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________________ शीलोपदेशमाला-बालावबोध किहाँ गई ?' तिवारइं प्रधान कहिवा लागउ, 'स्वामी ! तेहना पाडूआ आचार देखी मइ काढी । ते न जाणोइ, 'कहिनइ घरि जई रही घटइ।' पछइ राजा अणबोलिउ रहिउ । इसिइ प्रस्तावि पूरे मासे भुवनानंदाइ सर्वाग-लक्षण पुत्र जन्मिउ, अनइ गुप्तपणइ मुहुतइ राखिउ । अनुक्रमिइं सर्व विद्या सर्व कला अभ्यसावी। पछई मुहुतउ पुत्री-पुत्रनइ लेई राजभवनि आविउ । तिसिइ राजाइ पूछिउं, 'मंत्रीश्वर! ए कउण स्त्री, कउण बालक ?' तिसिइ अवसर लही प्रधान कहइ 'स्वामी! ए ते भुवनानंदा, माहरी पुत्री, ताहरी वल्लभा । ए ताहरउ पुत्र, माहर उ दोहित्रउ बालक ।' इम कहिह हूंतह, जेतलइ राजा कांई वलतू बोलइ, तेतलइ महुतह ते वही काढी राजानइ हाथि आपी। ते वही राजा जोवा लागउ। जे जे बोल बोल्या, जे जे वात कीघी, ते ते चीतवी चीतवी लाज अनइ हर्ष धरतउ, पुत्र उत्संगि बइसारी, राजा कहिवा लागउ, 'वत्स! ए राजऋद्धि सर्व ताहरी छ । ताहरी माताई प्रतिज्ञा ओपणी सर्व निर्वाही । एवडी बुद्धि, एवडा पराक्रम अनेथि दीसइ नही ।' तिसिई प्रधान कहइ, 'स्वामी! चिंता म करउ | ए प्रताप सर्व तुम्हारउ । जे धूलि सूर्यना बिंबनइ आछादई, ते प्रताप धूलिनउ नही, ते वायुनउ प्रताप ।' पछइ राजाइते भुवनानंदा पट्टराणी कीधी, घणउ काल राज पाली, परम वैराग्य धरतउ पुत्रनइ राज देई, आपणपइ चारित्र लेई, परमार्थ साधिउ ।... __ जउ एहवउ इ प्रचंड रिपुमर्दन राजा स्रीनउं दासपणउं करइ, तु बीजा' रोजानु स्यू ॥ इति स्त्रीना दासपणा-ऊपरि रिपुमर्दन-रायनी कथा ॥५॥ मरणे वि दीणवयणं माणधरा जे नरा न जंपंति । ते वि हु कुणति लल्लि बालाण वि नेहगहगहिला ॥१८ व्याख्या:-जेहनइ मान जि धन छइ, एहवा उत्तिम नर=मनुष्य मरणांति प्राणनइ त्यागिइ दीन वचन न भाषई, मरण आगमइ पणि दयामणां वचन न बोलई, एहवाइ जे छई मानवंत पुरुष. अहंकारनु त्याग करी स्नेहरूप ग्रह-व्यंतर तेहनइ ग्रहि करी प्रथिल-विकल परवशि हूंता, बाला स्त्री आगलि लालिपालि करई । रांकनी परिई दयामणां वाक्य बोलई । तु सामान्य मनुष्य कउण मात्र ? जे देवेंद्र ते ही स्त्री-आगलि लालिपालि करई, ते कहीइ छइ - [६. इंद्रनु दृष्टात] कण ही एकि नगरि पोसालइ घणा महातमा रहई । तिहां एक लघु माहातमा पोसाल पुजी काजउ जइणा-पूर्वक सोधिवा लागउ । तिहां जीव सोधतां भाबना भावतां अवधि-ज्ञान ऊपनाउ । तेहनइ प्रमाणि पृथ्वीना स्वरूप देव-लोक देखिवा लागउ । तिणि प्रस्तावि इंट इंद्राणी आगलि लालिपालि करइ छ। तिण समइ इंद्राणीइ इंद्र पग-सिउं ठेली परहउ करिउ देखी महातमा मन-माहि चीतविवा लागउ ' धिम् धिम् ए जीव, जे कंदर्पनु वाहिउ । एवडउ इंद्र किम स्त्रीनइ पगि लागइ छ !' पछइ इंद्रनउं स्वरूप एहवउं देखी चेलानइ हासउँ आवि अवधि-ज्ञान एतलइ जि रहिउं । ए संक्षेपि दृष्टांत कहिउं । इम' शीलव्रत पालतां दोहिलउ॥६॥ वली विजयपालराजा-लक्ष्मीदेवीना दृष्टांत कहीइ - १. L. 'कहिनइ.......घटई' ने स्थाने 'किहाँ छई' P. नथी २. P. ते प्रताप वायरानउ, धूलिनउ नही ३. P. अनेरा. ४. L. पउजी ५. A. हिवइ ६. P. मां 'इति शीलोपदेशमाला वा० हरिकथा' एटलु वधारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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