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मेरुसुन्दरगणि-विरचित
ते इही धुरि हरिनी कथा कहीइ
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[ ८. हरिनी कथा ]
द्वारवती नगरी नारायण आपणउं राज्य पालइ । अन्यदा छ मासनइ पारणइ दुर्वांसारुषि वन-माहि आविउ । तिहां पारणानइ अर्थि नारायण तेडिवा गयउ । तिसिई दुर्वासा कहिवा लागउ, ' रथ आणि । तिहां जु एकणि पासइ रुक्मिणी, एकइ पासइ तूं जाइ तु रराथे बइसी ताहर घरि आवउं ।' पछइ नारायणि पडिवजिउं । रुषि रथइ बइठउ । पछइ बेहू रथि जूता । मार्गि चालतां रुक्मिणी सकोमल-भणी चाली न सकइ । तृषा ऊपनी । तिसिहं नारायण - सामु जोइ तृषा आपणी जणावी । तिसिहं नारायणि अंगूठइ करी भूमिका चांपी पाणी काढिउं । रुक्मिणीइ पाणी पीधउँ । तेतलइ रूषि रीसाणउ । नारायणनो आंखि माहि पराणउ खोयउ' । तिवार पछी पुंडरीकाक्ष एहवउं नाम हूडं । एतलइ हरिनो कथा कही ||८||
हिवर हरनी कथा कहीइ
[ ९. हरनी कथा ]
यदा कालि दक्ष नामा प्रजापति सउ कन्यानउ प्रदान करवा लागउ, तिवारई सत्तावीस कन्या नि दीधी । इम सघलीइ कन्या देतां देतां एक कन्या रही । कोई वरन देखइ । ईश्वर भस्मांगी, गलइ रुंडमाला, हाथि खप्पर वाहन वृषभ एहवउ देखी कन्या गोरी ईश्वरनइ देई निश्चित हूउ । तिवार पछइ दक्ष प्रजापतिइ जाग मांडिउ । तिहां सर्व जमाई तेडया । आपणी आपणी रुद्धि सर्व आग्या । पणिरुषि ईश्वर न तेडिउ, जाणिउं - एहवइ कुरूपि जमाई आविद अमारी माम
जासिह ।
पछइ अनेक व्रीहि जव तिल समिधादि सर्व यागना उपकरण मेल्या । मनुष्यनां सहस्त्र मिल्या छं । ब्राह्मण व्यास त्रिवाडी दवे ओझा पंड्या आचार्य मिश्र रुषि जोसी तिहां सर्व मिल्या छर्इं । तिसिहं नारद-ऋषि पणि न तेडिउ, जाणिउँ कलह करिसिंह । पछइ ए बात नारदिई जाणी । नारद ईश्वर - समीप गयउ, 'जोउनइ दक्ष नामा प्रजापति सहू तेडिउ, पणि तूं एक ज न तेडिउ । तु आज ताहरी माम जासिइ ।' ईश्वरि कहिउं, 'ऋषि ! स्युं कीजइ ?' कहिउं, 'जई आपणु पराक्रम देखाडि ' पछइ ईंश्वर गौरी - सहित तिहां आविउ, तुहीं दक्ष प्रजापतिइ बोलाविउ नही । पछ६ गौरीइ अपमान पामी अग्निकुण्ड-माहि झां शस्त्र मूकिउं, तिणि प्रलयकाल - सरीखउ अनिदाघ ऊनउ । यागना लोक सर्व दिसोदिसि नाठा | sus प्रस्तावि गौरीनउ विरह अणसहतई अमृति करी ते अग्निकुण्ड सींचिउं, गौरी जीवाडी, स्नेह लगइ आपण अर्ध अंग दीघउ । तिवार पछी अर्द्धनारीनटेश्वर ए नाम हूउ ए बीजी कथा || ९ ||
दीधी । तिसिई ईश्वर रोसाणउ, आग्नेय
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[ १० ब्रह्मानी कथा ]
हिवइ ब्रह्मा प्रजापति संसारनउ असारपणउं देखी वन- माहि जई अढार कोड वरस दुक्कर तप करवा मांडिउं । तिसिहं इंद्रिइ सभा-माहि अवधि ज्ञाननई बलि ब्रह्मा तप तपतउ देखी मनि-माहि बीहनउ, 'जउ ए रुषि रीसाइ तु मुझनइ पणि पाडइ ।' हिवइ इंद्रनइ भय लगइ समाधि नही । पछइ रंभा -तिलोत्तमादिक इंद्राणी हाथ जोडी वीनती करवा लागो, 'स्वामिन ! तुहाइ असाध्य तु कांई नथी, एवडी चिंता ते कांई ? प्रसाद करी कहउ । अथवा आलोचनइ योग्य न हुइ स्त्री, तथापि सुखदु:ख प्रकासिई खोडि नही ।' तिवारइ इंद्र कहर, 'ईणइ ब्रह्मा चउद युग १. P. पुरानी चभोई
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