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मेरुसुन्दरगणि-विरचित
भद्रि ! ताहरा कीधइ दूर पंथ अवगाही रागवश-लगइ हूं इहां आविउ, तु हिवइ तुम्हे विलंब म करउ, ईणइ रथि बइसउ' । पछइ रुक्मिणी रथि बइठी । रथ पवनवेगि चालिउ ।
धाविमाताई आपणा माथा-तउ' बोल ऊतारिवा-भणी मोटइ सादइ पोकार कीधी, 'अहो लोको! धाउ धाउ', जोउ जोउ, कोई विद्याधर अथवा मनुष्य रुक्मिणीनइ लेई जाइ छइ ।' तेसलाइ नारायणि पंचयज्ञ नाम शंख पूरी, आपणपउं जणावी, रथ खेडाविउ । तिसिइ नारद कलिप्रिय शिशुपाल समीपि आवी कहवा लागउ जउ, 'ताहरी वरी नारायण लेई जाइ, तु ताहरउ जीवतव्य सिह काजि इसिई रुक्मी-राजानइ पणि शुद्धि हुई । पछइ बेवइ रुक्मी अनइ शिशुपाल-राजा अमित सैन्य मेली वाहरइ चड्या । पछइ वयरीना समूह आवता देखी रुक्मिगी कहिवा लागी, 'हे प्राण ना! तुम्हे तु बि जणा एकाकी, ए तु चतुरंग कटक मेली केडइ आव्या । हिवइ माहरइ कीधइ तुम्हनइ विणास ऊपजिसिइ । तु इम जाणउं, कुलनी क्षयकारिणी ई आज 'हुई। तिसिई रुक्मिणी कायर देखी नारायण आपणउं बल देखाडिवा-भणी महांत एक वृक्ष एकणि बाणि करी छेदिउ । पछइ वली हाथि मुद्रिकारत्न हूंतउ हीरा जडित, ते कपूरनी परिइं चूर्ण करी कहिवा लगउ, 'हे प्रिये ! ते बापडा मुझ आगलि किम ऊभा रहि
इसिइं रुक्मी-शिशुपाल दूकडा आव्या देखी बलिभद्र कटक-सामहउ मुकिउ, आपणपइ नारायण रुक्मिणीनइ रथि बइसारी चालिवा लागउ । तेतलइ रुक्मिणीइं कहिउं, 'माहरा भाईना जीवदान देज्यो'। पछइ बलिभद्र नारायण-रुक्मिणीनइ विसर्जी मंथाणानी परिई वयरी दल मथिवा लागउ। हलि करी, मुसलि करो हणतां, अनेक सुभट पड्या । तिसिइं शिशुपाल साम्हउ अठिउ । रणतूर वाजइ छइ । इसिइं बलिभद्रइ मुसल-सिउं शिशुपाल तिम किमइ ताडिउ, जिम नासी गयउ । इसिइ नारद कलि-कुतूहली आकाशि नाचिवा लागउ, हाथि ताली बात कहइ. “अरे शिशुपाल | कांड नासइ ?' तिसिई रुक्मीराजा पणि रणे-भूमिकानइ विषइ अति रीसाणउ हंतु बलिभद्र-साथइ झूझ करिवा लागउ। अनेक आयुध मूंकइ । तिसिई बलिभद्रि तीक्ष्ण क्षुरप्र-बाणि करी "रुक्मीनां हथीआर सर्व काप्यां। माथइ दाढीइ नावीनी परिई बाणि करी मुंडन कीधउं । पछइं बलिभट रुक्मीनइ कहिवा लागउ, 'मइं तूं वहूना भाई-भणी जीवतउ मूकिउ छई । भीखारीनी परि पेट भरि, फोकट म मरि ।' पछइ असमर्थपणइ नीचउं माथउं घाती रहिउ। तिहां बलिभद्रि स्तंभ रोपी.जैत्र-पदवी पामी, द्वारावतीइ पाछउ आविउ । नारायणनइ ते सर्व वृत्तांत कहिउ।
पा नारायण रुक्मिणोनइ इसिउं कहइ, 'ए देवता-कृत आवास, ए देवतानी नीपाई रावती नगरी, ए क्रीडावन । इहां तू मननी इच्छाइ सुखिइ रहि ।' इसिइ प्रस्ताव लही रुक्मिणी नारायण-प्रति कहइ, 'स्वामिन ! जिम सेवक कोई झाली आणीइ, तिम हूँ आणी छउं । न आणीब, माहरउ निर्वाह किम होसिइं? कांई सउकिनां वचन-हासा"सहियां जोई सिइ'। तिसिई नारायण इसी करी रुक्मिणी-प्रति कहइ, 'सघलीइ सउकिनइ धुरि हूं तुझनइ करिसु' । ईणि वचनि किमणी संतोषाणी । नारायण केतला-एक दिन तेह जि वन-माहि रहिउ । पछइ नारायणि ते वन-माहि वसंतसमइ महालक्ष्मीनइ देहरइ आगिली प्रतिमा ऊठाडीनइ तेहनइ ठामि सालंकार साभ
१. L. थु. २. P. पुकार, L. पुकार कीधी. ३. P धावउ धावउ ४ L शशिपाल(ए प्रमाणे अन्यत्र पण) ५. P. किसइ ६. L. थई. ७. L. जीवतदान. ८. P. क्बावतउ; L देतु. ९ A. ऋण. P. रुण; L. रणि. १०. L. रुक्मीया (अन्यत्र पण) ११. P. सांसह्या.
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