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________________ १२६ मेरुसुंदरगणि-विरचित भजिसि ।' तिवारई वधू कांई 'विमासीनइ ते खासडां पहिरिइ जि पाणी-माहि चाली । तेतल श्रेष्ठ रीसाउ हूंतु चींतवइ, 'सही ए तां आप छंदी छइ ।' इम वली मार्गि चालतां आगलि . * मूंगनु क्षेत्र फलिउं देखी सुसरउ कहर, 'वत्सि ! ए क्षेत्रीनइ हाथि सर्व धान आविडं । आजकाल धान घरि आवसिह । तिवारई वलतु वहू कहा, 'ए क्षेत्र आगिम खाघउं, घरि धान कांई नही आवइ ।' ईणइ पडूतरि ससुरउ गाढेरठ दूहवाणउ । वली जेतलइ रथ आघउ चालिउ, तेतलई नगर एक मोटउं, धनि करी धनद यक्षना नगर सरीखउं, दीठउं । ते देखी श्रेष्टि वहूनइ कइइ, ए नगर वसइ छइ । ईणइ नगरि आपणपे रहीइ ।' तिवारइ वधू वलतुं कहइ, 'ना, ए नगर सूनउं छइ । इहां नही रहोइ ।' पछइ आधा चाल्यां । पणि ससुरउ दूहवाणउ । तिसिइ आगलि सुभट एक घाए जाजरउ कीघउ आवत दीठउ । ते देखी श्रेष्ठि कहइ, 'बापडइ सुभट वेवडा घाय सह्या छई ?” तिवारइ वधू कहइ, ए कायर नासतु हूंतु कूटाणउ छइ ।' वली मुरवधूनी निंदा करतउ बडबडतउ, रीसाणउ आघउ चालिउ । तिसिहं सूर्य घणउ च' डेउ जाणी श्रेष्टि वड एक मांटउ देखी, वड- तलइ जई ऊतरिउ । तेतलइ वधू इ वडनी छांह मूंकी लू ऊढ़ी तडक जई बइठी । तिसिई श्रेष्टिइ कहिउँ, 'वत्सि ! छायाइ आवि ।' तिवारई वधू अगसांभलती आंखि मोची रही । पछइ श्रेष्टि चींतवइ, 'जे वात हूं कहउं ते तु ए न मानइ । तु हिवइ एहन कउण कहिसिइ ?' इम कही श्रेष्ठि आघउ चालिउ । तेतलइ सूनउं गाम एक आवि । तेह-माहि " सघलाइ घर च्यारि-पांच "वसइ छइ । ते तुच्छ गाम देखी श्रेष्टि कहइ, 'ईणइ गांमि नही रहीइ ।' तिवारइ शीलवती कहइ, 'ए गाम गाढ वसइ छइ । इहां रहींसिइ ।' एछ श्रेष्टि चतवइ, 'ए वहू सर्वथा विपरीति ।' तेतलइ गाम-माहि ढूंतउ शीलवतीनउ माउलउं आविउ । तिणि बहुमानपूर्वक सेठि निमाडी राखिवा लागउ । पणि रहइ नही । पछइ वधू-सहितं सेठि आघउ चालिउ । तेतलई वृक्ष एक देखी मध्याह्न-समु जाणी रथ हूंतु ऊतरि । तिहां कांई थोडउं सिउं सीरावी रथ-जि-ऊपर सेठि कपट-निद्राई सूतउ । पछइ शीलवती पणि पितानुं घर टूकडउं जाणी रोटी-करंवड लेई जिमवा बहठी । तेतलइ कयरना वृक्ष - ऊपरि काग एक बोलिवा लागउ । तिसिइ ते कागनी भाषा उलखी शीलवती कागनइ कहइ, 'रे काग ! तूं कांई करगराट करइ ?' ए वात सांगली श्रेष्टि मन-माहि चींतवर, 'ए दुराचारि सउण पणि जाणइ छइ ।' पछइ वधू कागनइ कहइ, 'तुझनइ करंबानी इच्छा छइ, तेहमणी तूं बोलइ छइ ।' तिवारइ शीलवती अवसर जाणी निःशंकपणइ कहिवा लागी, 'अहो काग ! एक बोल आगइ " शिवा- फेकारीनउ मानिउ, ते माटि भर्तारनउ वियोग हूड, अनइ सांप्रत १. C. K. Pu. विमासी नये खासडे पहिरे । २. Pu. मुगनु क्षेत्र वाविउं देखी । ३. K. रीसाउ । ४. Pu. आघेरउ । ५. K. सर्व थई घर च्यारि पांच सई छ, Pu. घर सघलां इ च्यारि कइ पांच वसई छ । ६. C. वासि । ७. K. सुवासिङ् ८. A. B. विपरित । ९. K सेठिनइ १०. Pu. शिवानु मानिउ तु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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