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मेरुसुन्दरगणि-विरचित कष्ट पामइ इत्यादि घणा लोकीक देवता इम स्त्रीना वशीया हया किंकरपणउं पाम्या । तु ए विषयतृष्णानइ धिगूधिक्कार हु ॥ ए छठी इंद्रनी कथा ॥१३॥
वली विशेष कहइ -
पूइज्जति सिवत्थं केहिं वि जइ कामगद्दहा देवा ।
गत्ता-सूयर-पमुहा किं न हु पूयंति ते मूढा ॥२१ व्याख्या :- जु किमइ एहवा मिथ्वात्व-मादेराइ गतचैतन्य हूंता कामि करी गर्दभ-समान । हरि हर ब्रह्मादिक देव मोक्षनइ हेति जे पूजइ, ते जीव मूढ अज्ञान गर्ता सूकर = भुंड, सूकर-प्रमुख कहता छाग स्वानादिकन कांइ न पूजई ? तेहे सूं विणासिउं छइ १ । कामनी व्याप्तिइ करी ए पुणि सरीखाइ छइ । संसार-गर्ता माहि पडया छइ । तेहनई गर्ता-सूकरनी पूजा कीधी जोईइ, ते पणि मोक्ष देसिइ । इति उपहास वाक्य ।। हिव कामातुर देवतानइ पूजा-निषेध उपहासपूर्वक कहइ -
विसयासत्तो वि नरो नारो वा जइ धरिज्ज गुरुभावं ।
ता पारदारिएहिं वेसाहिं वा किमवरद्धं ॥२२ व्याख्या :-विषयासक्त = कामातुर नर व्यास विश्वामित्र वशिष्ट ब्राह्मण अथवा कामभोगनइ विषइ आसक्त नारी स्त्री हुई पार्वती अरुंधती रेणुका गंगादिक तेहनह विषइ गुरुनउ भाव धरीनइ गुरुगुरुणी करी जु मानीइ, तु पारदारिक वेश्यादिक गुरु-गुरुणी करी कांई न मानउ ? हे सूं विपासूं? जइ तेह-माहि विशेष गुण कांई दीसइ नहीं ।
हिव एकणि शोलवत आकुट्टी लगी भागइ अनेरां व्यारि व्रत भाज। एहवउ त्रिह गाहे करो कहइ । तिहां पहिला गाह कहीइ
मेहुण-सन्नारूढो नवलक्ख हणेइ सुहुम-जीवाणं ।
इअ आगमवयणाओ हिंसा जीवाणमिह पढमा॥२३ व्याख्या:--मैथुन-संशाई आरूढ-अब्रह्म-सेवापर पुरुष सूक्ष्म जीव छदमस्थ नइ अगोचर केवलीए दृष्ट नव लाख जीव हणइ इस्या आगम-वचन तु पहिली जीवहिंसा एह जि प्रकट जाणिवी । एह जि जिणि कारणि आगमि इसिउं कहिउं छइ -
इत्थीजोणीए संभवति बेइंदियाइ जे जीवा । इक्को व दो व तिन्न व लक्ख-पहुत्त व उक्कोस ॥१ पुरिसेण सहगयाए तेसिं जीवाण होइ उद्दवणं । वेणुग-दिहतेण तत्ता य सिलागनायेण ॥२ पंचिंदिया मणुस्सा य एगनरभुत्तनारिगब्भम्मि । उकोसं नवलक्खा जायति य एगहेलाए ॥३ नवलक्खाणं मज्झे जायइ इक्कस्स दोण्ह व समत्ति । सेसा पुण एमेव य विलयं वच्चंति तत्थेव ॥४|| इत्थीजाणिमज्झे गब्भगया य हवंति नवलक्खा । उप्पज्जति चयंति य समुच्छिमा ते य असंखया ||५|| असंखइत्थिनरमेहुणाउ मुच्छंति पंचिंदियमाणासाउ ।
निसेस-अंगांण विभक्ति चंगे भणइ जिणो पन्नवगा उवैगे ॥६॥ इत्यादि । इम शील-भंगि जीवनइ प्राणातिगत-बानउअहिल भंग ऊपजइ । वली शील-भंग करता बीजु व्रत भाजइ तेह कहा
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