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शीलोपदेशमाला-बालावबोध
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सांभलिउ नथी ? सघले देशे प्रसिद्ध विख्यात छइ ।' ए वात सांभलि मनि हर्ष घरतउ प्रधान प्रति कहइ, 'जिवारइं पिता आदनराजा तुझनइ चलावइ तिवारई मुझनइ मिली चालिज्यो ।'
__ पछइ आदनराजाई ते प्रधाननई घणउ बहुमान देई, मुक्ताफल-प्रभृति घणी वस्तु भेट देई, प्रधान पाछउ वलाविउ। वली संघाति आपणउ प्रधान एक मोकलिउ । तिसिइ ते प्रधान आर्द्रकुमार-समीपि आवी कहिवा लागउ जउ, 'हूं राजा: चलाविउ ।' तीणइ पणि मुक्ताफलप्रभृति घणी वस्तु अभयकुमार-भणी चलावी । केतले दिने पंथ अवगाही राजगृह-नगरि आवी राजा श्रेणिक-आगलि ते सर्व भेटि आणी मूकी। ते देखी राजा संतोषाणउ । तिसिई प्रधानिइ अभयकुमारनइ आर्द्रकुमारनी मोकली भेटि दीधी, संदेसा सर्व कह्या । पछइ अभयकुमार मन-माहि चींतवइ 'सही कोई विराधित-चारित्रीयउ अनार्यदेशि ऊपनउ छइ । पणि इम जाणीइ ते जीव भव्य छइ, जिणि कारणि मुझ साथिई प्रीति तुह जि करइ छइ, जउ उत्तम जीव छइ । तु हिवइ माहरी प्रीतिनु प्रमाण, जु एहनइ प्रतिबोधउं ।' इसिउं विमासी वलती भेटिनइ मिसिई श्रीवीतरागनी प्रतिमा रत्नमय महांत आचार्यनी प्रतिष्ठि एहवी एक मजस-माहि घाती । वली पूजानउ उपगरण-घांटी, रस, धूपधाणां, चमर, अष्टमंगलीक इत्यादि सर्व तेह-माहि घात्यां, बारणइ तालू देई मुद्रा आपणी दीधी। बीजी घणी भेटि संघाति देई प्रधाननइ कहिउं, 'ए माहरी भेटि आदनराजा-छानी आर्द्रकुमारनइ देज्यो, अनइ कहिज्योएकांति ए भेटि हलाविज्यो ।'
पछइ ते प्रधान( १ नि) आदनराजानइ श्रेणिकराजानी मोकली भेटि दीधी । आर्द्रकुमारनइ छानी मेटि मजूस सर्व दीघी, अनइ संदेसा सर्व कह्या । पछइ आर्द्रकुमार एकांति बइसी जु मजूस हलावइ तु माहि-थकी रत्नमय श्री वीतरागनी प्रतिमा नीकली । ते जोई मन-माहि चींतववा लागउ, 'माहरइ मित्रि मुझनई आभरण मोकलिउं छइ ।' माथइ, हाथि, खवइ प्रतिमा मकह पणि किहांई बंधि नावइ । पछइ चीतवई, 'एहवी प्रतिमा मई आगइ किहां दीठी हूंती ?' इम ईहापोह करतां जातीस्मरण ऊपन । पूर्विलउ भवांतर दीठउं । - ए भव-इतु त्रीजइ भवि, मगहदेशि वसंतपुरि सामायकाभिध कुणंबी हूंतउ । भार्या बंधमती-सहित सुस्थिताचार्य-समीपि धर्म सांभली दीक्षा लीधी । बंधुमती महासती-सहित गुरु-साथि विहार करिवा लागउ । इम एकदा प्रस्तावि बंधुमती महासती, तेणइ सामायकाभिधि महातमाई दीठी । पूर्विला स्नेह-लगइ अनुराग ऊपनउ । ए स्वरूप' महासतई जाणिरखे ए मर्यादा मूंकइ । ए पछइ तिणि बंधुमती शील राखिवा-भणी अणसण लोपउं, प्राण छांडया। ए वात तिणि माहात्माई सांभली जउ, 'माहरइ कीधइ बंधुमतीइं प्राण छांड्या ।' पछइ ते साधु असमाधि करई । 'धन्य ते महासती जीणइ शील राखिउं, प्राण छांडया । तु हिव मुझनई जीविवा युगतउं नही, जे हूं भग्नव्रत हूंतउ शोल पाली न सकउं।' पछइ ते महातमा अणसण लेई देवता हूउ ।
१. P. L. बीजी महासतीए जाणी बंधुमतीनई उपदेस दीधर । पछई बंधुमती चींतिवा लागी-जउ समुद्र मर्यादा मूंकइ तउ स्यउं चालइ । हिव अनेरी महासतीए जाणिउ रखे ए मर्यादा मंकड । पछई तिणि बंधुमतीई अणसण लीधउं, शील राखिवा-भणी प्राण पणि छांडया ।
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