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शीलोपदेशमाला-बालावबोध
मूकावउ, जु आपणपानइ हित वांछउ । कांई? ताहरउ बांधव रावण 'बलवंत छई. पणि श्रीराम-आगल रही नहीं सकइ । तेह-भणी शीता रामनइ पाछी अपावउ ।' तिवारह विभाषण बोलिउ, 'अरे हनूमंत ! आपणी वल्लभा तु सवि कहिनइ वाल्ही हुइ । पणि ताहरउ स्वामी श्रीराम माहरा भाई-सिउं पहुची नही सकइ । एह-भणी तूं पाछउ जा । शीताना कोई नही आपइ ।' ए वाउ सांभली हनूमंत रोषारुण हूंतउ देवरमण-उद्याननि आवि। तिसिह तिहां शीता दीर्घ नीसासउ मूंकती कृश-देह, मलमलिन वस्त्र धरती, मुखि राम राम स्मरती, अश्रुपात करता, अशोकवृक्ष-तलइ दीठो । एहवी शीता देखी हनूमति रामनी नामांकित मुद्रिका आगलि मूंकी, प्रणाम कीधउ । तेतलई शीता हर्षित-वदन हूंती पूछा, 'राम-लक्ष्मणनइ समाधि छइ ?' तिवारइ हनूमत कहइ, 'हं राम ताहरी शुद्धि-भणी इहां मोकलि छ। हिव मई पाछह गयई जि राम कटक करो इहां आविसिइ ।' तु शीता पूछा, 'वत्स ! कहि-न, तई समुद्र किम लांघिउ ?' तिवारहं हनुम त कहा, 'हे भात ! श्रीरामनइ वनि आकाशगामिनी-विद्यानइ बलि समुद्र लांघिउ । तु हिव मात ! ताहरउ चूडारत्न भापि, जिम रामनइ प्रत्यय ऊपजह ।' पछह शीताइ आपण चहारल आपिउं । अनइ वली इम कहिउं, 'वत्स ! तुं शीघ्र पाउ जा । ए राक्षस-माहि मरहिसि ।' तिवारइ हनूमंत कहइ, 'मात ! भयनी शंका म करि । तु आपणउ पराक्रम देखाडीनइ जाइसु ।' इम कही शीतानइ प्रणाम करी पछह लंकानां समस्त वन भांजिवा लागउ । जे रखवाला हंता ते ही हण्या ।
पछइ वली लंकानां घणां घर भांजी, छाजां नोडी, वली रावणना मस्तकनउ मुकुट चूर्ण करा, का प्रजाली, इत्यादि विनोद करी हनूमत पाछउ राम-समापि आविउ पछइ प्रणाम करी शीतान चहारत्न आगलि म्की सर्व बात कही-जिम शीता मिली, जिम लंका विश्वास. इत्यादि सर्व बात कही। तिवारई श्रीराम हर्षित हूंतु आलिंगनपूर्वक घणउं बहुमान देई, पछइ प्रयाणभंभा देवरावी । तिहां अनेक विराध, जांबवंत, नील, भामंडल, नल, अंगद -इत्यादि परिवार लेई रामलक्ष्मण लंका-भणी चाल्या । तिवारइ सुग्रीव आगेवाण कीघउ, अनइ जे नल-नील ते बेह संग्रामनइ अग्रेसर थाप्या । इम मार्गि जातां तीणे नल-नीलि समुद्र नइ सेतु राजा बेह बांधी करी रामनइ आप्या । तिवारह रामि पणि ते तिहां जि आपणा करी थाप्या । इम मार्गि जातां बली सवेलनगरि सुवेलराजा जीपी संघाति लधिउ। वली तिहां-थकी हंसदीप लंकानइ पासइ छई, तिहां आवी, हंसरथ राजा जीपी, राम-लक्ष्मण कटक-सहित केतलाएक दिन तिहां रडा । ।
इसिई रावण पणि श्रीरामनइ आवलउ जाणी रेणनइ विषइ सज्ज हुई, सर्व सैन्य मेली, जेतलइ नीकलिउ, तेतलइ विभीषण आवी रावण नइ प्रणमी कहइ, स्वामी ! अणविमासिउं काम म करउ | आगइ एक परस्त्रीनइ अपहारि करी कुल लजाविउं छइ । तु बांधव ! हिव शीता परही आपउ । सर्व लोकनउ क्षय म करउ ।' इणि वचन रावण रीसाणउ हूंतउ, विभीषण तिम किमइ निर्भछि उ, जिम विभीषण सपरिवार रामचंद्रनई आवी मिलिउ । तिवारइ श्रीरामि अवसर जाणी विभीषण बहुमानी आप-समीपि राखिउ। वली कहिउं, 'ए लंकानउं राज तुझनइ आपिसू ।' पछइ रामनइ आदेसि वानरे लंका रूधी। तेतलई रावणने सुभटे युद्ध मांडिउं । इम बेहु कटकनइ युद्ध होतां राक्षस भागा। निसिई रावण बांधव-सहित सामुहु आवी झूझ करिवा
१. C. बलवंत ५ हूतउ पाण, K. बलबंत हूतु पणि । २. B. C. *णनइ । ३ K. विना सर्वत्र ‘अपहरि' ।
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