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मेरुसुन्दरगणि-विरचित
[२. शीलभ्रंश - ऊपरि द्वीपायन ऋषिनी कथा ]
fus भरतक्षेत्र हस्तिनागपुरि शांतन राजा राज्य करइ, आपणी प्रजानई सुखिई पालइ | परं राजा मृगनु आहेडउ, तेहनइ विषइ रसिक हूंतउ । एकदा हरिण देखी राजाई घोडउ मूंकिउ । तेतलइ हरिण हरिणीनइ लेई वन-माहि नाठउ । राजाइ वन- माहि जातउ जातउ सात भूमिकानउ' एक आवास दीठउ | पछइ राजा अश्व मूंकी आपण आवास माहि सातमी भूमि जेतलइ चडइ, तेतलइ रूपवंत कन्या एक पाणीनउं पात्र लेई राजा साम्ही आवी, राजानई आसन मूंकिउ, घणउ विनय साच विउ | पछइ अति संतोषिक हूंतउ राजा कन्या - प्रति पूछइ, 'हे सुभगि ! तू कहिनी बेटी ? एकली आवासमाहि कांइ ?' इम पूछिइ हूंतइ बालिकाई कहिउँ, 'राजन् ! सांभलि, जनु नामा विद्याधर, तेहनी हूं बेटो गंगा एहवई नामि । माहरइ पिताई पूर्वि नैमित्तिक पूछिउँ हूंतउं जउ, " पुत्री गंगानई वर कउण होसिइ ?” तिसिइ नैमित्तिक कहिउं, "ए गंगानई पांडुक-वनमाहि वरनी प्राप्ति होसिइ ।” पछइ पिताई ए सप्तभूमिक आवास करी हुं इहां मूंकी ते वचन आज सफल थयउं ।' एहवां कन्यानां अमृत ससनेह - कारीयां वचन सांभली, तिहां जि गांधर्वविवाहि पाणिग्रहण गंगा कन्यानरं कीधउं । पछइ सांतन राजा महा ऋद्धिनइ विस्तारि गंगानइ नगरि लेई आवि । पंच प्रकारे विषयसुख भोगवतां अनुक्रमिदं पुत्र जायउ । नाम गांगेय दीघउं । बीजना चंद्रमानी परिहं वृद्धि पामतउ, बहुत्तरि कला अभ्यसतउ, विशेषतः धनुर्विद्या सीखी । इम अनेर प्रस्तावि तेह जि हस्तिनागपुर - समीपि यमुना नदीनइ उपकंठि पारासुर ऋषि तप करतां धीवर ऐकनी पुत्री मच्छगंधा इसिई नामिई दीठो । अति-सरूप देखी पारासुर ऋषि ध्यानहूंतउ चूकउ । मच्छगंधा घरि आणी । केतले दीहाडे संतानप्राप्ति हुई । बेटउ जायउ । मच्छगंधाइ तेहनइ द्वीपायन नाम दीघउं । मोटउ हूउ पछइ द्वीपायनि तापसी दीक्षा लीधी, तप तपिवा लागउ | ए स्वरूप आगलि कहीसिइ ।
हिवइ मच्छगंधा १ योजनगंधा २ सत्यवती ३ ए त्रिणि नाम हूयां । एहवइ प्रस्तावि हस्तिनागपुरनउ स्वामी शांतन राजा क्रीडा करिवाभणी नावइ बइसी यमुनानदीनइ कांटइ आविउ । तेतलइ शांतन राजाई तेह जि सत्यवती, धीवरनी पुत्री वडी दीठी | महांत रूप देखी सराग हूंत शांतन राजा तेहना पितानई कहइ जउ, 'ताहरी बेटी मुझनइ आपि' | तिवारई
वरि कहिउं 'तुझ सरीखउ जमाई लाभइ किहां ? पणि तुम्हारइ गांगेय पुत्र । तेह तां माहरी पुत्रीना पुत्रनई राज न हुइ । जउ तू एहवी वाचा दिइ जे "सत्यवतीना पुत्रनइ हूँ आपणउं राज दिउँ" तउ हूं आपणी बेटो तू हनई दिउँ' । इणि वचनि राजा सचित थिकउ' घरि गयउ' । राजा राजनी कणवार न करइ, भोजन पणि न करइ । एहवइ प्रस्तावि गांगेयई जाणिउं जउ राजा एह भणी चिंता करइ छइ । पछइ गांगेय धीवर कन्हलि जई, सत्यवती पुत्री मागी, एहवउं वचन दीघउ जउ, “सत्यवतोना पुत्रनई राज्य । हूं ब्रहाचारी । मई राज सही परिहरिउं ।' एहवी वाचा देतां देवताए जय-जयारव करतें फूलनी वृष्टि कीधो । गांगेयं भीष्म उग्र कर्म कीधउं तेह-भणी भीष्म ए नाम हूउं । तिवारइं घीवरिइं योजनगंधा पुत्री दीधी । शांतन राजा परिणिउ ।
क्रमि योजन गंधाई बि पुत्र जन्म्या, "चित्रांगद १ चित्रवीर्य २ | छह बेहु" बालक यौवनाभिमुख हूंता सर्व कला अभ्यसी, राजयोग्य "हूआ तेतलई शांतनराजा परोक्ष
१. P. सातभूउ. २. A. थया. ३. P. सारोखउ ४ P तुझनइ K तुम्हनइ. ५. P. हूंत उइ. ६. P. L आविउ. ७. K. करणवार ८. A. कन्तइ ९. K. एह नाम दोषड १०. P. चित्रांगज. ११. A. त्रिए; M. P. वेबइ. १२. A. थया.
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