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शीलोपदेशमाला-बालावबोध तिवार पछी सुडी आंबइ जई बइठी । तेतलइ आंबा-तलइ श्रुतज्ञानी दीठउ । तिणि सूडीइ ते ऋषि वांदी वैराग्य-लगी आपण आऊखउं पूछि । तिसिई ते श्रुतज्ञानी कहइ, 'तू मनुष्य-आयु बांधी, आज हूंतइ त्रीजइ दिनि तूं मरीनइ महुतउ बुद्धिसागर, तेहनी भार्या रतिसुन्दरी, तेहनी कुखइ अवतार लही पुत्रीपणउं पामेसि । पछइ क्रमिई तूं राजानइ घरि वल्लभा थाएसि'। इम वचन सांभली, महातमानउ कहिउ वृतांत देहरानी भीतिइं सर्व लिखिउं । पछइ आराधनापूर्वक महातमा-समीपि अणसण लेई, विधिइ पाली, तिहांथी चवो रतिसुंदरीनी
अवतार लीधउ । तिहां भुवनानंदा ए नाम दीघउं । पिताइ पुत्रीनइ जन्मि महा महोत्सव कीधउं । पुत्री वाधिवा लागी । मउडइ मउडइ सर्व कला अभ्यसी । पूर्विला पुण्यनइ प्रमाणि पितानइ घरि रहिती । अनेरइ दिवसि बालिका-माहि रमती श्रीआदिनाथनइ देहरइ गई । तिहां परमेसरनइ प्रणाम करी देहरउं जोवा लागी । तिसिई भीतिइं जे सूडीनइ भवि अक्षर लिख्या छइं, ते अक्षर देखी, कन्याई जाती-स्मरण ज्ञान पामी, पूर्विलउ भवंतर अनइ राजानउ न्याय, पुत्रनउ वियोग सर्व दीठउं । पछइ चींतिवा लागी, 'एह जि आदिनाथनइ प्रसादि मई मानुषउ जन्म लाघउ, तु एह जि वीतरागनी पूजा करउं ।' पछइ परमेश्वरनी पूजा करिवा लागी ।
तिसिइं बुद्धिसागरि मुहुतइ महा जात्य तुरंगम एक वेचातउ लीधउ । ते अश्वनी अनेक रक्षा' करइ । एकदा राजाइ वात सांभली जु, महंतानइं घरि जातीलउ घोडउ छह । पछइ राजाई घणी बछेरी जातिशुद्ध मोकली। ते तुरंगम-इतु घणा अश्वकिसोरा हूया' बहुमूल्य । पछइ एक दिवसि राजाई ते सर्व वछेरा माग्या । जण लेवा घरि आव्या । तेतलइ ते महुतानी पुत्री राउला जणानई कहइ, 'हु तुम्हनइ ए अश्व लेवा नही दिउं, कांइ?, जेहनउं बीज, तेहनी वस्तु । ए घोडउ तु माहरा पितानउ । ते-हूंता ए अश्व ऊपना ।' इणि वचने तलारि जई राजा वीनविउ, 'स्वामिन् ! मुहुतानी पुत्री लेवा न दिइ । इम कहइ, "जेहनउं बीज, तेह जि धणी ।” हिवइ स्वामी! जिम तुम्हनइ रुचइ, तिम करउ' । पछइ ए वात भुवनानंदाइ आपणु पिता, जे बुद्धिसागर, तेहनइ पूर्विला भवनउं स्वरूप सघलउं कहिउं । इम करतां वली राजाइ प्रधान मोकली घोडा मगाव्या । तिवारइ भुवनानंदाइ कहिलं, 'जाउ, जोउ राजानी वहीइ स्यु लिखिउं छई ? बेटा बापना इम जु लिखिउ हुइ तु घोडा म लेज्यो, नहों तु आपणा घोडा लिउ ।' पछह प्रधाने जई राजा-आगलि बात कही । राजा वही जोआवी । तिमई जि अक्षर नीकल्या । पछई राजा विस्मयापन्न-चित्त हंतउ कहिवा लागउ, 'ए कांई एक बालपंडिता छइ । हिवइ घोडा म मागिसिउ ।'
इम लगार-एक मन-माहि रीस धरी, केतला-एक दिन अन्तरालि घाती, पछइ राजाइ महता-समीपि पुत्री मागी। पाणिग्रहण करीनइ भुवनानंदानइ कहिउं, 'जु तू पंडिता छइ, तु माहरइ घरि तां मा बसि, जां ताहरइ सर्व लक्षण पुत्र हूउ न हुइ ।' तिसिइ भुवनानंदा हसीनइ कहिवा लागी, 'हे प्राणनाथ! पुत्रना जन्म हुया पछी हूं ताहरइ धरि आविसु, इम्हिइ नही आवउं । पणि एक वात सांभलि, हं तु स्त्री. ज एकवार तझ पाहई आपणा धोआवउं', वली आपणा पगनी वाणही तुझ पाहिइ वहावउं' । इसी प्रतिज्ञा करी बापनइ घरि आवी । .. १ P. यत्न २ A. कीजइ. ३. P. नीपना. ४ P. नफरानइं. ५. P. तलांसांउ.
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