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शीलोपदेशमाला-बालावबोध १८. करण अर्थे -न. संबंधार्थक -नउं विशेषण तरीके वपराता भूतकृदंत पूर्फ करणना अर्थमां प्रयोजायो छ : आर्द्रकुमारनी मोकली...ताहरी वरी नारायण लेई जाइ... विषयनउ वाहिर... रागना वाह्या... स्त्रीनउ वाहिउ.. राजानां दीधां आभरण.. महात्मानउ कहिउ वृत्तांत... लोभनउ लीयउ... वायनउ अंदोलित. ५८. क्रियानाम तरीके वपरातां भूतकृदंत :
माहरउ कीध. अम्हार कीध. क्रियानाम तरीके वपरातां विध्यर्थ कृदंतोः करिवउ, देवउ, रोइव
१८. काळ्ना प्रयोगो. वर्तमानमा सामान्यतः सहायक छ विनानु रूप, क्वचित छ वाळु रूप मळे छे : घातइ, लोटाडइ, नासइ वगेरे. पाम छ', बोलइ छइ, भमउ छउ वगेरे. वर्तमाननो आसन्न भविष्यना अर्थमां उपयोग : हूं पण ..नाग पूजिवा-भणी मध्याह्नि आवउ छउ.
हिव हूं गुरु-कन्हलि जई आलोयण लिउ छउ. हूं चारित्र लिउ छ. आदतवाचक भूतकाळ माटे वर्तमान कृदंतनु रूप वपरायु छे :
आगइ हूँ ए तापसवन-माहि रहिती. गौण वाक्यमा वर्तमान, अने मुख्य वाक्यमां भूत :
जु महात्मा-कन्हलि आवइ, तु अजी ते महातमा काउसग्गि दीठउ. वर्तमान निषेधार्थमा नथी साथे वर्तमान कृदंत : मिली नथो सकतउ. भविष्य निषेधार्थमां नहीं साथे वर्तमान- रूप : वार नही लागइ. हूँ मनुष्य-लोकि नही आवउ. नही छूटइ. नही दिउ.
१९. कृदंतना प्रयोग वर्तमान कृदंत अने भूत कृदंत ज्यारे विशेषण तरीके वपरायां छे त्यारे, तेम ज अन्य विशेषणो पछी पण अनेक वार तेमनी पछी हूंतउ के थिकउ मुकाथु छे : आ हिंदी रचनानी ( दिया हूना दान वगेरे ) याद आपे छे. अर्वाचीन गुजरातीना प्रारंभमां पण रोतुं छत वगेरे जेवा प्रयोगो थता. केटलीक वार ए 'होईने' के 'थईने' नो अर्थ धरावे छे. उदाहरणो :
सूडी रोती हूती कहिवा लागो. बीहती हूती...घर-माहि मई. राजा सूतउ हूं'तउ ...सांभलिवा लागउ. मोक्षमार्ग साधीता हूँता ...रोसाणउ हूँ'तउ... पालोती हूंती...वाधती हूंती... ...हसी हूँती रीसाणी. लाजिउ हूतउ...हर्षित हूंती...विलखउ हूतउ... कहणहार हूंतउ भणइ. विरतउ हूंतउ. विरक्त हूंतउ. ऋषिदत्ता सूती हूँती ( =होईने ) ए वात जाणइ नही. सहर्षित सस्नेह हूँती. जे गृहस्थ हूती. जे गृहस्थ हूंता (=होईने ).
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