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शीलोपदेशमाला-बालावबोध ।
तिणि समई श्रीरामइ विभीषणनइ लंकानउं राज दीधउं । तिहां विभीषणनइ राजि बइसारी पछइ राम-लक्ष्मण परिवार-महित शीतानइ लेवा वन-माहि गया । तिसिइ शीताई श्रीराम आवतउ देखी हर्षाश्च पाडती विश्वर-नेत्र साम्हउं जोवा लागी । तिवारइ आकाशि देवतानी वाणी हुई जु, 'ए शीता महासती, महासती ।' इम वात सांभली पछइ राम-लक्ष्मण सहर्षित हता पुष्पक-विमानइ बहमी सुग्रीव-विभीषण-भामंडालदिक-सहित आपणइ साकेतपुरि नगरि आव्या । तेतलइ भरत पणि सुमित्र-बांधव-सहित आवी राम-लक्ष्मणनइ प्रणाम कीधउ । पछइ महा विस्तारि वाजिन वाजते राम-लक्ष्मण-शीता-प्रमुख सह घरि आव्या । तिवारइ लक्ष्मणनइ अर्धचक्रीन राज दीधउं । अनइ आपणपे श्रीराम राजा हुउ । पछ। सुग्रीवादिक सहु आपणे आपणे देशे मोकली, सुखिइं शीता-सहित सुख अनुभविबा लागा।
इम केतले दिहाडे शीता सरभ-स्वप्न सूचित हूंती गर्भ धरिवा लागी । तिवारइ समेत - शिखरि यात्रा जावान र डोहलउ ऊपनउ । इसि अवसरि शीतानउ जिमणुं लोचन फुरकिवा लागउ। पछइ ए वात जिम समनइ कही, तिम जि राम चमकिउ हूंतउ शातानइ कहा, 'हे प्रिये !
इकाई पाडू संभावीइ । इणि कारणि तू आपणइ घरि बई देवार्चन करावि, सुपात्रि दान दिइ ।' एहवी भर्तारनी शिक्षा सांभली शीता आपणइ परि आवी, देवार्चनादिक सर्व पुण्य कीधां । तेतलइ नगरने वृद्ध-पुरुषे आवी राम वीनविउ, 'स्वामी ! साच' कि झूठउ', अथवा रूड कि पोड् अम्हे न जाणउ, पणि सर्व लोक इम कहई छई जु, "रावण स्त्री-लंपटि शीता एकाकिना छमास-ताई घरि राखी, हिवइ यद्यपि शीता रावण-ऊपरि विरक्त हूंती, पणि तथापि रावणि बलात्कारि शील भांजिउ घटइ ।" तु राजन ! ए वात विचारिवा-सरीखी । जिम तेलन बिंद पाणी-माहि प्रसरइ, तिम लोक-माहि अपयश प्रसरिउ छह । तु स्वामी। रखे आपण कुलिं आघउ अपयश अणावउ ।'
इम शीतान' कलंक सांभली श्रीराम राजा अणबोलिउ रहिउ । तिसिई वली धेर्यपणउ अवलंबी कहिवा लागउ, 'अहो महाजनो ! तुम्हे मुसनइ भबउ जणाविउ। ए स्त्रीनइ कीधा अपयश नही सांसह ।' इम कही महाजन विसर्जी, पछइ रात्रि राम नष्टचर्याई नीकलिउ । नगर-माहि लोकनी वात सांभलतउ चमारना घर-दूकडउ आवी गम वात सांभ. लवा लागउ । इसिई चमारिई आपणी स्त्री पाटूई आहणीनइ कहिउ', 'रे दुराचारि । एतली वेलात किहां गई हंती ?' तिवारइ स्त्री कहइ, 'तू भलेरउ पुरिष आविउ । जोउ-न, शीता तां रावणनई घरि छ मास रही, तु ही रामिई कांई न कहिउँ । रामई तो छ मास सांसह्या', अनइ आज तूं एक क्षणमात्र सही न सकिउ ?' तिवारइ वलतु चमार कहइ, 'राम तु स्त्रीनइ वशि छइ, पणि हूं कहिनइ वशि नथी ।' तिहां रामि एहवी वात सांभलो । राम दुखात हूंतु नीतवद्ध. 'मझनइ धिकार हु, जे हूं स्त्रीनइ कीधा नीचनां वचन सांभली सांसहउ ।' वली राम चींतवइ, 'सही शीता तु पतिव्रता, अनइ रावण तु स्त्रीलंपट । अनइ महारउ कुल तु निर्मल, अनइ लोक तु दुराराध्य । तु हिवइ हूं सिउ करउ १ शीतानइ छांडउ ?' इम चीतवी लक्ष्मण-आगलि सर्व वात कही । तिवारइ लक्ष्मण कहइ, 'बांधव ! लोकनइ कहिइ शीता म छांडिसि । लोक प्रवाहइ परदोषनइ विषइ रसिक हुई । यतः--
... १..C. समा । २. B. गई ।
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