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________________ शीलोपदेशमाला-बालावबोध २१ ताई तीन तप करिवा मांडिउ, तिणि माहरु मन कांपइ-जु रखे इंद्रपद लिइ ।' तिसिई इंद्राणी कहि, 'स्वामिन ! ए ऋषिनइ तप हूंता पाडतों केतली वार लागिसिइ ?' पछइ इंद्रि इंद्राणी सर्व तिहां मोकली। तिसिइ देवांगनाए गीत-गान-नाद-गर्भित नाटक तिम किमइ मांडिउ, जिम ब्रह्मा सकल इंद्रियनी चेष्टारहित हिरणनी परिई एक नाद जि नइ विषइ लीन हुउ। पछइ ब्रह्मा ते नाटक देखी ठउ देवांगना प्रति कहइ, 'वर मागउ ।' तिसिई देवांगनाए कहिउ, 'स्वामिन ! जु तूठउ तु हिवद ए छाग' ए कादंबरी मदिरा अनइ अम्हनइ आदरु ।' तिसिई ब्रह्माई कहिउं, 'तुम्हारा संसर्ग-लगइ तर जाइ, छागनउ वध तपस्वीनइ करता जुगतउ नही । पणि ए मदिरा पाणी-सरीखी, ते-भगी तुम्हारइ ववनि ए मदिरा आदरिसु।' पछइ यथेष्ट मदिरापान कीधउं । तेतलइ ब्रह्मानइ उन्माद ऊपनउ, क्षुधा ऊपनीइ छाग हणी मांस-भक्षण करी देवांगना साथी क्रीडा कीधी । पछइ देवांगनाए चींतविडं, 'एहनउ तप तु गमाडिउ । हिवइ जे घणा वरसनउ तपनउ पोतउं ते नीठाडिवउं ।' इम चीतवी ऋषि-हूंतउ दक्षिण-दिशिइ नाटक मांडिङ । लाज लगी जोई न सकइ । तिसिह कहिउं 'वर्ष कोटि तपना प्रभावइ दक्षिण-दिशिइ मुख थाउ।' ते तपनइ प्रमाणइ मुख थयउं। इम कोडि वर्ष कोडि वर्ष विहचतां च्यारि मुख ब्रह्मानइ हृया। पछइ देवांगनाई आकाशि नाटक मांडिउ । अर्ध कोडि वर्षनइ प्रमाणी रासभना मुख सरोखउ मुख नीकलिउ । पछइ तेत्रीस कोडि देवतानी प्रार्थनाइ ईश्वरी नखि करी पांचमउ मुख छेदिउं । देवांगना हसी स्वर्गि गई । तु जोउ, जे ब्रह्मा ते ही चतुर्मुख हूउ, स्त्रीनउ दासपणउं पामिउं ।। इति ब्रह्मानी कथा ॥ १० ॥ [११. चंद्रमानी कथा ] चंद्रमा पणि यदा कालि सर्व देवताए मिली ज्योतिश्चक्र-माहि वडाई दीधी । सर्व नमस्करिवा आल्या । तिसइ बृहस्पतिनो भार्या अति रूपवती देखी चंद्रमाइ भोगवी । तिहां बुध पुत्र जन्मिउ । ए चउथी कथा ॥ ११ ॥ [१२. सूर्यनी कथा] हिव सूर्य सहस्र किरण धरतउ पृथ्वी-माहि फिरइ । तिसिइं रन्नादे देखी व्यामोहिउ प्रार्थना करइ । तिसिई रन्नादे कहइ, 'स्वामिन ! मइ ताहरउ तेज सहवाइ नही । तेज ओछउं करउ" पछइ विधात्रा-समीपि जई सूर्य कहइ 'रूप ओछउं करि ।' विधात्राई कहिउं, 'जां तू मुखि नहीं बोलइ, तां-ताई ताछी रूप ओछउं करिसु ।' पछइ संघाडउ आणी, यंत्रई सूर्य चडावी, ताछिया मांडिउ । पग-ताई ताछतां सूर्य दूखाणउ'। मुखि बोलिउ । ब्रह्मा रीसाणइ यंत्रइतु सूर्य ऊतारी मूकिउ | आघउ न ताछइ । पछइ सूर्यइ पगि मोजडा घाती रन्नादे आदरी । तु जोउ, स्त्रीना स्नेह-लगइ एवडउ इ सूर्य एवडो पीड सहइ ॥ ए पांचमी कथा ॥१२॥ ३. इंद्रनी कथा] इंट्रिइ जिवारइ गौतम रूषिनइ रूपि अहिल्या सेवी, तिवारइ रुषि द्वारि आविउ । तिहां इंद्र मारिनइ रूपि नीकलतउ देखी शराप दीघउ, 'सहस्र-भगो भव' । पछइ देवताए मोटि कष्टि मनावी सहस्रनेत्र एहवउं नाम कराविउ ऋषि पाहइ । इम स्त्रीना वश-लगइ एवडउ इंद्र १. A. P. दूषीणउ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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