तु हिवइ हूं किम छूटिसु ?" इम विमासी श्रीमतीनइ पूछी, प्रतिज्ञा पूरी । वली मुनिवेष लीधउ ।
पछs पृथिवी-माहि विहार करवा लागउ, राजगृहनगर-भणी चालिउ । तिसिइ अंतरालि आपण सामंत पांच सइ चोर परिवरिउ देखी पूछइ, 'ए तुम्हे सिउं मांडिउ ?' तिवारs ते सामंत कहिवा लागउ, 'जिवारइ तुम्हे आदनपुर- हूंता चाल्या, तिवारइ अम्हे चोतविडंपाछा राजा - कन्हइ जासिउं तु ए राजा मारिसिइ । पछइ तुझ केडिइ अम्हे नीकल्या | पणि तूं अम्हे पामिउ नही । निर्वाह तु हुइ नही । पछइ अम्हे चोरी मांडी । आज अम्हे तूनइ उलखिउ वांदिउ । हिव धर्म देखाडि, जिम अम्हे पडिवजउं ।' पछइ आर्द्रकुमार चोर-प्रति कहइ, 'ए संसार माहि दसे दृष्टांते करी मनुष्यनउ जन्म • दोहिलउ छइ । वली तिहां धर्मनी सामग्री दोहिली | तेह-भणी प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह- हूंता विरमउ ।' इत्यादि उपदेश सांभली तेह हलकर्मी जीव पांच सद चोर चोरी मूंकी आर्द्रकुमारनइ कहा, 'आगइ अम्हारइ तूह जि स्वामी हूंतु । हिवडां पणि तूंह जि स्वामी ।' इम कही चारित्र लेई श्री माहावीरनइ वांदिवा-भणी जेतलइ राजगृह दूकडा आवई', तेतलइ अंतरालि गोसालउ मिलिउ । तिसिह ते साथि वाद करी आर्द्रकुमारि ते निरुत्तर कीधउ । पइ आईऋषि हस्तितापसाश्रमि आव्यउ । हिवइ तिहां जे तापस छइ ते इम कहइ, 'घणा जीवना वध - पांहि एक जि मोठा जीवनउ वध भलउ ।' इसिउं मन माहि आणी एक मोटउ हाथीउ हणिउ छइ, एक आणी बांधी मूकिउं छइ लोहने भार- सहस्रे । तिसिद्धं ते हाथी आई. कुमार आवत देखी चींतवइ जउ, 'किमद्द ए मुनिनइ हूं वांदउं ?" तिसिहं मुनिना प्रभाव लगी हस्तीनां सर्व बंधन त्रूटां । पछइ हस्ती महातमा भणी घायउ । लोक हाहाव करवा लागउ । तेल हस्तो प्रणाम करी ऋषि- आगलि ऊभउ रहिट । ए स्वरूप देखी सर्व तापस हर्षिया १. A. लागी २. L. पाहृति
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