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भूमिका हत-हृदय हूंता समुद्र-माहि बूडइ. राजा गजारूढ हूंतउ रइवाडीइ नीकलिउ. अति विषयासक्त हूंतउ .... मोहिउ थिकउ ...व्यामोहिउ थिकउ ...हर्षित थिकां.. शून्यचित्त थिकउ ...बीहती र्थकी.. आकाशमार्गि जाता थका ...सभाना लोक हाजिविया थिका इसिउ भाइ...
सचिंत थिंकउ... वर्तमान अने वर्तमान हूंतउ पण आ रीते वपराय छे :
संतुष्ट वर्तमान....संतुष्ट वर्तमान हूतउ.... करण-अधिकरण विभक्ति वाळी निरपेक्ष रचनामां पण क्वचित कृदंत पछी हूंतउ वपरायु छ : इम पूछिइ हूतइ...कहिद हूं तइ....
२० जोईइ वाळी रचनाओ. पालिउ जोईइ, परिहरी जोईइ, नमावी जोईइ, कीधी जोईइ, उतारिउ जोईइ,
मोकलिउ जोईइ, हुई जोईइ, दीधी जोईइ, साहियां जोइसिइ. वर्तमान कृदंतनुं -आं प्रत्यय वाळु रूप संबंधक वर्तमान कृदंत तरीके निरपेक्ष रचनामां तेम ज इतर प्रयोगोमां वारंवार वपरायुं छे. उदाहरणो :
इम करतां, सर्व देखतां, देखतां जि, धरतां जि, मुझ छतां; पढितां केटली वार लागिसिइ. माहोमाहि युद्ध होतां. मनुष्यना संहार थातां, मू जोयतां एहनइ कुण दूहवइ छ इ. वाद करतां ऊतर नावइ...वस्त्र कापतां हाथ
वहइ नही. श्रीमती-नइ दान देतां आद्रकुमार तिहां आविउ. आ प्रमाणे छतांना अर्थमां थकां पण वपरायु छ :
सुमित्र-थिकां. तुम्ह-कन्हलि थकां उपरांत नीचेना प्रयोगो नोंधपात्र छ :
मुझनइ बलतां राखि. सील पालतां दोहिललं. धर्मकृत्य करतां दोहिला. स्त्री-साथिई वाद करतां सोभइ नही. जातां शोभइ नही. छागनउ वध तपस्वीनइ करतां जुगतउ नही ( ते साथे, जीविवा युगतउं नही).
राखतां विचालइ ( अटकावतां वच्चे ज'). कर्ता साथे कृदंतनी करण-अधिकरण वाळी निरपेक्ष रचनाओ ( 'सति सप्तमी') ना केटलांक उदाहरण :
नारद अणहणिइ पाछउ आविउ. मिथिला दासतइ... चमर ढालीते..., इम उलंभइ दीधइ · , गीते गाइते..., शील लोपाति...., दान दीजते..., ब्रह्मा रीसाणइ..., क्षुधा उपनीइ..., कारणि ऊपनइ..., यादव आगलि चालते..., लग्न दुकडइ आविइ .., राजानइ अणकहिई... लव अनइ कुश रीसाणे ह्ते, इम पूछिइ हूंतइ..., कहिइ हूंतइ..., वलतइ ऊतरि .., दीधइ हूंतइ..., सान कीइइ हूंतिइ .., एतले राजाए मिले...
२१. क्रियाविशेषणना प्रयोगो. जेतलइ-तेतलइ 'जे घडीए', 'जेवो-तेवो'ना अर्थमां वपराय छे :
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