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मेरुसुन्दरगणि-विरचितं
तिसिह तिणि मित्र 'छानइ - सिउं धन - सार्थवाहनइ वरनडं आगमन जणाविउँ । धनह पणि विवाहनी सर्व सामग्री सज्ज करी मूंकी । पछइ समुद्रदत्त सपरिवार घरि जिमवा निहुतरिउ । तिहां काणिई पाडो धनश्रीनउं पाणिग्रहण कराविउं । हाथ - मेल्हावणीइं घणउं धन दीघउ । पछइ वली मित्रनु प्रेरिउ वासगृह-माहि गयउ । तिसिई तिहां धनश्रीनई देखी तत्काल पाछउ वली, मित्र - समीप आवी सुतउ । पछइ प्रभाति शरोरनी चिंतानइ मिसि कागनी परि किहांइ नासी गयउ । लगारेक हूई जिवारदं नावइ, तिवारह मित्र सुसरानई कहाविड जउ, 'तुम्हारउ जमाई दीसतु नथी ।' पछइ धन सार्थवाहर जमाई सघले जोआविउ, पणि किहांइ न लाघउ | मउडइ मउडर ए वात सागरचंद्र - पिताई सांभली । पिता पणि महा असमाधि करत हिां आविउ । तिहां इ पुत्रनी सुद्धि अणपामतउ वली पाछउ घरि पहुतउ । इम करतां बार वरस वउलियां ।
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बारमा वरसनइ अंति समुद्रदत्त कापडीनइ वेसि स्थूल पीनांग देह धरतउ तिहां अत्री घनश्रेष्ठिनइ प्रणाम करोनइ इसिउं कहइ, 'अहो श्रेष्टि ! जउ तुम्हारइ उद्यान - वननइ रखवालउ जोईइ, तु मुझनइ राखउ ।' पछइ सेठइ तेह जि वाडीनउ रखवालउ कीधउ । हिवइ ते समुद्रदत्त कापडीनइ वेषि हूंतइ तिम कांई वृक्षनी शुश्रूषा कीधी, जिम थोडा दिन -माहि नंदनवन सरीखउ वन दीसिवा लागउ । अन्यदा धन- सार्थवाह तेहवी वनलक्ष्मी देखी, आनंद-पूरित ईंड, मन-माहि इम चतविवा लागउ जउ, 'आज पहिलउं एहवड कलापात्र मई योग्य कोई न दीठउ । तु हिवइ ए आपणइ हाटि बसारी ।' इम चौतवो पछइ ते समुद्रदत्त कापडी बहुमानपूर्वक आपणइ हाटि बइसारिउ । तीणह थोडा दिन-माहि घण लक्ष्मी ऊपार्जी । पछइ अति विनीत देखी विनीतक एहवउँ नाम दीघउं । ते विनीतक सघले विख्यात हुङ । तिवारइ श्रेष्टिई चींतबिउं जउ, 'रखे ए विनीतक सर्व-गुणमह देखी राजा लिइ ।' इम विमासी पछइ सर्व घरना काज-काम तेहनइ भलाव्यां । हिवर ते घरनां वांछित काज करत पुत्र नाहइ ते अधिक करो मानिउ । कांई ? सघले गुण जि ' अर्चीह । यत :लहुडा वडा मा भणउ, गुण वडा संसारि । गागरि अछछ बइठडी, करवइ पीजइ वारि ॥१॥
इम ते विनोतक सर्व कार्य करतउ, धनश्रीना मननइ विश्वासपणउं पामिउ । पणि भरतारनइ उलख नही । इम अनेरइ दिवसि धनश्री गउखि बइठी तलारिहं दीठी । तिसिई तलार कामांध हूड । यतः -
न पश्यति हि जात्यंध कामांधो नैव पश्यति । न पश्यति मदोन्मत्तो अर्धी दोषो न पश्यति ॥२॥
ते तलार अति काम व्याप्त हूंतइ, आपणी स्त्रीना पारखा-भणी विनीतकिकहिउं, सर्व बात कहिसु ।' कांई ? जे धूर्त हुइ, ते
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धनश्रीनी प्रार्थना विनीतक पाहइ करावी । तिवारह 'ए वातनी चिंता म करी । अवसरि धनश्रीनइ हूं परमार्थं लेवा-भणी सघली वस्तु पडिवजइ । पछ
१. C. L. Pu. छानउं । २. K. लाजिई पाडी । ३. C. Pu. काज तेह माहि भलाव्या । ४. K. Pu. अर्धी । ५. K मन गुणउ ।
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