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शीलोपदेशमाला - बालावबोध
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एनां कुरु कुण न जाणइ ? रामलक्ष्मण तु सबलइ प्रसिद्ध छ । जिणि कारणि, ए वात सांभलउ | लोकापवाद-भणी श्रीरामइ शीता वन-माहि मूंकावी । तेहना ए लव अनइ कुश बेहू पुत्र ।' वात सांभली कुश कहर, 'नारद ऋषि ! श्रीरामइ तां रूडडं न कीधउं, जे लोकनी वातई अविचारि शीता वन-माहि मूंकावी । ' तेतलइ वली लव बोलिउ, 'अहो ऋषि ! ते नगरी केतलह दूरि छइ, जिहां राम-लक्ष्मण छ ?' तिवारई नारद कहइ, 'इहां हूंती अयोध्यानगरो वीसा -सउ जोअन हुई ।' तिसिहं तिहां पृथुराजाई कनकमाला पुत्री कुशनह परिणावी । पछ वज्रजंघ लवकुश सहित आपणइ नगरि आविउ । तेतलइ लव नह कुश माउलउ पूछी, जे श्रीरामि शीता छांडी ए अमर्ष मन-माहि घरी, बेहू बांधव कटक करी राम भणी चाल्या । इम पंथ अवगाहता जेतलs अयोध्यानइ परसरि आव्या तेतला राम-लक्ष्मण पणि घणडं सैन्य लेई साम्हा आवी महा-झूझ मांडिलं । तिसिह लवकुशे रामनउं सैन्य क्षण एक माहि आकडाना तूलनी परि दिशोदिशि ऊडाडिउं । तिवारई राम-लक्ष्मण रीसाणा हूंता, अति अमर्ष करी कुश-भणी चक्र मूं कि - डं । पणि ते चक्र गोत्रि - तु पुहची न सकइ । पछइ कुश पावती फिरी वली लक्ष्मणनइ हाथि आवी बइठउं । तिवारह राम-लक्ष्मण मन-माहि विखवाद भरता इम चींतविवा लागा जउ, 'बलिभद्रनारायण अम्हे है, कि ए लव नइ कुश ? हम चींतवइ छ । इसिह नारद ऋषि भामंडल - सहित तिहां राम-लक्ष्मण-समीप आवी, हसीनइ इम कहिवा लागउ, 'अहो ! हर्षनह ठामि तुम्हे सिउ विखवाद मांङिउ ? जेहना एहवा पुत्र, तेहनइ हर्ष जि कीधउ जोईइ ।' तिवारइं श्रीरामि पूछि, 'रिषि ! ते किम ? ' वलतुं नारद कहइ, 'ए बेढू ताहरा पुत्र, शीतानी कूखिई ऊपना । सांप्रत संग्रामनइ मिसि तुम्हनइ जोवा आग्या छ । पणि ए वहरी नहीं, इणि कारणि ए चक्र गोत्रि-भणी न पुहचिरं । तु ए अहिनाण तुम्हे जाणिज्यो । ए वात सांभली राम-लक्ष्मण स्नेह लगइ साम्हा मिलवा गया । तिसिहं लव-कुस पणि विनीत हूंता आवी पिताने पगे लागा । तिवारs बिहुं कटकन माहो माहि महा-उत्सव- आनंद हुआ । पछइ पुष्पक विमान इसी गम-लक्ष्मण लवकुश सहित नगर माहि आग्या ।
तिसिद्धं लक्ष्मणि, सुग्रोवि, वज्रजंध शीता आणिवा भणी श्रीराम वं नविउ । तेतलाई रामि अनुज्ञा दीधी । पछइ लक्ष्मणादिक सहू साम्हा तिहां जइ शीतानइ नगर-माहि वेडिवा लागा । तिवारइ शीता कहर, 'जां धीज करीनइ सूझउं नही, तां-सीम हूं नगर-माहि नावडं । दश धीज छ । तेह- माहि जे मेलि आवइ ते करावड । जु कहु तउ आगि माहि पइसी नीकलउं ( १ ), अथवा चोखा चावडं (२), अथवा कहउ तउ कोस पीउं (३), अथवा घटसर्प काढडं (४), अथवा घटगोल काढउं ( ५ ), अथवा तरवारि-ऊपरि चालडं ( ६ ) अथवा तातउ लोहनउ गोलउ हाथ - ऊपरि राखउं (७), अथवा कहउ तउ ताती तेल - कडाइ - माहिथी कउडी काढउं (८), अथवा उन्हों कुसि जीभइ करी चाटउं (९), अथवा कहउ तउ देवनउं फूल ऊतारडं (१०) । ' शीताइ इम कहिई हूंतई, पछइ श्रीगमि मोटी चउरी खणावी । त्रिण्णि सह हाथ लांबी, बि पुरिस ऊंडी एहवी, चंदनादिक काण्डे भरी, माहि अग्नि प्रज्वाली, महा Terait करी । श्रीराम-लक्ष्मणादिक सहू इ मिली शीता-पाहंति स्नान कराविउं । पछइ शीताई स्नान करी, त्रिणि नवकार कही एहवी अवश्रावणा कीधी, 'अहो लोकपालो ! सांभP. गोत्रपुत्रनई । २. K. चउक ऊपरि ।
१. B. गोत्रि माहि तु, Pu. गोत्र तु, ३. K. ताती ।
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