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शोलोपदेशमाला-बालावबोध
दिननी चिंता आज तई भांजी।' इम कही पछइ आपणी बेटी अजितसेननइ देवा-मणी
आपणउ जिनशेखर पुत्र मुझ साथि मोकलिउ । ते सांप्रत माहरइ घरि छह । हिव तुम्हे ए नात्र सही करउ ।' तिवारइं श्रेष्टि कहइ, 'हे महाभाग ! तइ ए भलउं कीधउं । काइं? सघलाइ लाभ-माहि ए लाभ मुझनइ मोटउ हूउ ।' पछइ रत्नाकरि बहूमान-पूर्वक जिनशेखर तेडी शीलवतीनउं नात्र सही कीघउ ।
पछइ पिताइं अजितसेन पाणिग्रहण-भणी जिनशेखर-साथि चलाविउ । तिहां महा ऋद्धिनइ विस्तारि अजितसेनि शीलवतीन पाणिग्रहण कीधउं । अनइ हाथ-मेलावणीइ घणउं धन लाघउं । पछइ सुमरानइ मोकलावी शीलवती-सहित आपणइ घरि आविउ । हिवइ अजितसेन शीलवतीसहित सुखिइं धर्म, अर्थ, काम-त्रिणइ पुरुषार्थ साधिवा लागउ । इम करतां घणा दिन गया । एकदा प्रस्तावि शीलवतीइ रात्रिनइ समइ 'शिवा-फेकारीनु स्वर सांभलिउ । ते स्वरनई अनुनारि घडउ लेई रात्रिइ गहिरि नीकली । तिसिइ शीलवत नु सुसरउ जागतउ हूंतउ । तिणि ते वधू रात्रिई बाहिरि जाती दीठी । ते देखी मनि विकल्प ऊपनउ ।
पछइ चौतविवा लागउ, 'सही एहवी रात्रिई जु ए बाहिरि नीकली छइ, तु इम जाणीइ ए शीलवती कुशीलि छइ . जोउ नइ, भला कुलनी बेटी भलइ थानकि आवी अनइ एहवा इ काज करइ । तु इम जाणीइ. प्रवाहई स्त्री आप-स्वार्थिनी । वाहिरि रूडी दीसइ, पणि माहि चित्त कूडउ ।' सुसरउ इम चीतविवा लागउ ।
हिव शीलवती मायाई करी रहित, कई काज करी, घडउ ठामि मूकी, आपणि शिय्याइ आवी सूती । पछइ प्रभाति तोछडरणा लगई सेठि आपणी स्त्रीनइ इसिउं कहइ जु, 'ताहरी वह शीलि गुणि आचारे करी केहवी प्रतिभासइ ?' तिवारइ स्रीइ कहिउं, 'स्वामी ! कुलमर्यादाई करी रूडी छइ।' तिसिई श्रेष्टि कहइ, 'ताहरी बुद्धि पणि रूडी नही, जिणि कारणि, एहनां आचरण आज रातिई मइ दीठां छइ । न जाणीइ, एकलो किहांइ नीकली गई हूंती ?' इम वात करई छइ । इलिई अजितसेन पुत्र मातापिताना पग नमिवा आविउ । तिहां बापनइ सचिंत देखी पूछइ, 'आज तुम्हे सचिंत कांई दीसउ ?' तिवारइ पिता कहइ, 'वत्स ! हिबई सिडं कहीइ ? विधात्राइं आपणइ घरि कल्पवेलि वावी, पणि सांसही न सकी । कांई जे, शीलवती एहवइ वंशि ऊपनी, महागुणवंती अनई एहवी इ जु पाडूआ आचारि चालइ, तु सिउँ कहीइ १ जु लाज, जु जिनधर्म, जु सर्व गुण जोईइ, तु एह-माहि । पणि हिवड सर्व गुण गमाडया। एतला दिन कल्पवेलि-सरीखी हूंती, पणि हिव विषवेलि समान हुई । आज रात्रिइ पाणीनउ कुंभ लेई किहांइ गई हूंती मुझ जागतां जि । ते एक प्रहर बारि रही पाछी आवी । तु वत्स ! एहनइ तू छांडि ।' तिवारई पुत्र पितानउ आदेस अणलोपतउ 'तह त्ति' कही घरि आविउ।।
तिसिइ प्रभाति शेष्ठि कांई कूड विमासी घू-समीपि आवी कहइ, 'वत्सि ! ताहग्इ पिताई तूं ऊतावली मिलवा-भणी तेडी छ ।' तिवारई वधूई डहापण-लगइ रात्रिनउ वृत्तांत जाणी ससुरानउ वचन मानिउ। कांई ? परीक्षाइ आफणी सोनउं कसि पहुचिसिइ । पछइ रथ प्रगुण कीधउं । तेतलइ शीलवती-वह-सहित रत्नाकर अष्टि रथि बइसी चालिउ । मार्गि चालतां नदी एक आवी । तिसिह श्रेष्टिई शीलवतीनइ कहिउं, 'हे वधू ! ए पगनां खासडां ऊतारि, पाणीइ
१K.शिवा फेत्कार करती सांभली । २ P. एहवई, C. एह इ । ३. K.P पाडूइ आचारि प्रवर्तइ । ४.CK. आफणी ।
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