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मेरुसुंदरगणि-विरचित दीठउ तेह-भणी दवदंती नाम दीघउं । जे 'मित्रेयी माता तेही मधुर-वचने बोलावई । जिम जिम कुमरी रीखती, पगि नूपुर रमिझमि करती, हसती, खेलती चालइ, तिम तिम मावाप हर्षीइ । इम पुत्री वाधती, माबापनां मनोरथ पूरवती, आठ वरसनी हुई । तेतलइ माता-पिताए कलाचार्यसमीपि भणिवा मुंकी। पणि थोडे दिहाडे सर्व शास्त्र भण्यां। साक्षात्कारि सरस्वतीनी परिइं शास्त्र जाणिवा लागी। गुरु नाममात्र जि हूया। तिसिई कला चार्थिई दवदंती आणी राजानई दीधी । तिवारई राजाई दवदंतीनी विद्या देखी, एक लाख सोनउं आचार्यनइ देई कलाचार्य विसर्जित।
... पछइ निर्वृत्ति देवताई दवदंतीनुं पुण्य देखी सुवर्णमइ श्री-शांतिनाथनी प्रतिमा आपी । वली इम कहिउं ज, 'ए भाविउ सोलमउ तीर्थकर होसिइ । ए प्रतिमा तई सदाइ पूजिवी ।' कही देवता अदृश्य हुई। पछइ दवदंती घरनई देवालइ प्रतिमा मूंकी, सदाइ पूजइ । ऋमिई दवदंतीई यौवनपणउं पामिउं । इसिई मागप अनुरूप वरनी चिंता करतां जि पुत्री अढार वरसनी हई। तेतलई प्रधाने राजा वीनविउ, 'स्वामी! स्वयंवरा-मंडप मंडावीइ । तिहां पत्री
आफणीई वर ऊलखी लेसिइ ।' पछइ राजाइ स्वयंवरा-मंडप मंडाविउ । हिवइ गामि गामि दत मोकली राजाना कुमार तेडाव्या । दूते निषधराजा बोलाविउ । निषधराजा पणि नल-कबर-पत्रे परिवरिउ आविउ । पछइ भोमरथ राजाई आगता-स्वागत करी, आवासे सर्व राजा ऊतारिया। तिसिई नल देखी सर्व राजा अदेखाई करिवा लागा ।
हिवइ भीमराजाई सयंवरा-मंडप मंडाविउ । हेममय सिंहासन मंडाव्यां । जेहवी सौधर्मेद्वनी सभा हुइ, एहवी कीधी । विचालइ स्तंभ मांडिउ । तीणइ सर्व भूषण भूषित पूतली करी मांडी, जाणे देवांगना छ । जे पाधरा राजा छइं, ते चीतवई, अम्हे ए जोवाइ नही लहइमिड प्रभाति सर्व राजेंद्र सिंहासने आवी बइठा । निषधराजा पणि पुत्रे परिवरिउ आवी बइठउ । एहवइ दवदंती उदार स्फार शुगार करी, स्वेत वस्त्र पहिरो, सभा-माहि आवी। पणि आगलि प्रतिहारिणी हाथि सोनानी कांब लेई सवें राजानां नाम नइ गुण प्रगट करती कहइ. 'हे स्वामिनि ! ए मगधदेसनउ अधिपति चंद्रकीति । ए अंगदेसनउ अधिपति भीमराजा ।। कोशलदेशनउ निषध राजा । ए नल-कूबर तेहना पुत्र।' इम नाम लेतां नलनइ विषइ दवदंतीनउं मन गयउं, अंगि रोमंच ऊपनउ । तिवारइं नलनई कंटि वरमाला दवदंतीइ मूंकी।
तेतलइ कृष्णराज खग लेई कहइ, 'रे नल ! तूं कन्या मूंकि । मुझ-छता कउण कन्या परिणी सकह" तिवारईनल अनइ कृष्णराजनइ माहोमाहि युद्ध होतां मनुष्यना संहार थातां देखी दवदंतीई अवश्रावणा कीधी, 'जउ हूं अहंतनी भक्त छउँ, तउ शासन-देवता ! नलनइ जय हु।' इम कही पाणीनी छांट नांखी। तेतलइ कृष्णराजानउं खांडउं पडिउं । पछइ कृष्णराजाईनल प्रणमिउ । तिहां नलिई जैत्र-पदवी पामी। तिवारई सर्व गजेंद्र हर्षिया । पछइ भलइ दिवसि पाणिग्रहण-महोत्सव हूउ । तिहां हाथ-मेल्हावणीइ भीमराजाई अनेक धन, कनक, अस्व, हस्ती दीयां । पकड भीमरथ राजानइ पूछी निषधराजा पुत्रवधू-सहित कोशल-भणी चालिउ । तिसिइं भीमराजा
बीना सीख दिह, 'वत्स! व्यसनि कष्टिइ पडिइ भरिनउ केडउन मूकिवउ ।' इम सीख देई भीमराजा पाछठ ' वलिउ । पछइ दवदंती पितानी सीख मन-माहि धरती, नलनई रथि बइठी। रथ आघउ चालिउ।।
१. K. मंत्रेइ । २. P. आपहणी Pu. आम्हणो L. आफणी। ३. Pu. P. वल्यड़ ।
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