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• मेरुसुन्दरगणि- विरचित मार्गि अनेक धर्मकाज करतां भद्दिलपुरनइ उद्यानवनि आवी, सर्व हस्ती अस्व तिहां राजी, सप्तभूमिक आवास करावी, पछइ अनेक बहुमूल्य वस्तु भेटि लेई, राजानई मिलिउ । तिसिइँ राजाईं ते तेहवी अपूर्वं वस्तु देखी हर्षित हृतउ घणउ मान दीघडं । तिसिहं प्रधानइ 'ऊठी राजा बीनविउ, 'स्वामिन् ! ईणइ पुण्यपाल नायकिईं जे घोडा हाथी आण्या छई ते आपणपs तिहां जई जोईइ, द्रव्य देई लीनइ ।' ए वचन सांभली पुण्यपाल राजानई प्रणमी कहइ, 'स्वामिन् ! धन - पाखइ जि कांई जोईइ ते भंडारि अणावउ, अनइ ईई मिसिई एकवार घरि आवी अम्हारा मनोरथ पूरवउ ।' पछई राजा अनइ पुण्यपाल बेहू गुणसुंदरीनह आवासि आव्या | पछइ स्नान-मज्जन' देवार्चन करी जेतलइ राजा भोजनशा लाई आवी जिमवा बइठउ, * तेतलइ सुवर्ण स्थाल, सुवर्णमय वाटली आगिलि मांडी । तिसिह पूर्वदिसिना द्वार - हूंती गुणसुंदरी नीकली, स्वेत वस्त्र स्वेत आभरण पहिरी, फलफूल सूखडी लेई, राजानइ स्वली गुणसुंदरी दक्षिणद्वार हूंती नीलां वस नीलां आभरण पहिरी रसवती राजानई परीसी । वली उत्तरनइ द्वार हूंती पीलां वस्त्र पीलां आभरण पहिरी, पकवान परस्यां । पछइ पश्चिम दिसिनइ द्वारि रातां वस्त्र रातां आभरण धरती, गोरसादिक परीसी करी, गुणसुंदरी पछी गई । पछइ जेतलइ राजा भोजन करी पुण्यपाल-संघादि स्नेहमइ वात करइ * तेतलइ गुणसुंदरी पितादत्त पूर्विल्ड वेष पहिरी राजानहं प्रणाम कीधउ । तेतलइ राजाईं पुत्रिका ओलखी, लाजिउ हूँउ दीनपणइ रहिउ । पछइ पुत्रिकानई उत्संगि बइसारी कहिवा लाग3, ' वत्सि ! ताहरउ स्वरूप देखी कर्मनउ फल मई साचउ मानिउ । जि कांई जीव दुख नइ सुख पामइ ते सहूं कर्म-जि-नूं" फल ।' इसिउ कही राजा कहर, 'मई भोजन करतां तू ओलखी नहीं, हवs तूं आपणउ वृत्तांत कहि । ए पुण्यपाल कउण " तिसिहं गुणसुंदरी सान कीधइ हूंति प्रतिहारिणीइं मूल हूंत चंदननउ वृत्तांत कहिउ ।
पछइ मातापिताए पणि अतिस्नेह-लगइ पुत्री - जमाई ओलखी, आप अनइ जमाई - पुत्री सर्व हाथीइ बइसारी, महा महोत्सव नगर-भणी चलाव्यां । तेतलइ अंतरालि श्रीवर्द्धमान-सूरि भविकजननई उपदेश देता देखी, राजा जमाई सहित गुरुनई वांदी, उपदेस सांभलिवाभणी आगलि बइठउ । तिसिइ गुरु कहइ, 'यतः
लक्ष्मीर्यशः कुले जन्म प्रतापः प्रियसंगमः । श्रीधर्मकल्पवृक्षस्य फलमेतज्जिनोदितं ॥ १ ॥
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एहवउ उपदेस दीघउ । वली गुरु कहइ, "जे गुणसुंदरी भवांतर शील पालिउ तेहनउ ए फल ला उं, क्रमिई मोक्ष पणि पामिसिह ।' इत्यादि श्री गुरु- मुखि राजाई गुणसुंदरीनउ पूर्वभवस्वरूप सांभली, वैराग्यरंग पूरित हूंतउ, जमाई पुत्री ई परवरिउ, राजा नगर-माहि आविउ । अनेक धर्मकार्य करवा लागउ । पछइ श्रीपुण्यपालनई आपणउं राज देइ अरिकेसरी राजाइ चारित्र लीघउ । पछइ ते अखंड राज्यश्री पालतां पुण्यपाल नई गुणसुंदरीनइ सुलोचन नामिईं पुत्र
उ । गृहांगणि घणा वधामणा हूया । सकल कला क्रमिई अभ्यसी कुमार राज्यभारनई योग्य हू । तेतलइ राजाई ते सुलोचन - पुत्रनइ राज देई, पुण्यपाल-गुणसुंदरीई चारित्र महा महोत्सवि लेइ निःकलंक व्रत पाली, मोक्षसुखनउ भाजन हुआ । इम शील ऊपरि गुणसुंदरीनी कथा जाणिवी ॥ १ ॥
१. L. मर्जन, २. A. बइसइ. २. A. वाटला, P वाटुली. ४. P करई छइ. ५. P. कम्मनउ, L. कर्मनू. ६. L. ते कुण.
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