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मेरुसुन्दरगणि-विरचित पछइ देवताए मिली विमासिउं जउ, 'ए विश्वामित्र ब्रह्मानी सृष्टी ऊथापी आपणी सृष्टि थापई। तिवारइं तेत्रीस कोडि देवताए मिली मेघ राखिउ, तु विश्वामित्रि कूआ नवा करी भूमिका-हंतुं पाणी कादिउ । पछइ वली जउ गाई दूध देती राखी, तु भइंसि नवी कीधी । माणस पणि नवा करिवा मांडया, तु नालिकेरु मस्तकनई ठामि कीघउ, कोहलू हईआनइ ठामि कीधळं, दूधीया हाथनइ ठामि कीधा । इम करता देखी सर्व देव बीहना । पछइ पगे लागी ऋषि मनाविउ। पछइ मनुष्य न कीधा । एवडी शक्ति ऊपनी । इसिइ सौधर्मेन्द्र अवधिज्ञाननइ बलि तपनन महातम्य जाणो मन-माहि बोहनउ जु 'ए ऋषि तपबलि माहरी इंद्र-पदवी पणि लेसिइ, तु कीणइ उपाइ तप-हूंतउ पाडउ।' इम चीतवी मेनिका देव-कन्या तेडीनइ इंद्रिइ कहिउं जउ, 'विश्वामित्रनइ तप-हंतउ पाडि ।' पछइ मेनिकाइ इन्द्रनउ वचन पडिवजी, जीणइ आश्रमि विश्वामित्र छइ तिहां आवी, वसंत-ऋतु अवतारी । अदार भार वनस्पती मउरी, कोइलि टहका करइ, भमरा रुणझुणाट करइ, आंबानी' मांजरइ परिमल वाघिउ, मलयाचलनउ वाय वायउ-इत्यादि वसंत-ऋतु अवतारी, मेनिका देवांगनाइं ऋषि-आगलि नाटक मांडिउ । आपण मूलगउं रूप देखाडी सोल भेद शृंगारना करी कोकिल-स्वरि पंचम-राग-गर्भित गीत गान, वेणवंस-वादन, नृत्य हाव भाव, कटाक्ष, रूप बाण-विक्षेप, अंगना स्पर्श तिम किमइ करवां मांडयां, जिम विश्वामित्र ध्यान-हूंतउ चूकउ, विवेक नाठर, मन खलभलिउं । जेतलइ नेत्र ऊघाडयां, तेतलइ कंदर्पने बाणि वोंधी ऋषि जाजरउ कीधउ । काम-विह्वल हंतउ मेनिका सेवी, घणउ काल विषय-लुब्ध रहिउ, सर्व तप-ध्यान-हूंतउ चूकउ। तु एहवाइ क्षत्रीय-जात तपि करी शोषितदेह द्वीपायन-विश्वामित्र-जमदग्नि-रेणुका-प्रमुख घणाइ पारासुर-वसिष्टादिक लौकिक ऋषि ते ही ध्यानहंता पड्या । एह-भणी शील पालतां दोहिल। ए ऋषिना विस्तार महामारत-हूंता जाणिवा । ए कथा त्रीजी जाणिवी ॥३॥
४अन्यानता-लगइ जे शील-हूंता भ्रष्ट थया तेहनु स्यूं कहीइ ? अनइ जे परमतत्त्व जाणइ, विषय विष-समान मानइ, तेहनइ शील पालतां दोहिललं ---
जाणंति धम्मतत्तं कहंति भावंति भावणाओ य ।
भव-कायरा वि सील धरिउं पालंति नो पवरा ॥९
व्याख्या - जाणइ-बूझइ यथोक्त वीतरागनउ भाषित मार्ग। ते किसिउं १ एकलूं जाणी जि रहइ, अनेराइ जीव आगलि धर्मनउं तत्व कहइ-उपदिसइ, अनइ बारइ भावना आपणइ चित्ति भावइ, अनइ भव-संसारना जे अनेक जरा-मरण-जन्मादिक भय छ। तेह-थका घणउं बीहइ, तिणि करी. कायर छइ, एहवा-इ हूंता शीलब्रतनउ अंगीकार करी पाली न सकइ । एह अक्षरार्थ कहिउ ।
अथ वली आगम-माहि शील पालिवा-ऊपरि च्यारि भांगा कहिया ते कउण ? एक, जीव सीहनी परिइं व्रत आदरइ, सीहनी परिइ पालइ - ए भांगउ सर्वोत्तम १। सीहनी रीतिइं लिइं. सीयालनी रीतिइं पालइ-ए मध्यम भांगउ २ । सीयालनी परिई लेई, व्रत सीहनी परिई पालइ-ए ही भांगउ वारू ३ । सीयालनी परिइं व्रत लिई, सीयालनी परिई पालइ-ए अधम भांगउ ४। ए चतुर्भगी-माहि बि भांगा उत्तम, बि भांगा मध्यम जाणिवा ॥९
हिवइ सघलां-इ धर्मकृत्य करतां दोहिलां, परं तेह-पाहि सील पाला घणउ दोहिलउ वली तेही जि कहइ -
दाण-तव-भावणाई-धम्माहिंतो सुदुक्करं सील । :
इय जाणिय भो भव्या अइजत्तं कुणह तत्थेव ॥१० १. P. आंबा मउरिवा लागा. २. P. थकी. ३. A. गात्र. ४. अजाणपणा-लगइ ५. P. पाहंति.
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