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________________ १४६ मेरुसुन्दरगणि-विरचित तुही सोनार जागइ नहो । तिसिइ पाहुरिए जई राजान३ कहिउँ । तिवारइ वलतु राजा कहइ, 'कई कारण जि घटइ। एहनइ कोई म जगाडिज्यो।' इम तेहनइ सूतां सात दिन गया। सातमई दिनि जिम जागिउ, तिम राजपुरुषे सोनार राजा-समीपि लीधउ'। तेतलइ राजाइ पूछिउं, 'कहि, तूं जे सात दिन-ताई सूतउ, ते सिउ कारण ?' तिवारइ देवदत्ति अभयदान मांगी रात्रिनउ वृत्तांत राजा-आगलि कहिउ। राजाई ते राणी-पउतार- हाथीन उ सर्व वृत्तांत सांभली ते सोनार सरकारपूर्वक विसर्जिउ । पछइ राजा इसिउं चीतवई, 'ते राणो किम ओलखीसिइं?' इम चीतवी तिहां-हूंतठ ससंभ्रांत ऊठी, राजा अंतःपुर-माहि आवी, गूढ कोप धरतउ कहिवा लागउ जु, 'आज मई सुहणउ एक लाध छ । तेह-भणो तुम्हे आपणां वस्त्र मूकी मुझ-आगलि आवउ, जिम हूं तुम्हारी पृठिई असवार थाउ, एतलइ पाडूउ सुहणउटलइ ।' इम कहिइ हूंतइ सघली राणीए तिम जि कीधउं । पणि जे एक दुश्चारिणी ते कहइ, 'हूं लाज अनइ बीहडं।' तिवारई राजानइ हाथि सनाल कमल हूं तउ, तिणि कमलि करी राजा राणी आहणी। तेतलइ कपट-मूर्खाइ अचेत थई भुई पडी। तिवारई राजाई जाणिउं जु, 'ते एह जि।' पछइ वली पूठिई सांकलना घाय दीठा । तिरिई राजा कहइ, 'रे नीलजि । तिवारइ हाथीइ सू ढिइ करी ऊतारी अनइ पउंतारि सांकलइ करी मारो, तिवारइ तून बीहनी, अनई हिवडां एक कमलनइ घाई अचेत थई भुई पडी ?' जिम इम कहिउँ, तिम राणी चमकी। पछइ राजा रीसाणउ हंतउ पउतार तेडी, पट्टहस्ती अणावी, ते राणी नइ पउतार उपरि बइसारी, राजा भृकुटी-भीषण थई मुहता आगलि कहिवा लागउ, 'जाउ, ए हाथीउ राणीपउतार-सहित वैभारगिरि पर्वतनइ शगि चडावी, त्रिहुंनइ ढोली दिउ।' पछई पउतार-राणीसहित हाथीउ पर्वतनइ शृगि चडाविउ । तिवारई परंतारि हाथीउ त्रिहुं पगे ऊभउ राखिउ । सर्व लोक हाहाकार करिवा लागा। तिसिइ प्रधाने जई राजा वीनविउ, 'स्वामी! ए पशु अजाण । एहनई जीवदान दिउ ।' इम कहइ हूंतइ राजा न मानइ । तिवारइ हाथीउ बिहुं पगे राखिउ । वली प्रधाने लोके जई राजा वीनविउ । तु ही राजा न मानइ । पछइ एकइ पगि राखिउ । तिवारइ वो सर्व लोके जई वीनविउ, 'स्वामी ! ए हस्ति-रत्न कांई मारउ छउ ? ए तु परवशि । जिम पउतार कहइ, तिम कधइ जि छूटइ ।' तिवारइ राजाई कहिलं. 'जाउ, जउ तुम्हे कहउ छउ, तु हाथी ऊतारउ।' पछइ लोके जई कहिउं, 'अहो पउतार ! राजानउ आदेश हुइ छइ । हाथीउ पर्वत-हूं तु उतारि ।' तिरिई पतारइ कहिउ' जु, 'अम्हनइ अभयदान देवरावउ, तु हूंए हाथी ऊनारउ ।' तिईि वली प्रधानि राजा मनावी अभयदान देवराविउ । पछइ हाथीउ मउडइ मउडइ पर्वर-हतउ ऊतारिउ । तेतलइ पउतारराणीनइ देसवटउ हूउ । अनइ हाथीउ राजानइ घरि अविउ। .. पछइ राणी नइ पउतार नासतां नासतां संध्यानइ समइ कीणइ गामि गया। तिहां बाहरि सूनइ देवकुलि सूता । एहवह चोर एक चोरी करी नाठउ, तीणइ जि देवकुलि रात्रिई आविउ। तेतलइ देहर राजाने जणे वोटिउं । पछइ महांधकारि ते चोर जिहां ते बि जणां सुता छई. तिहां आविउ । हिवइ तेहनइ स्पर्शि जे पउतार सूतउ छह, ते जागिउ नहीं । पणि ते चोरनह स्पर्शि ते राजवल्लभा तत्काल जागी। ते जिम जागी, तिम जि तेहनइ विषइ अनुरक्त हंती इ. 'तं कउग ?' तिवारई ते कहइ, 'हूं चोर, राजाना जणना भय-लगइ नाठर, इहां मावि छउ ।' तिवारइ राणी कहइ, 'अहो पुरुष ! जउ माहर वचन मानइ, तु तुझनइ १ A. B. आण्यउ । २ C. K. सउण.3, Pu. मुणु । ३ C. K. सूढिइ, Pu. सूडि । ४ C. K. L. देसउटउ, Pu. देसटउ । . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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