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मेरुसुंदरगणि-विरचित
Areas - नंदती - मोरमा - रोहिणी - पमुक्खाणं । रिसिणो वि सयाकालं महासईणं थुणंति गुणे ॥५६
व्याख्या:- शीलवती १, नंदयंती २, मनोरमा ३, रोहिणी ४ - प्रमुख च्यारि महासती जयवंती हु । कांइ जे, महासतीना गुण, ऋषीश्वर इ सदा इ = सर्वकाल गुण स्तवइ । एतलइ गाहनउ अर्थ उ । भावार्थ कथा - हूंत जाणिवउ । तिहां पहिलंउ शीलवतीनी कथा कहीइ
[ ३३. शीलवतीनी कथा ]
ईइ जंबूद्रीपि श्रीनंदनपुरि नगरि अरिमर्दन राजा राज कर३ । हिवइ ते राजानइ मान्य श्रीरत्नाकर नामि श्रेष्ठि वसई । श्री एहवइ नामि तेहनी भार्या । ते बेडूं श्रावकउ धर्म पालइ । पणि कर्मना योग लगइ संताननी प्राप्ति नही । तिथि करी महा दुखी । हिवइ अन्यदा पुत्रनइ हेति श्री - कलत्र श्रेष्टिनइ इसिउं कहइ, 'स्वामिन ! ए श्रीअजितनाथना देहरा- आगलि अजितबलादेवी महा सप्रभाविक छइ । ते अपुत्रीयानइ पुत्र दिइ, निर्धननइ धन दिइ, दोहागीनइ सोहागी करइ ! जि को एहनी सेवा करइ, ते सहू पामइ । इणे कारणि, हे नाथ ! आपणपे पुत्रनइ अर्थि कांई मानी । कांई, बेटानइ हेति आपगा प्रणते ही दीजइ ।" तिवारइ रत्नाकर श्रेष्टिइ श्रीनइ बचन ते देवीनइ कांई मानिउं । पछइ संताननी प्राप्ति हुई । कांई ? भाग्यनइ योगइ सघली इ वस्तु फलइ । क्रमिइ पुत्रनउ जन्म हुड | तेहनइ अजितसेन ए नाम दीघउं । जिवारई बाल्यावस्था अतिक्रमी यौवनावस्थाई आविउ, तिवारई पिता विवाहनी चिंता करिवा लागउ जु, 'एहनइ भली कन्या आवइ तु रूडउं । यतः -
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निर्विशेषः प्रभुः पारवश्यं दुर्विनयोऽनुगः ।
दुष्टा च भार्या चत्वारि मनःशल्यानि देहिनां ||१||
इमविता करइ छ । एहवह व्यवसानइ हेति कोई वणिगपुत्र रत्नाकर - सेठिइ आगइ चलाविउ हूंतउ, ते संपूर्ण व्यवसाय करी श्रेष्टि-कन्हलि आवी बइठउ । तिसिई सेठिई व्यवसाय स्वरूप पूछिउं । तिवारह वाणउत्रि आय वरउ सर्व देखाडिउ । वली वाणउत्र कहइ, हूं मंगलावती नगरी गयउ हूंत । तिहां जिनदत्त श्रेष्टि साथि माहरइ व्यवहार हूउ । तिणि सेठि एक दिवस हूं घरि जिमवा तेडिउ । तिहां मई देवांगना सरोखी कन्या एक दीठी । तिसिई मह श्रेष्टि पूछिउ, ' र कणि ?' तिवारई श्रेष्ठ कहइ 'ए माहरी पुत्री । पणि मुझन कही चिंता टलती नथी । कां ? जागउं, ए पुत्री हिंसेउ वर पामिसि ? किम ससुरानइ रंजविसिइ ? किम शील पालिसिह ? किम पुत्र प्रसविसिइ ? अथवा ए वली रखे एहनइ सउकिनउं दुख ऊपजइ । इम ए कन्या वाघती वाघती मुझनइ चिंता उपजावइ छइ । पणि ए पुत्री सर्व गुणनी खाणि छइ । सर्व भाषा जाणइ । पंखीयानी भाषा ते हो समझइ । शीलवतो एहवउं नाम । ' एहनइ रूप-कला-गुणे करी सरीखउ वर एहनइ जोईइ छ । पणि वर किहां मिलइ नही । एह भणी मुझन चिंता टलती नथी ।' तिवारइ मई सेठिनइ कहिउं, 'चिता म करि । श्री नंदनपुर रत्नाकर श्रेष्टिन पुत्र अजितसेन ए कन्नानइ योग्य छ ।' तिखिइ जिनदत्त कहइ 'हे मित्र ! घणा १. A. B एहना, C. एहने । २ C. K टलइ नहीं ।
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