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मेरुसुन्दरगणि-विरचित
एकांत पिता तेडी सर्व वात कही । तिवारs पिता कहिवा लागउ, ' हे वत्सि ! ए प्रतिज्ञा दोहिली कांई कीधो ?' पुत्री कहिवा लागी, 'आम तात! बुद्धिवंतनई प्रतिज्ञा सी दोहिली छइ १", तिवारइ पिता कहइ, 'वस्सि ! देवताना बल - पाखइ कांई न चालइ' । तिवारइ भुवनानंदा कहर, 'तात ! कर्मना वश -लगी बुद्धिना संभव हुइ । पणि सांभलि, तात ! राजाना घर-टूकडउ एक श्री आदिनाथनउ प्रासाद मोकलउ' करावि । तिहां त्रिकाल नाटक मंडावि, तिहां पात्रनां घर करावि, तेह-माहि माहरउ पणि घर करावि ।' पछइ ए सर्व मुहतइ कराविउँ ।
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हिवइ तिहां अर्धरात्रिनइ समइ भुवनानंदा नाटक करइ । आपणउं नाम लीलावती कहावइ । इम करतां एकदा राजा धवलगृह माहि सूतउ हूंतउ ते लीलावतीनां गीत सांभलिवा लागउ । पछइ सामान्य राजपुत्रनउ वेस करी रात्रिनइ समइ जिहां लीलावती नाचइ छइ, गीत गाइ छइ, तिहां पश्चिम द्वारि आवी राजा जोवा लागउ । तेतलइ लीलावतीइं नेत्र-कटाक्षबाणे तिम किमइ राजा वींधिउ, जिम प्रति दिवस तिहां राजा रात्रि आवइ, तिहां रहइ । पछइ राजा जे जे चेष्टा करइ, जे जे वात जे जे बोल कहइ, ते ते सर्व पिता - आगलि लीलावती कहइ, अनइ पिता पणि सर्व वहियावटि लिखइ । इम करतां घणा दिन गया ।
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इम एकदा अर्धरात्रि लीलावती सखीए परिवरी सुखासनि बइसी श्री आदिनाथनइ भुवनि आवइ । राजा पणि आव्यउ । "तिसइ लीलावतीइं राजा आविउ जाणी नाटक विसर्जी लीलावती आपणा पगनी वाणही जाणी करी वीसारी, आपणपइ सुखासन बइसी पाछी वली । तिसिहं राजाई चींतविडं जउ, 'ईणो बापडीइ वरांसइ रत्न खचित " वाणही वीसारी, तु रखे कोई चोर लेई जाइ ।' इम चींतवी राजा आपणपइ वाणही लेई, माथइ चडावी, केडइ जाना लागउ । तिसिइ लीलावती घरि आवी सखीनइ कहइ, आज महं वाणही देहरा - माहि बीसारी ।' तिसिई राजा कहइ, 'मई आणो छइ, तुम्हे लिउ ।' पछइ लीलावतीइ वाणही लेई करी राजानइ कहिउं, 'आज माहरइ पग "दाजई छई । तूं सखीनइ जगाडि जिम पग तलांसई' ।' तिसिहं राजा कहइ, 'कांइ सखी जगाडीइ १ हूं ताहरा पग तलांसउं ।" इम वडी वा "पग तलांसतां लीलावतीनइ निद्रा आवी । तिसिइ सउणामाहि संपूर्ण चंद्रमा मुख-माहि पइसतु दीठउ । पछइ लोलावती जागी राजानई घणउ श्रम देखी इसिउं कहिवा लागी, 'हे प्राणनाथ ! हिवडां मइ सउणा-माहि चंद्रमा मुखि प्रवेस करतउ दीठउ ।' राजा कहर, 'हे प्रिये ! सर्वोत्तम पुत्र ताहरइ होसिइ ।' इसिइ प्रभातनां वाजित्र वाजिवा लागा । राजा ऊठी आपण घरि आबिउ । लीलावती पणि आपणां धर्मकृत्य करो, बाप- समीप आवी, रात्रिनी सर्व वात कही । पछइ घर-माहि सुखिई गर्भ पालइ छइ । बारणां देई मूक्यां । वली बीजइ दिनि राजा तिहां आविउ । पाडोसणि पूछी, 'लीलावती किहां गई ?" ते कहइ, 'हूं न जाणउं' । पछ राजा अति स्नेह - लगइ रात्रि तां मोटइ कष्टि गमाडी । पछह प्रभाति मुहुता - समीपि पूछइ, 'हे मंत्रीश्वर ! तुम्हारs देहरs लीलावती एहवइ नामि विलासिनी जे मूलगी हूंती ते
१. P. L. मोटउ. २. A. पात्र नृत्य. ३. AL पणि सदाइ आवह ४. A इम अन्यदा प्रस्ताषि; L. अन्यदा प्रस्तावि. ५. P. पावडी. ६. P झलझलाई ७ A. जगावि., ८. A. पगतला उल्हांसह ९ A. पगतला उल्हांसिसु. १०. A. पगतला उलासतां.
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