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________________ शीलोपदेशमाला-बालावबोध दूत मोकलिउ वरणानइ काजि । कन्या मागी धनगिरिनइ कीधइ । बुद्धदास जिनदासनइ घरि आविउ वाणिज्यनइ हेति । कांइ कउतिग दीठ पृथ्वी-माहि ? अतिथि जमाडीइ शालि, दालि, मोदके करी । इतर - बांधी मूकिउ छइ लोहने भारसहस्त्रे । शिला चूर थइ बालकनइ प्रहारिई। विहार करतां आव्या नर्मदापुरि । वली थापिइ तीणइ थानकि । त्यां नमि अनइ मल्लिनाथ प्रणम्या महा-प्रासादि । तेह-नल ध्यान करइ छइ रातदिवस । पतिव्रता कहिवा लागी हाथ जोडीनइ । नमि ए नाम दीधउ बालकनइ । वृष्टि कीधा सर्व देखतां । हु आंबइ चडी छ आंबा खावानी वांछाइ । तेहनी हूं बेटी गंगा एहवइ नामि । २६ संबंधक भूतकृदंत वाळा वाक्यखंडनु क्रियापद अकर्मक होय अने मुख्य क्रियापद सकर्मक होय (अथवा तेथी ऊलटी परिस्थिति होय) त्यां भूतकाळनी बाबतमा अर्वाचीन प्रयोगथी मध्यकालीन प्रयोग जुदो पडे छे. कर्तानु रूप वाक्यखंडना क्रियापद अनुसार (नहीं के मुख्य क्रियापद अनुसार) 'करण विभक्ति' ना प्रत्यय ले छे के नथी लेत. जेम के नारायणि पाणिग्रहण करी रुक्मिणीनइ कहिवा लागउ । पर्वतक...आवी वात कही। शिशुपाल-राजाइ सर्व सामग्री करी कुडिनपुरति उद्यानिवनि आविउ । पुण्यपालि प्रयाणभंभा देवराधी पाछ उ चालिउ । गुणसुदरी नीकली रसवती राजानइ परीसी । पल्लीपतिई गलइ कुहाडउ करी शंखकुमारनइ शरणि आविउ । सुमित्र आवी कुसुमनी वृष्टि कीधी । अंतेउरीए ते आचार्यनी रूपसंपदा सांभली.... गुरुनइ वांदिवा आवी । तिणि अन्यदा कमलानुरूप सांभी कान-विह्वल हूउ । पिताइ आवी जाणो सामुह आव्यर । क्वचित कनु पुनरावर्तन कगयु छे, ता क्व नन जुदा जुदा क्रमे होय छे. तिसिइ गुरे ते पाषाण आवत जाणी गुरु दली अलगा हुआ । कुमार केतलाएक दिन तिहां रही.... रात्रि बेहू चाल्या । शंखकुमार ... वांदी, पूजी पछइ मणिशेखरि विद्याधरि कुमार कनकपुरि आणीउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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