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शीळोपदेशमाला - बालावबोध
उ । चित्रांगदन
चींतविड,
राज्य दीधउं । इम केतलई कालिई नलांगद वइरी साथिई झूझ करतां चित्रांगद पडिउ | पछइ चित्रांगदनइ पाटि चित्रवीर्य बइसारिउ | तेहनई अंबिका अंबालिका अंबा र त्रिणि स्त्री सहित भोग भोगवतां, राज पालतां संतानविण चित्रवीर्य पणि परोक्ष हूउ । तिसिहं गांगेयईं 'भावइ तिम तां कुलनी वृद्धि कीधी जोईइ, अनइ हूं त ब्रह्मचारी | भूमिका रूप त्रिणि स्त्री तउ छई, अनइ बीजनउ संभव जोईइ' । तेह-भणी चित्रवीर्यनी वडी भार्या अंबिका, पारासुर ऋषिनउ पुत्र सत्यवतीनउ पहिलउ बेट द्वीपायन एहवइ नामिई जे महा उग्र तपी मासक्षपणनइ पारणइ सूकउ सेवाल पलासन पत्र कंद-मूल भखी, बीजउं मासक्षपण करइ, पारणइ सूकउ सेवाल लिई - एहवउ जे ऋषीश्वर तेह समपि अंबिका मोकली | तिवारई अंबिकाई चींतविडं, 'ए तु माहरउ' जेठ' इसी लाज-लगइ वस्त्रनइ थानकि सूकडिं सर्वागि लगाडी, शृंगार करी, द्वीपायन-कन्हलि गई । तिसिईं द्वीपायन पणि रूपि मोहिउ थकउ अंबिकानइ आदरई । पछइ द्वीपायनि कहिउ', 'ताहरह पुत्र होसिइ, पणि पांडरइ वर्णि होसिइ ।' बीजइ दिनि पणि स्नाननइ अवसरि अंबालिका मोकली | द्वीपायन - समीपि तिणि लाज-लगी आंखिई पाटा बांध्या । पछइ ऋषि कहर, 'ताहरइ पुत्र होसिइ, पणि अंध होसिइ ।' वली त्रीजइ दिनि अंचा मोकली । तिणि अबाइ आपणह ठामि लाज-लगी दासी मोकली । इम त्रिहुंनइ पुत्र जनम्या, पांडु १ धृतराष्ट्र २ विदुर ३ एहवा नाम हूया | तु जोउ एहवाइ ऋषि स्त्रीना संसर्ग * लगइ शील-हूंता चूका । तु एहवा महा विषय " विषम छइ । इहां द्वीपायननउं स्वरूप कहिउं ||२
हिव विश्वामित्रनउ स्वरूप कहीइ
[३. शीलभ्रंश - ऊपरि विश्वामित्र ऋषिनी कथा]
गाधिराजान पुत्र विश्वामित्र एहवइ नामि क्षत्रिय वंश-मंडन । तिणि वशिष्ट ऋषिनी स्पर्धा अहंकार लगइ तापसी दीक्षा टीवी' । सूका सेवाल, नीरस आहार, मासि मासि पारrs करइ । सूर्य साम्ही दृष्टि, चिहुं पासे अग्निना च्यारि कुंड बलई-इम महा दुस्तर तप करइ । ते विश्वामित्रनइ तप-लगइ अनेक शक्ति हुई । एकदा प्रस्तावि वशिष्ट - विश्वामित्रनह विरोधि, कोई एक अंतिज - समान पुरुष आवी वशिष्टनइ कहइ, 'मुझनइ याग करावउ ।' तिवारइ वशिष्ट कहइ, 'तूं पतितनइ हूं याग नही करावउं ।' पइ विश्वामित्र - कन्हलि जई प्रार्थना कीधी । तिवारइ विश्वामित्र वसिष्टनी स्पर्धा-लगइ कहिउ', 'तुझनइ हूं याग कराविसु ।" पछइ सर्व उपस्कर मेली सर्व ऋषि तेड्या, याग कराविउ, पणि वशिष्ट' नाव्यउं । पछइ याग हूया -पछs विश्वामित्र कहिउ, 'तू' स्वयं देहि स्वर्गि जा' ।' जेतलइ ते स्वर्गि गयउ, तेतलइ देवताए मिली इंद्र वीनविउ । इंद्रि कहिउ', 'तू' पाछउ जा' ।' पछइ निर्भर्रिसउ हूँउ पाछउ आवी ऋषिनई कहिउं । ऋषि वली मोकलिउ, वली इंद्रि वज्र लेई कहिउ कि, "जा, नहीतर मस्तक - छेद करिसु ।' पछइ बीहतउ पाछउ आवी ऋषिनइ कहिउं । पछइ ऋषिनइ देवता - सिउं वयर ऊपनउ । तिहांथिकी विश्वामित्र नवी सृष्टि करवा मांडी ।
१. P. माहरइ. २. ५. P. विषय महा. ६. A. या, P. जाजे. १०. P. जाहि.
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P. हूंतउ. ३. A. ताहरउ. L. लेई. ७. विशिष्टनी. ११. P. जाई.
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४. P. संग, L. संगम, ८. L. विशिष्ट. ९. A.
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