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मेरुसुन्दरगणि-विरचित
व्याख्या:--तु सकल समस्त इतर बीजां कष्टानुष्ठान-तप परीसह क्रिया-कलाप प्रमुख ए सर्व उद्यम परिहरी, एक अद्वितीय शीलवत धरउ=पालउ, पणि ते शीलनत केहवउं छह-साहीणस. -स्वाधीन हाथ जि माहि । बार देवलोक, नव अवेयक, पांच अनुत्तर मोक्षना अनंत सुख जेह थका छइ एहवउ शील, अहो भविको ! पालउ ।
हिव ते शील तु पलइ, जउ नारीनु संसर्ग वर्जइ । जिम अग्निनइ योगि मीण गलइ तिम नारी=स्त्रीना संसर्ग-लगइ पुरुष शिथिल थाइ।
सावज्जजोग-बज्जण-सज्जा निरवज्ज-उज्जया वि जए।
नारीसंगपसंगा भग्गा धीरा वि सिवमग्गा ।।२९ व्याख्या :-जे पुरुष सावध व्यापारना योग तेहनउं वर्जन परित्याग करिवा-भणी जे सज्जसावधान छइ, वली निरवद्य-सुद्ध शीलादि निःपाप कर्म साधिवा-भणी ऋजु-सरल छइ, जगत्रयमाहि एणइ प्रकारि मोक्षमार्ग साधिवा-भणी धीर छइ, तेही नारी स्त्रीना प्रसंग परिचय-लगइ मोक्षमार्ग साधीता हूंता भाजइ=पडई । यतः -
संसार तव पर्यन्त-पदवी न दवीयसी ।
अंतरा दुस्तरा न स्युर्यदि रे मदिरेक्षणा ॥१ हिव नारीना संग-लगइ जीव पडइ ते-ऊपरि दृष्टांतगर्भित गाथा कहइ -
संवेगगहियदिक्खो तब्भवसिद्धी वि अद्दयकुमारो ।
वयमुज्झिय चउवीसं वासे सेविंसु गिहवास ॥३० व्याख्या:--जीणइ संवेग-वैराग्य-लगइ दीक्ष्या लीधी. तब्भवसिद्धिगामी तीणइ जि भवि मोक्ष जाणहार आर्द्रकुमार तेही स्त्रीना प्रसंग-लगइ चारित्रवत मूकी चउचीस वरस गृहस्थावासि विषयसुख अनुभव्यां । ते भावार्थ कथा-हूंतउ जाणिवउ । हिवइ ते कथा कहीइ -
[१४. विषयसख-ऊपरि आर्दकुमारनी कथा ] आदननामा देस । तिहां आदनपुर नगर । तिहां आदनराजा राज्य करइ । तेहनी भार्या अग्रमहिषी आद्रिका । तेहनउ बेटउ आद्रकुमार जाणिवउ । अतिहिं गुणवंत जीवदयानइ विषइ आर्द्र जेहनउ मन एहवउ छइ । समग्र कला अभ्यसतउ यौवनाभिमुख हूउ ।
हिवइ एहवइ प्रस्तावि राजगृह नगरि । राजा श्रीश्रेणिक परम जिनभक्त। तेहनउ बेटउ अभयकुमार । इम आगइ आदनराजा नइ श्रेणिकराज.नइ माहोमाहि महा प्रीति छ । तेह-भणी राजा श्रेणिक आपणा प्रधान-हाथि आदनराजानइ घणो मेटे मोकली। तिणि प्रधानि सभाइ जई आदनराजा आगलि सउंचल लोंचपत्र कंबलादिक घणी वस्तु मूकी । पछइ राजाई महाआदरि भेटि लेई श्रेणिक राजानी कुशल-क्षेमवार्ता पूछो जउ, 'राजा लोक सह समाधि छइ ?' इम पूछतां आर्द्र कुमार बाप-कन्हइ पूछइ, 'तात ! ते कउण मगधाधिप ?' तिसिइ राजा कहिवा लागउ. 'आर्द्र कुमार ! सांभलि । मगधदेसनउ अधिपति श्रेणिक राजा। तेह-साथि आपणइ चिरंतन प्रीति छइ । क्रमागत चाली आवइ छइ । तेहनि कुलि अनइ आपणइ कुलि प्रीतिइं अतर नही ।' ए वचन सांभली आर्द्र कुमार प्रधान-प्रति पूछिवा लागउ, 'राजा श्रेणिकनइ बेटउ कोई छई, जेड्-साथि हूं पणि प्रीति मांडउं ?' तिसिई प्रधान प्रणाम करी कहिवा लागउ, 'अहो! समग्र बुद्धिनउ निधान, पांच सई मुहता-मांहि मुख्य, दक्षबुद्धिना लक्षण तिणि करी विराजमान एहवउ अभयकुमार राजा श्रीश्रेणिकनउ पुत्र छ । ते किसिउ तुम्हे
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