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मेरुमुन्यागणि-विरक्षित खल: सर्षपमात्राणि पर-छिद्राणि पश्यति ।
- आत्मनो बिल्वमात्राणि पश्यन्नपि न पश्यति ॥१॥ इम लक्ष्मणिइ घणु इ कहि, तु ही राम न मानइ । पछइ श्रीरामि कृतांत सेनानी तेडीनइ कहिउ, बा, शीतानइ वन-माहि मूंकी आत्रि । कोइ ? लोक तु शीतानउ एहवउ अपवाद बोलह छह । तेह-भी हूं शोताना दिसु । इणि कारणि तूं रथ सज्ज करि । कांइ ? आगई ए शीतानइ संमेलशिखर जावान डोहलउ छ । ईणइ मिस शोता- रथि बइसारी गंगानई पारि लेई मूकि । पछइ कुलांत सेनाको संमेतशिखरनो यात्रानइ मिसि शीतानइ रथि अइसारी नीकलित। तिहां जई समेतशिखरनी यात्रा करावी वलतां अटवी-माहि मूकीनइ इम कहिउ, 'मात ! लोकापवाद-भणी रामचन्द्रि तूं वन-माहि मूकावी छन । तु माहरउ अभाग्य, जे हूं ईणइ कामि मोकलिउ । ए वचन सांभली मुळगत हंती शीता भुंइं पडी। पछइ शीतल वायनइ योगि सचेत हुइ हूतो शोता विलाप करती कहिवा लागी, 'हे रामचन्द्र ! जु तूं लोकापवाद-भइ बीहतु हूंतु, तु मुसनइ लोक-प्रत्यक्ष तई धीच कांई न 'काराविउं? अहो राम ! एहवउं निघणपणउं ! तई आपणा कुल-सरीखर्ड नं कीघउ, जे हूं एकाकिनी निरपराध आधान-सहित वन माहि मूकावी । हिवइ हूँ ता किमही वन-माहि थाइसु । पणि राम-लक्ष्मण जयवंता होज्यो ।' इम कही सेनानी विसर्जिउ । तिवारह सेनानी पणि शीतानइ प्रणाम करी अश्रुपात करतउ पाछउ वलिउ । पछइ शीता पणि आपणउं कर्म निंदती यूथ-भ्रष्ट हरिणीनी परिहं वन-माहि फिरवा लागी ।
इसिइ प्रस्तावि श्री वनजंघ राजा तिहां आविउ हंतउ वीणइ ते शीता बहिन पहिबजी, पुंडरीक-पुरि आणी।
हिवह सेनानी पाउ आन्यज, रामनइ प्रणाम करी शीतानउ सर्व वृत्तांत कहिउ । रामचंद्र शीतानउ वियोग अणसहितउ, तेह जि सेनानी साथी लेई रामचंद्र वन-माहि गयउ । विहां शीता सर्वत्र जोई, पणि लाधी नहीं। पछइ राम धरि आवी शीतानी "प्रेत-क्रिया करी, शीतानउं ध्यान करतउ काल अतिक्रमावइ छइ ।
हिवइ शीताह तेहनइ परि लव अनइ कुश पुत्रयुगल प्रसविउ । तिवारइ वज्रजंघि आपणा पुत्रनी परिई जन्मोत्सव कीथउ । ते बेहू बालक कुश अनइ लव एहवे नामें प्रसिद्ध हुआ । विहुए संपूर्ण कला अभ्यसी । बेहू यौवनपणउं पाम्या । बेहू महा-दुर्धर सुभट हुआ। पछा वज्रनधि आपणी शशिच्ला पुत्री लवनइ परिणावी । वली क्षेत्रीस कन्या बीजी परिणावी । इम बली कुशनइ कीधा पृथुराजानी पुत्री मंगावी । तिवारइ पृथुराजा कहइ, 'हूँ अज्ञातवंशनइ
आपणी पुत्री नही आपउं।' इणि वचनि वज्रजंघ अनइ पृथुराजानइ माहोमाहि युद्ध हूउं । तिसिई पृथुराबाइ वज्रजंघन कटक भांजिडं ! तिवारइ लव अनइ कुछ रीसाणे हूंते, तिम किमइ या मांडिड, जिम पृथुराजा नाठर। तेतलइ लव-कुशि कहिउं, 'अहो! अम्हे अवंशजे तं वशज नसाडि ।' तिवारई पृथुराजा पछि उ वलीनइ कहइ, 'अहो कुमारी ! तुम्हारी "सोयवृत्तिई करी मई तुम्हाग्उं कुल जाणिउं ।' इम कही पछइ वनजंघ साथि मेल करी बेहु कटक तिहां ऊया । इसिई नारद आविउ । तिवारइ वज्रजघि नारदनइ प्रणाम करीनइ कहि, 'महो रिषि ! ए कुशनइ पृथुराजा आपणी पुत्री दिइ छइ । इणि कारणि तुम्हे कुशनउं कुल प्रकट करठ, निम पृथुना हर्ष ऊपजइ । ' तिवारइ नारद हसीनइ कहइ, 'अहो अबूझ लोको !
१. B. करावी, K. Pu. कराविउ। २. C. प्रतिक्रिया । ३. B. C. सूर्यवृत्तिह ।
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