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मेरुसुन्दरगणि-विरचित
लागउ । इसिइं राम-लक्ष्मण-भामंडलादिक सहू इ रणतूर वाजते सुमनइ साम्हा थया । तिहां खड्गादि खड्ग, शरादि शरिइं, इम माहोमाहि झूझ करतां, रावणि विभीषण-भणी जिम त्रिशूल मू किउं, तिम लक्ष्मण इ चूर्ण कीघउं । तिवारइ रावणि रीसाणइ हूंतइ, शक्ति-प्रहरणि शस्त्रि करी लक्ष्मणनई होइ ताडिउ । तेतलई तत्काल लक्ष्मणनइ मूर्छा आवी । तिसिई रामि शोकार्त हुतइ आवी रावण-भणी भालउ मूकिउ । तिम जि वली रावणि राम-भणी गदा मूको । तिवारई राम अचेत हुई भुंइं पडिउ । तेतलई विद्याधरे जलि करी साँचिउ ।
तिणि प्रस्तावि शीता चीतवइ, 'जोउ, भर्तार-देवरइनइ ए अवस्था आवी ।' इम विलाप करत' देखी, काइ. एक विद्याधरी आवी, शीतानइ कहइ, 'हे शीते ! तूं असमाधि म करि । ताहरउ देवर प्रभाति निःशल्य यासिइ ।' ए वात सांमली सूर्यना उदय-ताई शीता सुस्ती थई ।
हिवइ तिहां लक्ष्मण अचेत थई पडिउ देखी श्रीराम पणि अचेत थई पडिउ । वली शीतल वायुनई योगि राम सचेत हूउ । तिवारइ राम इसिउ कहइ, 'बांधव ! बोलइ कांई नही ? तई
नउ राज विभीषणनइ देवउं कहिउं छह । ते वचन किसिउं तई वीसारिलं ? तु तं बांधव! ऊठि, जिम . आपणपे गवणनइ हणो, राज विभीषणनई दीनइ ।' इम कही राम धनुष हाथि लेई ओतलई ऊठिउ, तेललइ विभीषणि रामनइ कहिउं, 'हे श्रीराम! सांप्रत ए मोह छांडि | धीरपणउं आदरि । जिणि कारणि, शक्ति-प्रहरण-शस्त्रनउ हणिउ पुरुष सूर्योदय-ताई जीवइ, अधिकउ न जीवइ । ते-भणी तुम्हे मंत्रतंत्रे करीं यत्न करावउ ।'
पछइ श्री रामिई लक्ष्मण-पाखती सुग्रीवादिक रखवाला मूक्या । एहवइ चंद्र विद्याधर आवी रामनइ वीनवइ, 'स्वामी ! शक्ति नीकलिवानउ एक उपाय छह, ते तूं सांभलि । जिणि कारणि, भरतनउ माउलउ द्रोणमेघ राजा, तेहनी कन्या विशल्या, तेहना स्नाननइ नीरि करी शक्ति आफे बाहरि नीकलिसिइ ।' इणि वचनइ भामंडलदिके तिहां बई विशल्या कन्या आणी । पछइ तेहना जल-स्तान-लमी सूर्यनइ उदयि शक्ति ज्वलती बाहरि नीकली । तिसिहं जयजयारव हूउ । तिसिइ प्रभाति रावण शुकने वारीतउ हूंतउ संग्राम-भणी रण-भुमिकाइ आविउ । तिहां राम-रावणनइ महा-युद्ध करतां, राक्षसे वानर उलाली नांख्या । तेतलइ लक्ष्मण वेदना-रहित युद्धना विषइ वली सज्ज हूउ देखी, लक्ष्मणनइ जीपवा-भणी रावणि बहरूपिणी विद्या स्मरी । तेतलइ तत्काल रावणनां अनेक रूप हूआं । तिसिइं लक्ष्मण आगलि-पाछलि आसइ-पासइ सघले रावण झूझ करतउ देखइ । तिवारइ एकलउ लक्ष्मण गरुड-पंखि चडिउ हूंतु नानाविध शस्त्रे करी रावणर्नु सहू इ रूप पाडिवा लागउ । तिवारह रावणि आपणउ चक्र स्मरी मस्तक-पाखती फेरवी लक्ष्मण-भणी मंकिङ । हिवइ जेतलइ लक्ष्मणि चक्र आवत उ जाणिउं, तेतलइ डाबह हाथि करि झालिउं। तेतलई देवताए आकाशथी एहवी उद्योषणा कीधी जउ, 'ए लक्ष्मणकुमार आठमा हरि हउ ।'तिहां देवनाए इसिउं कहि। पछइ लक्ष्मणि तेह जि चक्र रावण-भणी मुकिउ । तिसिइ ते चक्र रावणनउ शिरच्छेद करी पाछउं लक्ष्मणनइ हाथि आवी बइठ । तिवारइ वली देवता जयजयारव करतां कुसुमनी वृष्टि करिवा लागा ।
१. K, लक्ष्मण हीइ । २. K. आफणी ।
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