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________________ २८ शीलोपदेशमाला-बालावबोध अथवा मुझनइ धिधिकार हु, जे मइ जिनधर्म छांडइ हुंतइ हूं कुटुंबिई छांडी. नीचेनी रचनामां ए किसिउ अंते आववाने बदले वच्चे आव्यु छ : तूं मुनि- पुत्रिका हुईनइ सांप्रत ए किसिउ राक्षसी थई ? ३० नामिक वाक्यो : विधेय तरीके कोई पूर्ण आख्यातिक रूप होवाने बदले आ प्रकारनां वाक्योमा नाम, विशेषण वगेरे होय छे. प्रश्नार्थ वाक्यो : ए कउण स्त्री, कउण बालक ? कहि-नइ, तूं कउण? तू कहिनी बेटी ? बलिभद्र-नारायण अम्हे इ, कि ए लव नह कुश ? एकली आवास-माहि कांइ ? नेमिकुमार ए नाम स्या-भणी ? किसिउ देवांगनानउ रूप, किंवा मनुष्यनउ रूप ? ताहरउ जीवतव्य सिइ काजि ? पगे पडतां स्यउ दोष ? ए वात नउ किम ? आपणइ ए स्! कांतणउं ? ते नल किहां अनइ तू किही ? ओळखाण के चोकस माहिती देतां वाक्यो : हू' ब्रह्मचारी. हूतउ ब्रह्मचारी. हूं तु स्त्री. एह तउ माहरउ जेठ, ए तु ताहरी बहिन. तेहनी राणी विदेहराणी. तू तु लघु. तुम्हे तु एकाकी. ए इम अनइ ते तिम. ए आवास, ए नगरी, ए क्रीडावन. रोहिणीनु रूप-लावण्य अमृत तेहनी कूई. ए घोडउ तु माहरा पितानउ. बेटी मानी, बेटउ बापनउ. ए प्रताप सर्व तुम्हारउ. सघले आपणउ स्वार्थ जि वाल्हउ. भार दर्शावता संकुल वाक्यो : जे स्नेह, ते जाइ नही. धन्य ते, जे चारित्र पालइ. जेहन बीज, तेहनी वस्तु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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