________________
शीलोपदेशमाला-बालावबोध
तरुणउ पुरुष मोकलीइ ।' तिसिइ प्रधाने विमासीनइ कहिउं, एह जि श्रेष्ठि तरुणउ दीसइ छइ । एह जि मोकलीइ ।' राजाइ कहिउं 'इम जि करउ ।' पछइ ते पद्म श्रेष्ठि बलात्कारि झाली बालास्वामिननी परि लीजिवा लागउ । तिसिइ मार्गि लोक पूछा, 'ईणइ सिविणासिउ प्रधाने कहिउं, 'मुखना दोष-लगइ लीजइ छ, पछइ ते पद्मना मित्र कुटुंबी तीणे प्रधाननइ घण उं कहिउं जउ, ‘ए अपराध खमउ ।' पछह प्रधाने ते मूकिउ ।
___ अन्यदा राजा प्रधान प्रति कहइ, 'ए लक्ष्मीराणीनइ घणा दिन थआ । हिवइ स्वर्ग हूंती इहां तेडावउ । हूं ते राणी पाखइ रही न सकउं।' पछइ प्रधाने कांई विमासी करी नवयौवना कोई एक विलासिनी, तेह जि राजानां दीधां आभरण पहिरावी, लक्ष्मी एहवउं नाम देई उद्यान-वन-माहि मूकी। प्रधाने राजा वीनविउ, 'स्वामिन् ! स्वर्गि जण एक मोकलिउ छइ ।' वली बीजइ दिनि प्रधाने राजा वीनविउ, 'स्वामी ! वधाविउ । देवी लक्ष्मी वन-माहि आवी छइ ।' राजा तत्काल मेह देखी जिम मोर नाचइ तिम ते वात सांभली नाचिवा लागउ । सर्व सयरनां आभरण पसाइ दीधां।
__ पछइ मोटइ विस्तारि राजा वन माहि राणी सामुहउ गयउ । राणी गौर-वर्ण देखी प्रधान प्रति राजा कहइ, 'ए तउ पहिलडं कांई श्यामवर्ण हूंती, हिवडां गौर दीसइ छइ ।' तिसिइं प्रधाने कहिलं. स्वामी! एहवी सी भ्रांति आणउ छउ ! इंद्रि संतुष्ट होइ वर्तमान सालंकार-साभरण सर्वांगसंदरी करी मोकली छइ ।' पछइ राजाइ ए वात साची मानी , गजेन्द्रि बइसारी नगर-माहि
आणी । हिवइ राजा ते राणी-समीपि स्वर्गनी वात पूछइ । प्रधाने ते सीखवी मूकी छह । ते विलासिनी तिम किमइ राजानउ चित्त रंजवइ जिम ते राजा सर्व साचउ करी मोना । इम करतां राजानइ घणां वरस वउल्यां । घरि पुत्रना जन्म हुया । पछइ राजा आऊवाना क्षयि मरण पामी नरकादि दुख पाया । तु तोउ जे एहवाइ मान अहंकारना धणो ए कंदर्पना कहा-लगद एवडी लालिपालिनां विलसित कीधां ॥ इति स्नेहग्रह ऊपरि विजयपालरायनउ दष्टांत ॥७॥
जे पंडित हुइ तेहइ स्त्रीनां वचन सांभली चूकइ ते कहइ -
जे सयलसत्थ-जलनिहि-मंदरसेला सुएण गारविया ।
बाला लल्लर-वयणेहिं ते वि य जायंति हयहियया ॥१९ व्याख्या :-जे समस्त शास्त्ररूप समुद्र ते अवगाह भणी मेरु-पर्वत समान हुइ अनइ सिद्धान्तना रहस्य मर्म जाणवइ करी गवें-संयुक्त हुइ, एहवाइ पुरुष बाला % स्त्री तेहने लल्लर-वचने हावभाव विलास सहित वाक्ये हतहृदय हूंता रागसमुद्रमाहि बूडई, तु अनेरा जीवनउ स्यू कहिवउं ? हिवइ जे लोकीक देवता तेहनी विडम्बना कहइ -
हरि-हर-चउराणण-चंद-सूर-खंदाइणो विजे देवा ।
नारीण किंकरतं करंति धिद्धी विसय-तन्हा ॥२० व्याख्या:-हरि= नारायण, हर = ईश्वर, चतुरानन = ब्रह्मा, चंद्र, सूर्य, स्कंद कार्तिकेय प्रमुख जे देव तेही नारी - स्त्रीए आपणउं दासपणउं कर.व्या, तु धिग धिग ए विषय-तृष्णानइ कारणि ।
१. P. बालीनी L. बालीनी. २. P. किसउं. ३.P. हुआ. L. हूया. ४. P. विलासिनी सीषवी. ५. P. जोवउ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org