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शीलोपदेशमाला-बालावबोध
रण करी रुक्मिणी' बइमारी, अनइ नारायण नगरि-माहि आविउ । तिसिइं सत्यभामाइं पूछि उं, 'स्वामिन् ! मायावी! कहि-न, ते कण कन्या तइ आणी छइ ?' तिसिइ माधव कहिवा लागउ, 'मइ वन-माहि लक्ष्मीनइ भुवनि ते मूको छइ ।' पछइ सत्यभामा सउ केइ परिवरी तिहां जोत्रा आवो, चउ-पखेर देहरउं जोइ पणि देखइ नही । पछइ लक्ष्मोनि वरांसह ते रुक्मिणीने पगे लागी कहिवा लागी, 'हे मात! नारायणि मुझ ऊपरि सउकि आणी छई, पणि तिम करि, जिम सउकिनउ दुख मुझनइन हुइ । माहरा मनना मनोरथ पूरि।' इम कहती पगे लागी। देहरा-माहि चउ-पखेर जोवा लागी, तुहइ न देखा। पछइ पाछी आवी नारायण-प्रति कहइ, 'हे धुतेशिरोमणि ! तइं प्रिया किहां मूकी छइ ?' नारायण कहइ, 'चालि देखाडउं'। तिसिई लक्ष्मीनइ ठामि बइठी रुक्मिणी देखाडी । तेतलइ सत्यभामा रीसाणी नारायण-प्रति कहइ, 'ए पाखंड तई जि सीखवी'। जोइन, हूं एवडी वडी इ तेहनइ पगे पाडी।' तिसिइ नारायण हसीनइ कहि वा लागउ, 'बहिनने पगे पडतां स्यउ दोष ? एह जि तुझनई संतुष्ट हूंती मनोवांछित फल पूरिसिइ ।' इणि चनि रीसाणी सत्यभामा नीचङ माथउं घाती रही । तिसिई नारद आवी कहइ, 'तहींई तई माहरी अवज्ञा कीधी, तु जोइन', सउकिनउं संकट तुझन हूउ।' पछइ नारायणि सघली सउकि देखतां पट्टराणी रुक्मणी थापी।
एहवउ नारद संभेडानउ लगाडणहार, जीणई द्रूपदी परदीपि मोकली, अनइ नारायणि जिणि रीतिइ वाली इत्यादि केतला नारद ना संबंध कहींइ ? एहबउ जे नारद मोक्षि गयउ, ते केवलउं शील जि नउं महातम्य जि जाणिव । इति सील-ऊपरि नारद-ऋषिनी कथा ॥४॥
हिवइ जे तपस्वी शील-रहित तेहनउं कारण कहइ -
दाया वि तवस्सी वि हु विसुद्ध-भावो वि सील-परिभट्ठो ।
न लहइ सिवसुहमसमं ता पालह दुक्कर सीलं ॥ १३ व्याख्या :-दातार सदाइ दान दिइ छइ, तपस्वी सदाइ तप करइ छइ, निर्मल भावनासहितइ, पणि शीलि करी रहित, शोलभ्रष्ट प्राणी असम-असामान्य शिवसुख न पामइ । तेह-भणी दुक्कर शील, अहो लोको ! तुम्हे पालउ ॥ १३ ॥
अनेराइ विसमां काज करतां घणाइ दीसइ, पणि सील पालतां विरला जि केई दीसइ - ए संबंध बिहुँ गाहे करी कहइ -
दीसंति अणेगे उग्ग-खग्ग-विसमंगणे महासमरे । भग्गे वि सयल-सिन्ने मंभीसा-दाइणो धीरा ॥१४ दीसति सोह-पोरिस-निम्महणा दलिय-मयगल-गणा य ।
मयण-सर-पसर-समए सपोरिसा किंतु जइ किंपि ॥१५ (युग्मं) व्याख्या :-अनेक-घणाइ उग्र भयना (?) कारक एहवउ उग्र खड्ग, तिणि करी विषम संग्रामांगण=भूमिका जिहां छइ, इस्या महा रौद्र संग्राम-माहि समस्त कटक भाजतां हूंता, 'अहो सुभटो ! म नासउ, म बीहउ' एहवी मंभीस =धीरपणउं, तेहना देणहार, इस्या धीर-पुरुष घणाइ पृथ्वी-माहि देखीइ ॥१४॥
१. L. रुक्मणीनइ. २. L. पखे. ३. A. ठामि छइ बइठी छइ. P. रुक्मणी बइठो. L. 'बइठो' नथी. ४. P. जोईनइं. ५. P. L. भयनइ. ६. A. P. L. बंभीस.
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